फर्रुखाबाद परिक्रमा: जो मान जाए वह सपाई क्या ???

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

जोश रहे पर होश न जाए

फर्रुखाबाद : रंग और भंग की तरंग में मुंशी हर दिल अजीज झमाझम हो रहे हैं। वोटों की जबर्दस्त बरसात ने जहां साइकिल वालों को मालामाल कर दिया वहीं पियक्कड़ों और नोट सम्हालने वालों का जीना दुश्वार है। चुनाव में पी, होली पर पी और पेटियां हैं कि खत्म ही नहीं हो रहीं। किसी ने जीत के लिए बांटी तो किसी ने चुनाव की आखिरी दो तीन रातों में चंद चिरकुटों के साथ सम्मान जनक हार के लिए रिजर्व बैंक आफ इन्डिया की शिफारसी चिट्ठियों का राष्ट्रपिता महात्मागांधी की फोटो के साथ आंधियों के आम जैसा हाल कर दिया। सेंटा क्लाज बड़े दिन पर चुपचाप बच्चों का आश्चर्य चकित करने के लिए सौगातों की बरसात करता हुआ निकल जाता है। परन्तु इन चुनावी सेंटाक्लाजों ने धूमधड़ाके के साथ नगरों कस्बों, गांवों के किनारे की बस्तियों में रहने बसने वाले लोगों के साथ ही वोटों के छोटे बड़े नए पुराने ठेकेदारों, दलालों के सहयोग से करोड़ों रुपये बांट दिए। मजे की बात यह कि पूरी की पूरी यूपी पुलिस जागती रही गस्त करती रही किसी को कानो कान खबर तक नहीं लगी। मुंशी भंग की तरंग में बोले कानून और व्यवस्था कही यह स्थिति क्या आपको कथित गुंडाराज के आगमन की भूमिका नहीं लगी। फिर स्वयं ही पलट कर बोले जो भी हो पंजे हाथी और कमल घाटियों का ऐसा सूपड़ा साफ हुआ कि गज गज भर की जवान सम्हाले जाने क्या-क्या बकने झकने वालों की बोलती बंद है।

मुंशी हर दिल अजीज चौक की पटिया पर इसी गुंताड़े में लगे हुए थे। इसी बीच किराना बाजार घुमना, लोहाई रोड, रेलवे रोड की ओर से ढोल, नगाड़ों बाजों गाजों अबीर गुलाल, मिठाइयों, हल्लागुल्ला, जिंदाबाद, टेंपो हाई, उल्लास, उमंग, उत्साह का जबर्दस्त मजमा ईद, होली, दीवाली के त्यौहारों की तरह त्रिपौलिया चौक में जुड़ने लगा। सब के सब अपने आपको लाइम लाइट में लाने के लिए आगे रहना चाहते हैं। मीडिया वाले फोटो जो खींच रहे थे। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं था। सब के सब अपने में मगन थे। इतने मगन कि देखते ही देखते अफरा तफरी मच गयी। मुंशी धीमे-धीमे मुस्कराते हुए हंसते हुए सब देख रहे थे। फिर रंगा खुशी के अंदाज में बोले जोश रहे पर होश न जाये।

चौक त्रिपौलिया लाइव कौन बनेगा होलिकाधीश

हां जी मैं बोल रहा हूं मान न मान मैं तेरा मेहमान। चौक त्रिपौलिया लाइव से कौन बनेगा होलिकाधीश में कैमरा मैन फन्टूश अली के साथ खबरों का बादशाह खबरीलाल।

