फर्रुखाबाद परिक्रमा- धोखे की मोहब्बत से अदावत बेहतर

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

देखना है पचास साल बाद कौन सायकिल सिंह सांसद मेले में डा0 लोहिया को श्रद्धांजली अर्पित करने आता है।

सपा प्रदेश कार्य समिति की लखनऊ में हुईं हंगामी बैठक के बाद जिले में भूचाल सा आ गया है। बात केवल इतनी सी है कि बैठक में कहा गया कि जिन सीटों पर पार्टी ने अभी तक लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। उनके लिए शीघ्र ही घोषणा कर दी जाएगी। फर्रुखाबाद में भी सपा प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुई है। नतीजतन फर्रुखाबादी सपाइयों के पंख लग गए। तू चल मैं चल चला चल कि पैंतरेबाजी का नतीजा देखते ही बनता है।

कहते हैं मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। दरबारी की दौड़ अखबारी तक। इधर अधीरपुर नरेश के सपा में आने की खबरें गर्म हुईं या गर्म की गईं। दरबारीलाल अखबारों में दौड़ने लगे। यह प्रत्याशी हुए तब फिर यह करेंगे। यह नहीं हुए तो भुस भर देंगे। जाने क्या क्या करेंगे नहीं करेंगे। लगभग सभी ने अखबारों के माध्यम से अपनी अपनी मठाधीशी उछाली या उछलवा दी। जिसकी थोड़ी बहुत रह गई। उसने उसे बिजली टेलीफोन के खंबों पर या जहां कहीं हाट बाजार में जगह मिली वहां पर टंगवा दी। चौक के मजदूर बाजार में अपने ताऊ के साथ काम की खोज में एक युवा मजदूर पहली बार आया था। चौक सहित पूरे बाजार में खंबों पर टंगे लोगों की मुस्कराती हाथ जोड़े लगी होर्डिंग को देखकर बोला। ताऊ। यह सब क्या है। यह लोग कौन हैं जो खंभों पर टंगे हुए हैं। आखिर इनकी गलती क्या है।

ताऊ बेचारे सकपका गए। फिर बोले जैसे हम लोग यहां मजदूरी या काम की खोज में आते हैं। वैसे ही यह लोग भी काम की खोज में गली गांव बाजारों में टंगे हुए हैं। नौजवान मजदूर कुछ समझ नहीं पाया। फिर बोला इनका काम बहुत कठिन है क्या। हम लोग तो काम न मिलने पर घर लौट जाते हैं। यह बेचारे तो रात दिन सर्दी गर्मी बरसात में हाथ जोड़े खींसें निपोरे खड़े ही रहते हैं। नौजवान मजदूर अपने ताऊ से मचल कर बोला। ताऊ बताओ न आखिर यह फंडा क्या है।

ताऊ मूछों में मुछों में मुस्कराते हुए बोले। सब समझ जाओगे बेटा। लगता है सर्दी के कारण आज काम मिलेगा नहीं। ताऊ कई जगह से फटी ऊनी चादर को लपेट कर अलाव के पास बैठ गए। बोले पिछली होली से पहले ले मेले की तुम्हें याद है न। उससे भी बड़ा मेला इस वर्ष या अगले वर्ष होने वाला है। यह सब उसी की तैयारी है। यह सिंहों सूरमाओं के मेले हैं। हमारे तुम्हारे जैसे ऐरे गैरे नत्थू खैरों के नहीं। पिछला मेला विधायक सिंहों का था। आने वाला मेला सांसद सिंहों का होगा।

यहां फर्रुखाबाद में नहीं पूरे प्रदेश में इस बार सायकिल सिंहों की रेलम पेल है। क्योंकि पिछले मेले में हाथी सिंह हाथ सिंह और कमल सिंह की दाल नहीं गली। यहां लोक सभा में इस बार सायकिल पर कौन सिंह बैठेगा। दिल्ली लखनऊ में बैठे बड़े सायकिल सिंहों ने अभी से इसकी घोषणा नहीं की है। जिले में सायकिल पर बैठने के इच्छुक जो भी सिंह दिल्ली, लखनऊ जाते हैं। वहां के बड़े सायकिल सिंह उसी के हवा भर देते हैं। वह बूंकता हुआ यहां आकर सायकिल पर बैठने की अपनी ठेकेदारी पक्की मानने लगता है।

