नई दिल्ली। अपनी मौत से पहले आतंक का सबसे बड़ा सरगना ओसामा बिन लादेन नौ साल तक पाकिस्तान में छुपा रहा। दुनिया मानती है कि उसे कहीं न कहीं सरकार के किसी हिस्से की मदद मिली लेकिन इस मामले की जांच करने वाला एबटाबाद कमीशन इसे पाकिस्तान के सुरक्षाकर्मियों की “सामूहिक अयोग्यता और लापरवाही” मानता है। इस रिपोर्ट के मीडिया में लीक होने से पाकिस्तान में हंगामा मचा है। रिपोर्ट लीक कैसे हुई सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन रिपोर्ट से साफ है कि 9 साल तक ओसामा कितनी आसानी से अपनी पनाहगाह बदलता रहा। परिवार के साथ लादेन ने कैसे गुजरा अपना अज्ञातवास।
लादेन पाकिस्तान में कैसे छुपा रहा ये जांच करने वाले पाकिस्तान के एबटाबाद कमीशन ने वहां की सेना और खुफिया एजेंसियों को लादेन को छुपाने के शक से लगभग बरी कर दिया है। एबटाबाद कमीशन की ये रिपोर्ट कतर के एक न्यूज चैनल को लीक हुई है। रिपोर्ट का यकीन करें तो करीब 9 साल तक लादेन पाकिस्तानी एजेंसियों को चकमा देने में कामयाब रहा। 201 गवाहों, स्रोत और दूसरे जरियों से जुटाई गई जानकारी के आधार पर तैयार 336 पेज की रिपोर्ट के मुताबिक लादेन 2002 से ही पाकिस्तान में छुपा था। 9 साल के दौरान उसने करीब 6 बार ठिकाने बदले। पाकिस्तान को उसकी भनक नहीं लगी। रिपोर्ट के इस नतीजे पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
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एबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट ने भले ही पाकिस्तान की सेना, खुफिया एजेंसियों को क्लीन चिट दे दी हो। इस क्लीनचिट पर सवाल भी हैं क्योंकि कयास हैं कि बिना सेना, आईएसआई की मिलीभगत के ओसामा पाकिस्तान में 9 साल तक नहीं छुपा रह सकता था। सच जो भी हो लेकिन सेना, आईएसआई इस शर्म से मुंह नहीं चुरा सकती कि उनके रहते ओसामा पाकिस्तान में 9 साल तक छुपा रहा। ये वो कहानी है जो आज से 12 साल पहले शुरू हुई थी।
दिसंबर 2001 में अफगानिस्तान के तोराबोरा की पहाड़ियों पर 9-11 के आतंकी हमले के गुनहगारों को सजा देने के लिए अमेरिका ने भयंकर बमबारी की। विशालकाय डेजी कटर बम से लेकर बमों की कालीन बिछा देने वाले क्लस्टर बम तक बरसाए लेकिन न लादेन मिला और न ही उसकी लाश। साल 2002 में अमेरिका लादेन को अफगानिस्तान में तलाश रहा था, लेकिन एबटाबाद रिपोर्ट के मुताबिक 2002 के शुरुआती महीनों में लादेन सबको चकमा देते हुए पाकिस्तान आ गया। खुफिया अफसरों से पूछताछ के आधार पर ये रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में शुरुआती दिनों में लादेन दक्षिणी वजीरिस्तान और बाजौर के इलाके में छुपा था। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ वक्त पेशावर में बिताने के बाद 2002 के मध्य में वो स्वात घाटी आ गया। अब उसके साथ उसके कुरियर और बॉडीगार्ड इब्राहिम अल कुवैती और अबरार अल कुवैती और उनका परिवार भी था।
एबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक स्वात घाटी में ही लादेन की तीसरी बीवी अमल-अल-सदा अपनी बेटी के साथ उसके साथ रहने आ गई। लादेन के कुरियर इब्राहिम अल कुवैती की बीवी मरियम के मुताबिक जब बिना दाढ़ी वाला ऊंचे कद का अरब उनके साथ रहने आया था तो उसके साथ एक ड्राइवर और पुलिसवर्दी में एक शख्स भी था। पुलिस की वर्दी वाला वो शख्स कौन था रिपोर्ट इस बारे में कुछ नहीं कहती।
एबटाबाद कमीशन की पूरी रिपोर्ट में पुलिसवर्दी वाले सिर्फ एक मददगार का ही जिक्र है, लेकिन कमीशन का कहना है कि उसे पता नहीं चला कि वो कौन था। वो बहरुपिया था या असली पुलिसवाला कोई नहीं जानता, लेकिन पाकिस्तान के कमीशन की इस रिपोर्ट पर यकीन करना मुश्किल है। दुनिया भर के सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि लादेन को छुपाने में कहीं न कहीं पाकिस्तान का हाथ जरूर था।
पाकिस्तान को लादेन के बारे में पता था, दुनिया भर के जानकारो का ये शक एबटाबाद रिपोर्ट में जिक्र कई घटनाओं से पुख्ता होता है। ऐसी ही एक घटना साल 2003 में हुई। रिपोर्ट के मुताबिक साल की शुरुआत में 9-11 हमले का मास्टरमाइंड खालिद शेख मुहम्मद परिवार समेत स्वात में लादेन से मिलने आया। दो हफ्ते बाद वो लौट गया। एक ही महीने बाद मार्च में टीवी देखते हुए लादेन को पता चला कि रावलपिंडी में खालिद शेख सीआईए-आईएसआई के साझा ऑपरेशन में पकड़ा गया। इस खबर के तीन दिन बाद लादेन स्वात की अपनी पनाहगाह से निकलने में कामयाब रहा। इसके तीन महीने बाद अलग-अलग जगहों पर छुपा लादेन का परिवार एबटाबाद से 35 किलोमीटर दूर हरिपुर की नई पनाहगाह में फिर इकट्ठा हो गया।
ओसामा बिन लादेन 9 साल तक पाकिस्तान में रहा। उसने 6 बार ठिकाने बदले लेकिन आतंकी गुटों से नजदीकी रिश्ते रखने के लिए बदनाम आईएसआई या पाकिस्तानी फौज को उसका पता नहीं चला। खुद एबटाबाद कमीशन ने भी कहा है कि इतने वक्त में किसी भी बेहतरीन खुफिया एजेंसी को ओसामा का नेटवर्क भेदने में कामयाब हो जाना चाहिए था। या तो ओसामा खुशकिस्मत था कि वो किसी ईमानदार के चक्कर में नहीं फंसा या ये मामला स्थानीय प्रशासन की नाकामी का सबूत है।
सच जो भी हो लेकिन ओसामा बिन लादेन हर बार ठिकाने बदलने में कामयाब रहा। हरिपुर में भी वो ज्यादा दिन नहीं टिका। अगस्त 2005 में वो एबटाबाद की उस पनाहगाह में पहुंच गया, जहां अमेरिकी खुफिया नेटवर्क ने उसे खोज निकाला। एबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट तफ्सील से लादेन के उन हथकंडों का जिक्र करती है जिससे वो 9 साल तक एजेंसियों को चकमा देने में कामयाब रहा लेकिन एक गलती उसपर भारी पड़ गई।
एबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक लादेन एक बार पुलिस की पकड़ में आते-आते भी बचा। स्वात घाटी में एक पुलिसवाले ने उसे तेज ड्राइविंग के लिए पकड़ लिया था, लेकिन पुलिसवाले को समझा-बुझाकर लादेन वहां से निकलने में कामयाब रहा। एबटाबाद से पहले लादेन ने वहां से 35 किलोमीटर दूर हरिपुर के नसीम टाउन में पनाह ली थी। इसमें तीन बेडरूम और लॉन था। यहां लादेन के दोनों कुरियर और खुद उसका परिवार रहता था। खास बात ये है कि लादेन की दूसरी बीवी सिहम सबर भी अब अपने बच्चों के साथ रहने लगी थी। इसी दौरान लादेन की तीसरी बीवी अमल ने स्थानीय क्लीनिक में दो बार बच्चों को जन्म दिया-फिर भी किसी को शक नहीं हुआ।