चौक के चारो ओर से भीड़ बढ़ती जा रही है। लोहिया रोड से जहां तक मेरे और मेरे कैमरे की नजरें जा पा रहीं हैं मामा भान्जे, मामी जी, बिना कन्ने की पतंग वालों का जबर्दस्त रेला चला आ रहा है। रेलवे रोड से बहन बहनोई, छोटे बनराज का गैर जमानती गिरोह चला आ रहा है। किराने बाजार की तो महमा ही निराली है। यहां छोटे बड़े भाई जान, मामा जी जय श्री राम डा0 लोहिया श्रद्धांजलि सभा जैसे कई दरबार हैं। इन्हें आक्सीजन, राशन पानी मिलता है। कायमगंज से लेकिन यह मुलाइजा इधर फरमाते हैं। चौक में सच पूछो तो यह चौक की शान हैं। लोग आ रहे हैं लगातार आ रहे हैं।

हां चौक से नेहरू रोड, घुमना, नितगंजा बढ़पुर, जिला मुख्यालय की ओर बढ़िये। हमारे कैमरे की नजर जा रही है। अंटू मिश्रा के पुराने हाथी कार्यालय से वर्तमान पंजा आ बसा। शासन प्रशासन को अंगूठा दिखातीं सड़क के दोनो ओर दिल्ली के नम्बर वाली कीमती गाड़ियां और आल इण्डिया टैक्सियां। यहां से नितगंजा के मदरसे, बढ़पुर के केन्द्रीय टेलीफोन एक्सचेंज तक। आवास विकास में कमलधारी से तिलकधारी तक। हाथी के हाथ तक, तरंग से पतंग तक, पुराने शिवसैनिक से वर्तमान मुख्यमंत्री के मेजवान से लेकर अब खादी, पंजाधारी के भव्य आवास में बने कौन बनेगा करोड़पति के निर्देशक के अस्थाई दरबार तक सवारियां कम, कीमती गाड़ियां और अटैचियां ज्यादा। हम सरकार हैं, कानून बनाते हैं। क्या कर लेगा कोई हमारा, ज्यादा से ज्यादा फांसी दे देगा। हमें इसकी परवाह नहीं, कहीं भी हो हर चुनाव में जनता की सेवा करना हमारा कर्तव्य है। सब चले आ रहे हैं चौक की ओर कौन बनेगा होलिकाधीश।

हां देखिये हमारे कैमरे की नजर चौक से कहां तक जा रही है। केन्द्रीय कार्यालय से केन्द्रीय प्रतिनिधि तक, राजबब्बर से अजहरुद्दीन तक, टेलीफोन से अलमारी तक, बाल्टी से पतंग और बिजली के पंखे के बीच बटी खण्ड पार्टी तक। सारे के सारे सूरमा, मस्त कलंदर चलो चौक की तर्ज पर चले आ रहे हैं कौन बनेगा होलिकाधीश लाइव की तर्ज पर।

हां जी यह है चौक लाइव कौन बनेगा होलिकाधीश बिना समझे बूझे किसी भी पार्टी में किसी वक्त अपनी नाक घुसेड़कर प्यार की झप्पी के लिए संजयदत्त से लेकर अमर सिंह, जयप्रदा तक की भीड़ खैंचूं हिट जोड़ी तक। धरती पुत्र से लेकर चिर कुमारी बहन जी तक। हिन्दुस्तान से लेकर राजपूताना तक, बैकुण्डपुरी से लेकर हाथीखाना तक। विधायक निवासों से लेकर प्रमुख जिला पंचायत सदस्यों, प्रधानों, पूर्व प्रधानों तक, सांसदों, पूर्व एवं अभूतपूर्व सांसद तक। शातिर दिमांगों से लेकर कागजी समाजों, संस्थाओं के कम्प्यूटरीकृत प्रवक्ताओं तक। सारी होशियारी और चतुरई के बाद भी बेचारगी के पर्याय बने बनीशियों तक, हुजूरों से मजूरों तक, किन्नरों से कनखजूरों तक, असत्यों से पंकजों तक, मेजरों से कर्नलों तक, हाकिमों से हुक्कामों तक और क्रिश्चियन कालेज के मैदान में अपने लफ्फाज बेपेंदी के लोटों के करतबों से, आमादीन हो गये युवराजों के युवराज तक, सभी का योगदान है हमारे इस लाइव शो में सजाने संवारने के और लोकप्रिय बनाने में। मैं खबरीलाल अपने कैमरामैन फन्टूश अली के साथ आपके इस सहयोग के लिए धन्यवाद देता हूं।

