फर्रुखाबाद परिक्रमा: पुलिस जी, नेता जी, अधिकारी जी, जरा सम्हल कर बोलिए!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

 

शराब का एक छोटा ठेकेदार अपने इलाके के थानेदार की शिकायत लेकर पुलिस जी के पास पहुंचा। बोला साहब जी थानेदार जी कच्ची शराब के उत्पादन को प्रोत्साहित करते हैं। इससे हमारा धंधा चौपट हो रहा है। पुलिस जी बोले तुम थाने में पैसा नहीं देते होगे। शराब ठेकेदार ने कहा पुलिस जी हम पैसा थाने में बराबर देते हैं। परन्तु थानेदार जी तो कच्ची शराब उतारने वालों से भी पैसा ले लेते हैं और हमारा धंधा चौपट हो रहा है।

एक शस्त्र विक्रेता एक अधिकारी जी के पास गया। नौजवान था। सत्ताधारी दल का कार्यकर्ता भी था। नतीजतन अपनी व्यावसायिक समस्या जिसके चलते उसे लम्बा नुकसान हो रहा था का विवरण अपने अधिकारी जी को यह अंदाजे वयां अच्छा नहीं लगा। बोले जादा तर्क वितर्क करने की आवश्यकता नहीं है। शस्त्र विक्रेता समझा नहीं। बोला हम तो अपनी समस्या आपको ही बतायेंगे। इसमें तर्क वितर्क करने जैसी तो कोई बात है नहीं। अधिकारी जी हत्थे से उखड़ गए। बोले जरा सा नुक्ता लगा दूंगा। सारी अकड़ धरी की धरी रह जायेगी। शस्त्र विक्रेता अपने साथी अधिवक्ता के साथ अधिकारी जी के चेम्बर से यह कहकर चला आया कि अब आप अपना नुक्ता पहिले लगा दीजिए।

बड़े पुलिस जी रात्रिकालीन चेकिंग से लगभग दो बजे अपने आवास पर पहुंचे। फाटक पर ताला चौकीदार गहरी निद्रा में। तमाम कोशिशों के बाद बड़े पुलिस जी फाटक खुलने पर अंदर आवास में पहुंच सके। कुछ दिन पहिले ही एक कार्यक्रम में बड़े पुलिस जी ने फरमाया था। पुलिस भी इंसान है। दो बजे से चार बजे तक सभी को सुस्ती नींद आती है। चोरो आदि से बचने के लिए लोगों को अपने स्तर से भी सावधानी बरतनी चाहिए। पुलिस जी आपने वास्तव में सही फरमाया था।

नेता जी बोले हमने इस धराधाम पर जन्म ही अपकी सेवा के लिए लिया है। हमारा आपका पीढ़ियों का सम्बंध है। हमारे पुरखे आपकी सेवा करते रहे। हम लंबे समय से आपकी सेवा कर रहे हैं। अब बाजार की मांग पर हम जब जिसे ग्राम प्रधानी से लेकर जिला पंचायत ब्लाक प्रमुखी लोकसभा में मैदान में उतारें। आपको उन्हें जिताना है क्योंकि हमारा आपका पुराना पारिवारिक रिस्ता है। हमें सेवा करनी है। आपको सदा सर्वदा हमें वोट देना है। एक जागरूक मतदाता बोला नेता जी यह तो ठीक है। परन्तु उस स्थिति में हम क्या करें जब पार्टी प्रत्याशी के रूप में आप अपना स्वयं का वोट भी स्वयं को न दें। नेता जी को जबाब देते नहीं बन रहा था। बोले यही तो राजनीति है। इस मुद्दे पर तुमसे बाद में अलग से बात करेंगे।

एक अधिकारी जी नेताओं को भाव नहीं देते। वह जनता से सीधे मिलना पंसद करते हैं। बहुत कड़क और ऊंची पहुंच वाले हैं। जब से आए हैं जनता जनार्दन ने उनसे मिलकर अपनी समस्याओं के सम्बंध में हजारों प्रार्थनापत्र उन्हें दिए हैं। विभागीय समीक्षाओं  में कब उनका गुस्सा और फटकार किस पर बरस जाए नहीं कहा जा सकता। एक मुहं लगे कर्मचारी ने एक दिन अकेले में कहा सर! आपको सीधे मिलने वाले प्रार्थनापत्रों की संख्या बढ़ रही है। लोग बार-बार आकर पूछते हैं। भैया हमारे प्रार्थनापत्र का क्या हुआ। क्यों न एक दिन इन प्रार्थनापत्रों के यथोचित निस्तारण की समीक्षा कर ली जाए। अधिकारी जी बोले तुम अपना काम करो। हमें अपना काम करने दो।

पहली बार विधायक बने एक नेता जी ने प्रभारी मंत्री जी के सामने अपना रोना रोया। सर! अधिकारी हमारा फोन ही नहीं उठाते। सीधे से तरीके से बात ही नहीं करते। प्रभारी जी ने नेता जी से उनकी न सुनने वाले अधिकारी का नाम नहीं पूछा। बोले लखनऊ आओ तुम्हें लेकर मुख्यमंत्री जी के पास चलेंगे और अधिकारी को हटवा देंगे। लम्बी लम्बी बातें करने वाले नेता जी का नशा पांच महिने में ही उतर गया।

स्थानांतरित और सेवानिवृत्त अधिकारियों का विदाई समारोह! शहर के एक नामी होटल में जमकर मेहमानों की खातिरदारी हुई। चोरी छुपे मद्यनिषेध कार्यक्रम की भी अनदेखी हुई। शहर में कुछ मेजवानो ने अधिकारियों की शान में इतना मख्खन फैलाया कि नेताओं अधिकारियों के दरबार में हाजिरी लगाने वाला बड़े से बड़ा व्यक्ति भी शर्मा जाए। कुछ लोगों को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। परन्तु संगठन की मर्यादा के नाम पर चुपचाप सब देख सुन रहे थे। एक दिलजले ने जब कुछ टिप्पणी की। तब मेजवानऔर मेहमान हंसते हुए बोले भाई डिनर के लिए मूड़ बनाना पड़ता है। वैसे हम क्या हैं आप क्या हैं। यह हमसे और आपसे बेहतर कौन जानता है।

सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। नेताओं के यहां उठने बैठने का पुराना शौक अभी भी कायम है। मंत्री जी के दरबार में उनके पुराने और नाराज दोस्तों की वापसी का ठेका उन्होंने अपने स्वयं के नम्बर बढ़वाने के लिए स्वयं ले लिया है। परन्तु बात बन नहीं पा रही है। शुरू आती उत्साह के बाद जब बात नहीं बनी। तब फिर मंत्री जी ने कहा कि यह दंद फंद और तिकड़म बाजी छोड़ो। अब तुम्हारे बस का कुछ रहा नहीं। अधिकारी और पूर्व अधिकारी में मंत्री और पूर्व मंत्री से ज्यादा अंतर नहीं होता। ओहदा रुतवा जलवा सब कुर्सी पर रहते ही होता है। पूर्व अधिकारी का चेहरा देखने लायक था।

 

जय हिन्द!