मदर्स डे स्पेशल: बर्फ बेच पाले सात, बुढ़ापे में भीख पर गुजारा

Uncategorized

फर्रुखाबाद: एक सेठ की 70 साल की विधवा सडको पर विक्षिप्त होकर झूठन से जिन्दा है| कोख से 7 बच्चे जने थे सबके घर बसा दिए मगर उम्र के आखिरी पड़ाव पर कोई काम न आया| आज मात्र दिवस पर कई मंचो पर नेताओ ने बुजुर्ग महिलाओ को अपनी माँ समान बताया होगा| माँ के आशीर्वाद की कामना की होगी| चंद महीने पहले और कुछ दिनों बाद फिर सफ़ेद कुरते वाले घर घर जाकर जाने कितनी माओं से सत्ता की कुर्सी के लिए आशीर्वाद मांगेगे| मगर इस माँ के दिल में गुबार क्या है इसे अनसुना कर, पगली कह कन्नी काट जायेंगे|
एक बेटे के इन्तजार में तिल तिल मरती एक विक्षिप्त सफल माँ की कहानी उसी की जुबानी, दीपक शुक्ला की कलम से-

जहां पूरा देश आज मदर्स डे मना रहा है और मां बेटे आपस में एक दूसरे को प्यार मोहब्बत बांट रहे हैं। वहीं एक बूढ़ी मां की कहानी इतनी दुखभरी और संघर्षभरी है जो बाकई में अपने बच्चों के प्रति पूरा जीवन इस उम्मीद से न्यौछावर कर गई कि बच्चे बड़े होकर बूढे़ जर्जर शरीर को खुद लाठी बनकर सहारा देंगे। आंखों से जब यह संसार दिखना बंद हो जायेगा तब यही बच्चे मेरी रोशनी बनेंगे। लेकिन समय और भाग्य ने साथ छोड़ दिया। बर्फ वाली पंडिताइन के नाम से प्रसिद्ध एक वृद्व मां का आखिर क्या हुआ जिसे कुछ ही लोग जानते हैं। पंडिताइन को अब कानों से न सुनाई देता है न आंखों से दिखायी।

बात तकरीबन 40 वर्ष पहले की है जब पंडिताइन का विवाह रस्तोगी मोहल्ला के बुद्धसेन अवस्थी के साथ बड़ी ही धूमधाम से हुआ था। मायके से ससुराल आयी पंडिताइन की आंखों में कुछ सपने थे। बुद्धसेन वर्फ बेचने का काम किया करते थे। पंडिताइन ने पांच बेटियों व दो पुत्रों को जन्म दिया और इन सभी पर अपनी ममता का आंचल डालकर परवरिश की। जेहन में एक जुनून और दृढ़ विश्वास के साथ बच्चों को पढ़ा लिखाकर अच्छा इंसान बनाना है। समय का पहिया बढ़ता रहा। बुद्धसेन बर्फ बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करते रहे। वहीं पंडिताइन पूरे दृढ विश्वास से बच्चों और पति की सेवा करती रहीं।

समय गुजरा और पंडिताइन की माथे का सिंदूर ऊपर वाले ने छीन लिया। बुद्धसेन दुनियां छोड़कर चले गये। अब पंडिताइन इस निर्मोही संसार में अपने सात बच्चों के साथ बिलकुल अकेली रह रही है। पहाड़ जैसी जिंदगी, ऊपर से परिवार का खर्च, व बच्चों की पढ़ाई लिखाई। लेकिन पंडिताइन के सपने मानो चकनाचूर हो चुके थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने पति का छोड़ा हुआ व्यवसाय शुरू किया तो क्षेत्र में बर्फ वाली पंडिताइन के नाम से प्रसिद्ध हो गयीं। बच्चों की हर छोटी-छोटी जरूरतों का ख्याल रखना पंडिताइन की आदत में था। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि जिस तरह से पंडिताइन परिवार को लेकर संघर्ष कर रहीं थीं वह बाकई में एक मिशाल थी।