9 साल तक लादेन कैसे बचा, एबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट में अमल की प्रेगनेंसी की कहानी भी ये बताती है। दो बार अमल की डिलिवरी के दौरान स्थानीय डॉक्टरों से लादेन के कुरियर अबरार और उसकी बीवी बुशरा ने ही बात की। डॉक्टरों को बताया गया कि अमल गूंगी और बहरी है। खास बात ये है कि कुरियर और लादेन के परिवारों में भी आपस में बहुत ज्यादा संपर्क नहीं था। लादेन इसलिए भी बच गया क्योंकि उसके कुरियर मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते थे। अलकायदा तक लादेन का पैगाम पहुंचाने के लिए दोनों पेशावर या रावलपिंडी पहुंचकर पीसीओ का इस्तेमाल करते थे। लादेन जब एबटाबाद में रहने लगा तब भी बाहर का सारा काम संभालने की जिम्मेदारी दोनों कुरियर की ही थी।
एबटाबाद कमीशन को इब्राहिम अल कुवैती की पत्नी मरियम ने बताया कि लादेन का परिवार उनके परिवार से कट कर रहता था। मरियम की 9 साल की बेटी रहमा ने एक दिन अपने पिता इब्राहिम से पूछा कि ऊपर के मंजिले में रहने वाले अंकल उनकी तरह बाजार क्यों नहीं जाते। जवाब में उसके पिता ने बताया कि वो अंकल गरीब हैं। इस पर रहमा लादेन को मिस्कीन बाबा यानी गरीब बाबा कहने लगी।
रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद एक बार गलती से लादेन रहमा के सामने आ गया। रहमा ने उसे मिस्कीन बाबा कह कर पुकारा लेकिन इसके बाद रहमा को हमेशा के लिए मुख्य बंगले की तरफ जाने से मना कर दिया गया। दरअसल, एबटाबाद के बंगले में रह रहे किसी भी शख्स की लादेन की असलियत जानने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाती थी। रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2011 में रहमा ने न्यूज चैनल पर लादेन की तस्वीर देखी। उसने फौरन पहचान लिया कि ये मिस्कीन बाबा ही हैं। यही वो वक्त था जब मरियम को भी पता लगा कि इतने साल से वो जिस अरब शेख के साथ जगह-जगह रहती आ रही थी वो और कोई नहीं लादेन था। मरियम के मुताबिक इब्राहिम इस घटना से इतना नाराज हुआ कि उसने परिवार की सभी औरतों के टीवी देखने पर पाबंदी लगा दी।
अपनी पहचान छुपाने को लेकर ओसामा बहुत चौकन्ना था। रिपोर्ट के मुताबिक लादेन बड़ी काऊ-ब्वॉय टोपी लगा कर लॉन में टहला करता था, ताकि ऊपर मौजूद कोई भी जासूसी सैटेलाइट, या विमान उसकी तस्वीर न ले सके। वो बीमारियों से परेशान था लेकिन रिपोर्ट का कहना है कि कोई डॉक्टर उसका इलाज कर रहा था इसके सबूत नहीं मिले और ये लगभग तय है कि लादेन कभी एबटाबाद की पनाहगाह से बाहर नहीं गया।
लादेन का ये चौकन्नापन काम नहीं आया। दरअसल, अपने कुरियर के जरिए वो अभी भी अलकायदा के संपर्क में था। कुरियर जिन पीसीओ से फोन करते थे, सीआईए को उसकी भनक लग गई। रिपोर्ट में तत्कालीन आईएसआई चीफ लेफ्टीनेंट जनरल शुजा पाशा की गवाही के हवाले से कहा गया है कि 2001 के बाद से सीआईए-आईएसआई को भी अंधेरे में रख रही थी। सीआईए ने 4 गलत शहर सरगोधा, लाहौर, सियालकोट और गिलगिट में लादेन के होने का शक जताया, दूसरी तरफ उसने एबटाबाद मिशन की तैयारी पूरी कर ली। आखिरकार 1 मई 2011 को ऑपरेशन किल लादेन ने 9 साल की लुकाछुपी का खेल खत्म कर दिया।