युवा मजदूर को मजा आ रहा था। इतरा कर बोला ताऊ पहेलियां न बुझाओ। बताओ न कौन कौन से सिंह प्रमुख हैं जो सांसद सिंहों के मेले में सायकिल की ठेकेदारी पक्की करना चाहते हैं। ताऊ भी बोले बताता हूं बेटे बताता हूं। जरा दो चाय लेकर आ। युवा मजदूर को जैसे पर लग गए। त्रिपौलिया चौक के मजदूर बाजार की सबसे अच्छी कही जाने वाली चाय की दुकान से चाय ही लेकर नहीं आया, बेकरी के दो बिस्किट भी ले आया।

ताऊ भी तमक कर बैठ गये। चाय की चुस्की लगाकर बोले। बेटा यह अपना फर्रुखाबाद जिला है न। यह समाजवादियों का गढ़ है। यहां से पूरे पचास साल पहिले डा0 राममनोहर लोहिया चुनाव लड़े थे। आज इसके आस पास समाजवादी सायकिल सिंहों की भरमार है। कन्नौज से मुख्यमंत्री की पत्नी, मैनपुरी से मुख्यमंत्री के पिता (सायकिल सिंहों के सर्वमान्य मुखिया), एटा से पिछले चुनाव के कल्याण सिंह (सपोर्टिड बाई सायकिल सिंह) के स्थान पर उन्हीं से जूझने वाले सोमरस सिंह ( पिछले चुनाव में सपोर्टिड बाई हाथी सिंह) बदायूं से मुख्यमंत्री के चचेरे भाई की घोषणा हो चुकी है।

ताऊ थोड़ी देर रुक कर बोले फर्रुखाबाद में सायकिल सिंहों की रेलमपेल इस लिए है कि सभी को यही लगता है कि सायकिल की सवारी वही सबसे अच्छी कर सकता है। कहां कब थे, कब तक रहे कब छोड़ा कब फिर आ गए कब कहां क्या किया, क्या नहीं किया। मुखिया के विरोध में लड़े, मुखिया के साथ लड़े, थैली भी ली और लड़े भी, सड़क भी बनाई और लड़े भी, विरादरी से लड़े और विरादरी के लिए भी लड़े। धीरपुर से लड़े और अधीरपुर से भी लड़े। सुख से लड़े और शयन करते हुए भी लड़े। चंदे से लड़े और धंधे से भी लड़े। जब जहां जो सवारी मिली उससे लड़े। बिना सवारी के भी लड़े। कुछ तो दिखाई ही तब पड़ते हैं जब लड़ाई का ऐलान हो जाता है। चाय पीकर ताऊ अपनी रौं में थे। एक एक सायकिल सिंह की खोलते जा रहे थे। बताते जा रहे थे। भतीजा छोटा था। लेकिन बेबकूफ नहीं था। मोबाइल आन कर हाथ में पकड़ लिया। ताऊ जो कुछ जो बता रहा था। वह सबका सब सबसे बड़े सायकिल सिंह के कन्ट्रोल रूम में रिकार्ड होता जा रहा था। कहा भी है कि

धोखे की मोहब्बत से अदावत बेहतर,
सौ बार की गुलामी से बगावत बेहतर।।

ताऊ कहते रहे। भतीजा सुनता भी रहा और रिकार्ड भी करता रहा। देखना है डा0 राममनोहर लोहिया के ऐतिहासिक चुनाव के पूरे पचास वर्ष बाद होने वाले सांसद मेले में कौन सिंह सायकिल की ठेकेदारी करने और डा0 लोहिया को श्रद्धांजली देने मैदान में आता है।

अधिवक्ताओं का चुनाव

आज से ठीक दो दिन बाद जिले की सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थाओं में गिनी जाने वाली बार एसोसिएशन का चुनाव लम्बी प्रतीक्षा के बाद सम्पन्न होने जा रहा है। विधि स्नातक होना जिस संस्था के सदस्य होने की पात्रता हो। उसका चुनाव साफ सुथरा और विधि सम्मत होने की आशा ही नहीं सामान्य जन के लिए विश्वास कारक होना चाहिए।