जी हां आगे बढ़ते हैं बजरंगियों से लेकर रघुवंशियों तक, नवोदय से सर्वोदय तक, अन्ना से खन्ना तक, आचार्यों से प्राचार्यें तक, कमी के दोस्त कमी के दुश्मन बैगन से आलू तक, ददुआ से कदुआ तक, तिलक से तराजू तक, तलवार से अखबार तक, सेवा से मेवा तक, हड़ताल से पड़ताल तक, व्यापार मण्डलों से कमण्डलों तक, रसभरी से मसखरी तक, रोली से ठिठोली तक, होली से गोली तक, गली से मोहल्ले तक, गांव से चौपाल तक, खेत से खलिहान तक, हर ओर कहां से कहां तक गिनायें सुबह से शाम हो जायेगी। हर ओर चर्चा है आपके लाइव शो कौन बनेगा होलिकाधीश की।

सब अपनी धुन में मगन हैं। चौक में मौजूद हर आदमी कान में मोबाइल लगाए लखनऊ से जुड़ा था। पल-पल, छण-छण की खबर लेने को हर जाति वर्ग आयु और धर्म के लोगों का सैलाब। इसमें अवसर वादियों तमाशवीनों की बड़ी जमात भी शामिल है। सबको अपने से नहीं दूसरों से शिकायत है। इसकी क्या हैसियत है जो यहां मुंह उठाए चला आया।

मियां झान झरोखे देख रहे थे कि खबरी लाल ने मजमा जबर्दस्त लगा लिया। परन्तु उन्हें सूझ नहीं रहा है कि इसका समापन कैसे करें। चौक में जितना मजमा था। उससे कई गुना ज्यादा लोग अपने-अपने घरों पर बैठे यह लाइव शो देख रहे थे। भीड़ की बेचैनी बढ़ती जा रही थी और उसी हिसाब से खबरीलाल के भव्य विशाल ललाट पर पसीने की बूंदे बढ़ती जा रही थीं। मियां मौके की नजाकत समझ रहे थे। अब भीड़ में छींटाकसी शुरू हो गई। अनहोनी न हो जाए इस लिए न चाहते हुए उठे और खबरीलाल को धीरे से इशारा किया। मियां बोले भाइयों! कृपया शांत हो जाएं- ऐसा सन्नाटा कि सुई भी गिरे तो आवाज आए। फिर बोले आपको हुई परेशानी हम समझ रहे हैं- कृपा करके हमारी बात सुनिए- जो कुछ कहूंगा सच कहूंगा, सच के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा।

खबरीलाल तब तक सहकारी बैंक शाखा के बगल वाली गली से हांफते हांफते निकल चुके थे। कुछ लोगों ने टोका तो छोटी उंगली उठाकर इशारा किया और आगे बढ़ते रहे। चौक से थोड़ा दूर पहुंचने पर बदहवास सर पर पैर रखकर ऐसे भागे कि घर के दरबाजे पर पहुंचते गिर पड़े।

मियां झान झरोखे खबरीलाल के जाते ही निश्चिंत हो गए। वेलौस होकर बोले भाइयों मेहरवानी करिए और अपने इस साथी की बात को ध्यान से सुनिए। बताइए हमने आपसे कभी झूठ बोला है, धोखा किया है, छल फरेब की कोशिस भी कभी की है। मंत्रमुग्ध पूरा का पूरा मजमा एक स्वर में बोला नहीं कभी नहीं।

