फर्रुखाबाद परिक्रमा: अधीरपुर नरेश का दलबदल और लोहिया के कलियुगी चेले

EDITORIALS

गंगा दरबाजे की यज्ञ कथा-

मुंशी हर दिल अजीज गुलाबी कोठी में हुए विशाल यज्ञ में भाग लेकर प्रसाद छककर सीधे मियाँ झान झरोखे के यहाँ पहुँच गए| मियाँ भी आम हॉउस के यज्ञ में शामिल होकर लौटे थे| मुंशी को देखते ही बाग़-बाग़ हो गए- बोले भैया मेरे, अब तो इस जिले और शहर के भाग्य ही खुल गए| लोहिया के कलियुगी चेलों ने सारी गन्दगी हटाने मिटाने का ठेका स्वयं अपने नाम कर लिया है| चुनावी वर्ष है कम से कम इस वर्ष तो कमीशन खोरी नहीं होगी और काम भी ठीक-ठाक होगा|

मुंशी बीच में ही बोल पड़े- होश में आओ मियाँ होश में| यहाँ शहर और जिले की चिंता किसी को नहीं है| अब चरखा दांव केवल सैफई के पहलवान ही नहीं चलाते उनके चेले भी चरखा दांव में पारंगत हो गए हैं| किसी ने जिला पंचायत चुनाव में ऐसा दांव चला कि आँख के अंधे मगर गाँठ के पूरे दोनों अगिया बैतालों की जेबों से करोडो रुपये गुलाबी कोठी की आढत पर आ गए| जमकर बन्दर बाँट हुआ कोई यहाँ गिरा कोई वहां गिरा| साइकिल तो आई हांथी के पाँव के नीचे| ध्वजाधारी हो गए लल्लू जमघटों के साथ पूरी हनक और ठसक के साथ हांथी पर सवार| ऊपर से फतबा यह कि जो कुछ किया वह चरखा दांव के हिंद केसरी की सहमति और स्वीकृति से ही किया| इसे कहते हैं चोरी और ऊपर से सीना जोरी| नतीजतन हांथी निकल गया बहुत आगे| साइकिल सवार शून्य पर आउट हो गया| सूबे भर में शायद ही किसी पार्टी प्रत्याशी की किसी चुनाव में ऐसी दुर्दशा और छीछालेदर हुयी हो| लोहियापुरम से लेकर विक्रमादित्य मार्ग तक अफरा-तफरी मच गयी| जांच-पड़ताल हुयी पर वाह रे चरखा दांव जिन्हें जिन्हें धिक्कारा जाना चाहिए था दण्डित किया जाना चाहिए था उन्हें फर्रुखाबाद केसरी का खिताब तो मिला ही अमृतसर मेल में AC कोच में आरक्षण भी मिल गया| फिर ऐसा लगा कि जो कुछ हुआ चरखा दांव के हिंद केसरी की सहमति और स्वीकृति से ही हुआ| इस मामले में की गयी छानवीन की कहानी मियाँ हम तुम्हे बाद में बतायेंगें जिससे फर्रुखाबाद केसरी को जोर का झटका ज़रा धीरे से लगे| फिलहाल तब तक भला फर्रुखाबाद केसरी के अलावा शहर और जिले में गन्दगी हटाने का ठेका लेने की हिम्मत कौन कर सकता है?

मियाँ झान झोरेखे मुंशी हर दिल अजीज की यह लतरानी सुनकर सन्नाटे में आ गए| बोले क्या बताएं मुंशी हम तो आम हॉउस में घंटों चले यज्ञ में पड़ने वाली आहुतियों और आगे-पीछे हो रही काना फूसियों के चक्कर में पड़ गए| आम हॉउस के इनर सर्किल ने पूरे तीन महीने मिशन 2012 के आरक्षण कोच में कई सवारियों को आरक्षण दिलाने की भरपूर कोशिश की| नतीजतन दाना पानी की जमकर जुगाड़ हुयी परन्तु दाल नहीं गली| जिजी नाचेंगी तो हम भी नाचेंगें की तर्ज पर स्वयं भी हवन यज्ञ का वृहत आयोजन कर डाला| अब ज़रा पड़ने वाली आहुतियों की बानगी देखिये-

गली-गली में शोर है स्वाहा…. हममे कोई चोर है स्वाहा..
हमें छोड़ सब चोर हैं, चोर भी सीना जोर हैं…

हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है| हिंद केसरी जिंदाबाद. फर्रुखाबाद केसरी मुर्दाबाद स्वाहा.. आदि आदि…………|

मियाँ बोले मजे की बात तो यह रही कि दोनों यज्ञ शालाओं के बीच एक किलोमीटर से भी कम की दूरी में सुरक्षा के कड़े प्रबंध थे| मुखबिर और जासूस दोनों यज्ञ में आने जाने वालों पर कड़ी नजर रखे हुए थे| कुछ दोनों यज्ञों में आहुतियाँ दे आये| तीसरी जगह यज्ञ हो तो भी जाने को तैयार है| मिशन 2012 को कामयाब बनाने के पूरे इंतजाम हैं|

मुंशी बात को गहरे तक समझाने के अंदाज में बोले अच्छा मियाँ यह मामला है गन्दगी कालिख मिटाने का| हमें तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता यह तो एक-दूसरे को देख लेने समझ लेने और घाट लगा देने की गला काट प्रतियोगिता है| जनहित में इसका जारी रहना बहुत जरूरी है| मियाँ और मुंशी बहुत देर घर से निकल चौक की पटिया पर बैठे खुसुर फुसुर कर रहे थे| बाद में इंकलाबी अंदाज में दोनों हाँथ उठाकर बोले-