पंडिताइन ने बहुत ही मेहनत करने के बाद अपनी पांच बेटियों का विवाह अच्छे घरानों में कर दिया। पंडिताइन के एक बेटे बिल्लू की मौत लम्बी बीमारी के बाद तकरीबन 6 वर्ष पूर्व हो गयी। दूसरा बेटा पप्पू अवस्थी जिसका विवाह पंडिताइन ने भोपतपट्टी निवासी सत्यस्वरूप की पुत्री सुनीता के साथ 1994 में धूमधाम से कर दिया। पप्पू एक गैस एजेंसी में काम करता है। पंडिताइन को यह अंदाजा नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है। बचपन में खुद भूखे रहकर जिस बेटे का पेट भरा, अपना पेट काटकर जिसको पढ़ाया लिखाया, पैरों पर खड़ा किया। उसी बेटे ने अपनी मां के दूध का कर्ज निभाने की बजाय अपनी मां को धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया। इतना ही नहीं मां के नाम जो मकान था उसको बेचकर अपनी ससुराल में जगह लेकर खूबसूरत इमारत बनाकर रहने लगा।

बेटे के इस क्रूर व्यवहार से त्रस्त पंडिताइन मानसिक रूप से विक्षिप्त सी हो गयीं। लेकिन दाग देनी पड़ेगी उस लाल सिंदूर को जिसकी लाज आज भी पंडिताइन निभा रहीं हैं। जिस मोहल्ले में उसकी शादी होकर आयी थी विक्षिप्त होने के बावजूद भी आज तक पंडिताइन उसी मोहल्ले की पटियों पर अपना जीवन बिता रहीं हैं।

जेएनआई की टीम ने जब पंडिताइन से मदर्स डे पर सम्पर्क किया तो बालीवुड की फिल्म करन अर्जुन का सीन रिपोर्टर की आंखों के सामने घूम गया। पंडिताइन एक पटिया पर बैठीं बड़बड़ा रहीं थीं कि मेरा बेटा बिल्लू आयेगा। आखिर बिल्लू कहां चला गया। यह बात पूछने पर वह पहले तो बहुत तेज से चिल्लाकर बोली तुमसे क्या मतलब मैं नहीं बताऊंगी कि मेरा बेटा कहां गया। फिर अचानक आंखों में आंसू भरकर पंडिताइन बोलीं कि पप्पू आयेगा और मेरे रुपये छीनकर ले जायेगा।

मोहल्ले वालों ने बताया कि उसका बेटा पप्पू पंडिताइन को मिलने वाली पेंशन व कोटे का राशन भी उसका दुष्ट कलयुगी बेटा छीनकर ले जाता है और पंडिताइन मोहल्ले में मांग-मांग कर टुकड़े खाने को मजबूर है।

आखिर मां जब सात बच्चों को अकेले पाल पोशकर बड़ा कर सकती है तो सात बच्चे मिलकर अकेली मां को बुढ़ापे में दो वक्त की रोटी, चंद वर्षों तक सहारा क्यों नहीं दे सकते? यह बाकई में मदर्स डे पर सोचने की बात है। आखिर पंडिताइन जैसी न जाने कितनी मां आंखों में आंसू लिए अपने बेटों व बहुओं का शिकार होकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
कहाँ है मोहल्ले का सभासद जो चीख चीख कर जनसेवा का धिन्डोरा पीटता रहा| कहाँ है नगर का प्रथम नागरिक जिस तक इस माँ की आह नहीं पहुची| ये नेताओ और सामाजिक संगठन चलाने वालो का स्याह चेहरा| न ही इन पर किसी महिला संगठन की नजर है और न ही सामाजिक कार्यकर्ताओं की। जो मीडिया में आने के लिए न जाने क्या-क्या जतन करते ही रहते हैं और गली मोहल्ले की बीस सूत्रीय ज्ञापन लेकर जिलाधिकारी के सामने खड़े होकर फोटो खिंचवाते देखे जा सकते हैं।