मणीन्द्र की शहादत: अनशन करके प्राण गवाये,जिसने कुछ भी आह नही की!

FARRUKHABAD NEWS JAIL जिला प्रशासन

फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) अमर शहीद मणिन्द्र नाथ बनर्जी की 88 वीं पुण्यतिथि पर कोरोना के चलते इस बार अल्प कार्यक्रम आयोजित किया गया| इस दौरान मणिन्द्र की क्रन्तिकारी गाथा को दोहराया गया तो सभी की आँखे नम हो गयी| पूरा परिसर बंदे-मातरम् के नारों से गूंज उठा|
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पंहुचे वरिष्ठ जेल अधीक्षक प्रमोद शुक्ला नें जेल अधिकारीयों के साथ शहीद मणिन्द्र नाथ बनर्जी की प्रतिमा पर मल्यार्पण कर शहीद उपवन में पौधा रोपण किया|  उन्होंने कहा कि यह जनपद क्रांतिकारियों का जनपद रहा है| उन्होंने कहा कि बनर्जी के बलिदान दिवस पर सभी देशभक्ति का संकल्प लेकर जाये| इस दौरान कारागार के सशस्त्र गार्ड के द्वारा शहीद को सलामी दी गयी| इस दौरान कारापाल जीआर वर्मा, उपकारापाल सुरजीत सिंह, अरविन्द कुमार आदि रहे|
मणीन्द्र नाथ के विषय में जाने
शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 13 जनवरी 1909 में वाराणसी के सुबिख्यत एवं कुलीन पाण्डेघाट स्थित माँ सुनपना देवी के उदर से हुआ था| इसके पिता ताराचन्द्र बनर्जी एक प्रसिद्ध होम्योपैथिक के चिकित्सक थे| उनके पितामह श्रीहारे प्रसन्न बनर्जी डिप्टी कलक्टर के पद पर आसीन रहे| जिन्होंने 1899 में बदायूं से बिर्टिश शासन की नीतियों से दुखी होकर अपने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय हो गये|
श्री बनर्जी आठ भाई थे इन आठो भाईयो को मात्रभूमि के प्रति बहुत लगाव था| उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका अदा की| काकोरी कांड से सम्बंधित राजेन्द्र लाहिडी को फांसी दिलाने में सीआईडी के डिप्टी अधीक्षक श्री जितेन्द्र नाथ बनर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी| जिसे बनर्जी बर्दास्त ना कर सके और उन्होंने जितेन्द्र से बदला लेने की ठान ली| 13 जनवरी 1928 को जितेन्द्र नाथ बनर्जी से वाराणसी गुदौलिया में बदला ले लिया| इस शौर्यपूर्ण कार्य के लिये उन्हें दस वर्ष की सजा व तीन माह तन्हाई की सजा मिली| 20 मार्च 1928 को उन्हें वाराणसी केन्द्रीय कारागार से केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भेजा गया| जंहा उन्होंने अन्य राजनैतिक बन्दियो को उच्च श्रेणी दिलाने के लिये भी संघर्ष किया| 20 जून 1934 को सांयकाल आठ बजे कारागार के चिकित्सालय में उन्होंने अंतिम साँस ली| उनका अंतिम संस्कार 21 जून को फर्रुखाबाद के पांचाल घाट पर गंगा किनारे किया गया था|