दुश्मनी जम के करो मगर यह ख्याल रहे,
जब कभी फिर से मिले तो शर्मिन्दा न हों|

अधीरपुर नरेश की अधीरता-

अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो कल 30 मई पत्रकारिता दिवस को अपने अधीरपुर नरेश पुनः औरों से भिन्न सच्ची अच्छी और राम लला को समर्पित पार्टी के कम से कम अपने जिले में महानायक बन जायेंगें| अधीरता या दल बदल का यह रिकार्ड अपने उस्ताद से 19 है या 21 इसका फैंसला तो फर्रुखाबाद की जनता इन जैसे शूरवीरों को भारी मतदान करके घाट लगाकर देगी| इस बार इसका हमको तो पक्का भरोसा है| इसीलिये हम बार बार कहते हैं जागो वोटर जागो हर चुनाव में निष्पक्ष और निर्भीक होकर भारी मतदान करके जातिवादी अवसरवादी दल बदलुओं चुनाव को महँगा करने वाले शूरमाओं को उनकी औकात बता दो|

पत्नी भक्तों की बढ़ती जमात-

पुत्र मोह ने ऐसा महाभारत किया कि कृष्ण जैसे सारथी भी संहार और महाविनाश को थाम नहीं पाए| राजनीति में भी पुत्र मोह कोई नयी बात नहीं है पर अब तो ज़माना बदल रहा है कारण कुछ भी हो राजनीति की विसात पर द्रोपदियों को दांव पर लगाने वाले धर्मराजों की संख्या इस बार बढ़ने के पूरे आसार बन रहे हैं| जिला पंचायत चुनाव में इस प्रयोग के परिणाम कुछ ख़ास नहीं रहे| परन्तु वह पुरुष ही क्या जो हिम्मत हार जाए विशेष रूप से अपनी पत्नियों के बारे में| मिशन 2012 में यह प्रयोग बड़े पैमाने पर किये जाने के आसार बन रहे हैं| जिले ही नहीं आस-पास के जिलों से भी यही ख़बरें हैं| कांग्रेस सपा, बसपा, भाजपा और जाने क्या-क्या हर ओर से यही ख़बरें हैं| इसीलिये सब फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं| चुनाव को अभी काफी समय शेष है| इस पर लम्भी चर्चा बाद में कभी| तब तक आपको कोई सूचना इस संदर्भ में मिले तो हमें बताईगा|

और पप्पू पास हो गया-

कभी जिले की राजनीति में जिनकी तूती बोलती थी| उनके परिवार को राजनीति ने नस्तनाबूत करने की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष षड्यंत्रकारी गतिविधियों में वही लोग अपने मौजूदा आकाओं के इशारे पर लगे हैं| जिनका जिले की राजनीति में येनकेन प्रकरेण सत्ता सुख भोगने का लंबा इतिहास है| आजादी से पहले का भी और बाद का भी| ऐसे में बहुत छोटी सी राजनैतिक भूमिका के लिए ही सही पप्पू समीपवर्ती जनपद एटा भेजे गए| तब तो आपको हमको फिलहाल पप्पू की कथित बुराईयों को को भुलाकर यही कहना पडेगा चलो आखिर में पप्पू पास हो गया| यहाँ यह भी याद दिलाना है कि जब मौजूदा आकाओं का राजनीति में कोई अता-पता भी नहीं था| तब पप्पू के पिता श्री ने 2 अक्टूवर 1977 को झंडा सत्याग्रह में कासगंज में अपनी गिरफ्तारी दी है| पूरे पंद्रह दिन जिला एटा कारागाह में रहे थे| जौ कौमें जमातें समाज और परिवार अपने पुरखों को भूल जाते हैं उनका सम्मान नहीं करते वह अपने विनाश की भूमिका स्वयं लिखते हैं|

और अंत में-
परिक्रमा में राजनीति की छौंक कम करने का मेरा विचार
फर्रुखाबाद परिक्रमा पर जिले सहित देश प्रदेश से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं ने मुझे अभिभूत कर दिया है| बहुतों ने सराहा है| कुछ ने धिक्कार और जमकर मेरी लानत मलानत की है| मै सबको धन्यबाद ही नहीं कृत्यज्ञता भी ज्ञापित करता हूँ| अपनी गलतियों कमियों को संज्ञान लेकर मै उन्हें सुधारूँगा और दूर करूंगा| परिक्रमा में राजनीति की छौंक कम करने का भी मेरा विचार है| क्योंकि इसमें लगे लोगों की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता निरंतर कम हो रही है| परिक्रमा का सामान्य उद्देश्य जनपद की प्रमुख घटनाओं व्यक्तियों के क्रिया कलापों पर निष्पक्ष और निर्भीक टिप्पणी करना है जो हर आम और ख़ास की समझ में आ सके| उत्क्रष्ट कालजय साहित्यिक रचना का सर्जन मेरे इस प्रयास का लक्ष्य नहीं है| मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसा संभव भी नहीं हैं| फिर भी आपकी सहाशय पूर्ण टिप्पणी मेरा मार्ग दर्शन करती रहेगी| ऐसा मेरा विश्वास है और ऐसा ही मेरा प्रयास रहेगा| पुनः बहुत बहुत धन्यबाद|

(लेखक वरिष्ट पत्रकार के साथ वकील व समाजवादी चिंतक है)

प्रस्तुति-

सतीश दीक्षित (एडवोकेट)
1/432, आवास विकास कालोनी फर्रुखाबाद

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