अब मियां और भी आत्म विश्वास से भरे बोले- साथियों सही बात यह है कि खबरीलाल ने मुख्यालय से ग्रीन सिग्नल की उम्मीद में यह लाइव शो आयोजित कर लिया। उनसे बहुत बड़ी गलती हुई- मुख्यालय से आयी डील। डबल डील नहीं हो पाई है- इसलिए कौन बनेगा होलिकाधीश की घोषणा अपरिहार्य कारणों से अगली होली तक के लिए रोकी जाती है। कार्यक्रम में आप द्वारा दिखाये गए उत्साह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और असुविधा के लिए क्षमा प्रार्थी! भीड़ में एक साथ आवाज आई – बुरा न मानो होली है। एक दिल जले ने गली-गली में शोर है खबरीलाल ……………………….! का नारा उछालना चाहा! परन्तु लोगों ने उसके मुहं पर प्यार भरा हाथ रखकर रोकते हुए कहा- बुरा न मानो होली है, होली है भाई होली है।

तुम डाल-डाल हम पात-पात

बताते हैं साइकिल वाले पहलवान इस बार शुरू से ही सख्ती बरत रहे हैं। नो झंडा आन गाड़ी, नो होर्डिंग, नो बैनर, नो प्रेस रिलीज काम अन आथराइज्ड पर्सन और जाने क्या-क्या। सख्ती इतनी की पंडित यादव के नए कथित गठजोड़ की शुभकामना होर्डिंग आनन फानन इलाकाई सूबेदार द्वारा पुलिस प्रशासन की मदद से हटवा दी गई। इससे पहले तो चुनाव परिणाम आने के बाद से ही यह लगने लगा था कि अब मैकूलाल के घंटाघर से लेकर जिले के हर गली कूंचे में बधाइयों, शुभकामनाओं के ऐसे गुब्बारे फूटेंगे, गप्पें शिगूफे छूटेंगे कि किन्नरों की कुशल से कुशल टीम भी शर्मा जाए।

परन्तु जो मान जाए वह सपाई क्या
जो जलेवी न बनाये वह हलवाई क्या!

साइकिल वाले पहलवान और यूपी केशरी के इस फरमान को हर सपाई ने न चाहते हुए सर झुकाकर स्वीकार किया। जहां बैनर होर्डिंग की मना ही है ठीक है। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है मीडिया चौथा खंबा है। जेब गरम है आगे संभावनाओं का अनंत आकाश है। हमें जैसी चाहें वैसे शुभकामना संदेश विज्ञापन छपवा सकते हैं। मीडिया वाले शेखी चाहे जितनी बघारें यह भी नेताओं, अधिकारियों को दी जाने वाली सहयोग राशि की तरह ही विज्ञापन की आक्सीजन पर कठपुतली की तरह नाचते हैं, नाच रहे हैं, जैसे चाहें वैसा नाच रहे हैं। सियासत के जानकार छपवा रहे हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देने वाले छाप रहे हैं। ताक धिना धिना धिन।

परन्तु इस बार साइकिल वाले पहलवान का इरादा फौलादी लगता है। विभाग बंटे नहीं- रामपुर के सपाई नबाब की शपथ भी पूरी नहीं हो पाई- वयान आ गया मुखिया का- भृष्ट मंत्री होंगे बर्खास्त, कार्यकर्ताओं के सहयोग से रखेंगे उन पर नजर। अब बताओ क्या करें कार्यकर्ता और क्या करें नेता  और मंत्री। इतनी तगड़ी शर्तें थीं तब फिर नियुक्ति से पहले बताना चाहिए था। हम डा0 लोहिया, जनेश्वर मिश्रा ब्रांड सपाई नहीं हैं। अगर होते तो विज्ञापनों पर उनका फोटो नहीं छापते। उनके लिए हैं तो जन्म दिवस और निर्वाण दिवस। वार्षिक कर्म कांड में कभी नहीं चूकते। महापुरुषों के बताए रास्ते पर चलने की शपथ लेना कभी नहीं भूलते। परन्तु हम हैं काम वाले दाम वाले सपाई। दाम नही ंतो काम नहीं। जिससे मिलेगा दाम/काम उसी का लेंगे नाम। हम नेतागीरी करने आये हैं धर्मादा/सत्संग करने नहीं।

मई 1963 में यहां हुए लोहिया के ऐतिहासिक चुनाव में कमान थामने वाले एक वयोवृद्व नेता से नहीं रहा गया। जोश में होश मत खोओ। बिना होश के मस्ताने हाथी का क्या हश्र हुआ। तब भी तुम लोग नेता जी की बात को गंभीरता से नहीं लेते। अपनी खुद की दुकान चलाने के प्रपंच मत करो। इससे न सरकार चल पाएगी और न पार्टी। दुलराने के अंदाज में बोले हंसीखुशी का मौका है। हमारी बात का बुरा मत मानना। तुम्हारे इलाके की चौकी का बेईमान दरोगा लूटने खाने की गरज से तुम्हारे घर आकर तुम्हारी हां में हां मिलाने लगे। इससे किसी का भला नहीं होगा। भला तब होगा जब लोगों पर रुआब गांठने, एैठ दिखाने, ठेका टेंडर आदि के मकड़जाल में फंसने फंसाने के बजाय पूरे उत्साह, बफादारी के साथ पार्टी के लिए काम करोगे। प्रदेश को पार्टी के घोषणापत्र के अनुसार विकास के रास्ते पर लाने, कानून का राज्य कायम करने में सहायक बनोगे। एक विघा संतोषी से नहीं रहा गया। बोला आपकी एक-एक बात लाख टके की है। पर क्या आज कल बिना मांगे की सलाह की कोई कीमत नहीं रह गई। तुलसीदास भी कह गए पर उपदेश कुशल बहुतेरे। दादा चेरिटी विगिन्स फ्राम हो या जरा इन उपदेशों को अपने स्वयं के लोगों पर लागू करके आदर्श स्थापित करो। डा0 लोहिया और जनेश्वर जी की आत्मा को भी शांती मिलेग और प्रदेश में सच्चा समाजवाद आ जाएगा।

और अंत में! कब तक ढोते रहे तुम्हारी बेमतलब की उस्तादी!

यह जो जनता है न लोकतंत्र की भगवान है। यह उस्तादों की उस्ताद है। इसका करिश्मा इसका निर्णय अजब-गजब है। मई 2007 की याद है न- इसी चौक में हाथी चिंघाड़ रहा था अगस्त 2007 में। उत्साह इतना कि 1 जून 2007 तक सपा साइकिल और मुलायम की जय जय कार करने वाले हजरत चुनाव जीत कर भी साइकिल छोड़कर 12 जून 2007 को हाथी पर सवार हो गए।

नतीजा सामने हैं- अंटू मिश्रा के सामने पंजे के अलंबरदार बनकर जितने वोट पाकर हार गए थे। इस बार उससे लगभग आधे वोट पाकर जीत गए। पतंग कटी तो नहीं परन्तु घिस्सा जोरदार है| साइकिल का बहुमत इतना प्रचंड है कि लखनऊ वाले तो दूर जिले और नगर के साइकिल वाले भी नहीं पूछ रहे हैं- ऊपर से ठुमका लगाकर कह रहे हैं-
कोई आलमस्त कोई मालमस्त,
कोई मस्त फकीरे वाने में,
हम इधर मस्त तुम उधर मस्त
क्या रखा है दिल को जलाने में।

एक पुराने चम्पू और उससे भी पुराने सपाई ने फिकरा कसा-

हमें तो इस बार मिली मुद्वतों बाद आजादी,
कब तक ढोते रहें तुम्हारी बेमतलब की उस्तादी!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट
1/432 शिवसुन्दरी सदन
लोहिया पुरम, आवास विकास
कालोनी, बढ़पुर, फर्रुखाबाद।