हमारे चुनाव जातिवाद, भ्रष्टाचार, दबंगई, माफियागीरी और अल्पमतदान के पर्याय बनते जा रहे हैं। किसी की सैद्धान्तिक या नीतिगत आलोचना को जातीय या व्यक्तिगत विरोध की बानगी के रूप में प्रस्तुत करने का चलन सा बन गया है। एसोसिएशन की आजीवन सदस्यता शुल्क का चेक दिल्ली जाकर ही भेजने वाले सदस्य महोदय दिल्ली जाकर ही सब भूल जाते हैं। परन्तु एसोसिएशन के सदस्य सहित लोक सभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं का मात्र तेरह प्रतिशत मत पाकर पहिले विधिमंत्री और फिर विदेश मंत्री बन जाते हैं। नजदीकी मित्र या सम्बंधी ही सही उसका बकाया सदस्यता शुल्क जमा करना या करवाना दार बांटना या बंटवाना किसी भी दृष्टि से क्षम्य नहीं कहा जा सकता। आप बुद्धिजीवी हैं, विधिवेत्ता हैं। आपसे यदि सामान्य जन निष्पक्ष और निर्भीक होकर शत प्रतिशत मतदान की अपेक्षा करते हैं तब फिर उसमें क्या गलत करते हैं। विश्वास है कि आप सामान्य जन के विश्वास को नहीं तोड़ेंगे और निष्पक्ष और निर्भीक होकर शत प्रतिशत मतदान करेंगे। वैसे जैसे आपकी मरजी।

और अंत में……………. लो क्रांति हो गई!

कहावत है आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास!

बड़े गुस्से और रोष में क्रांति करने मतलब भाजपा का सूपड़ा साफ करने के लिए अपनी मूल पार्टी से दूसरी बार टाटा की थी। बिरादरी के नाम पर पिछड़े के नाम पर और न जाने किस किस के नाम पर कहां कहां कितनी गलबहियां कीं परन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात। जब जन ही साथ में नहीं रहे तब जनक्रांति कहां से हो। नतीजतन बेटे के भविष्य के खातिर जान बची और लाखों पाए और लौट के रामलला के सखा भाजपा में आए। कर दिया थोक में विरादरी का सौदा। देखते हैं भाजपा से कौन लड़ता है। स्वयं रामलला के सखा उनके बेटे या उनके हनुमान। धीरपुर नरेश की बेचैनी कोई ऐसे ही नहीं है। पिछली बार भी बैरियर तोड़ बाबा के खौफ में भाजपा छोड़ सपा में आए थे। इस बार तो रामलला के सखा ही आ रहे हैं। अधीरपुर नरेश की चिंता का सशक्त कारण है। पिछली बार रामलला साथ थे तब भी बात नहीं बनी। अबकी बार साथ आ रहे हैं तब भी बात बिगड़ रही है। आग आगे देखिए होता है क्या!

चलते चलते – बात लगता है कुछ ज्यादा ही बिगड़ गयी है। अनाधिकृत रूप से पार्टी का झंडा बैनर पोस्टर संकल्प 2014 जैसे स्टीकरों की भरमार होने की जिले जिले से आने वाली तमाम शिकायतें सपा मुखिया तक पहुंच गई हैं। फरमान पर फरमान जारी हो रहे हैं। परन्तु जो मान जाए वह सपाई क्या? कुछ दिल दिल जले अवसरवादी क्लास वन कान्टेक्टर अब यह कहने लगे हैं कि नेता जी को हो क्या गया। हमारे कर्मों कुकर्मों के कारण और कुछ तो हमको मिल नहीं सकता। झंडा, बिल्ला, स्टीकर, होर्डिंग, विजिटिंग कार्ड से थोड़ी हनक जलवा बनता है धंधा चलता दौड़ता है। अब इस पर भी अंकुश! तब फिर यहां रहने से क्या फायदा! देखना है कि आने वाले दिनों में मुलायम के कठोर फरमान का क्या असर होता है। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट