जन्मदिवस विशेष: मैं आजाद हूँ आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा

LUCKNOW UP NEWS सामाजिक

डेस्क:जिस आजादी से हम सांस ले रहे हैं इसे पाने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। 23 जुलाई को क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती के रूप में पूरा देश मनाता है |दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे आजाद ही रहे हैं आजाद ही रहेंगे|मात्र 15 साल के चंद्रशेखर तिवारी काशी के संस्कृत पाठशाला में धरना देते हुए पहली और अंतिम बार अंग्रेजों के हाथ गिरफ्तार हुए थे। कोर्ट में ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट ने जब उनका नाम पूछा तो उन्होंने जवाब दिया आजाद पिता का नाम स्वाधीनता और घर का पता जेल। उनके पास एक विशेष प्रकार की पिस्टल हुआ करती थी जो वर्तमान में प्रयागराज के संग्रहालय में मौजूद है। लखनऊ राज्य संग्रहालय के निदेशक डा.एके सिंह ने बताया कि आजाद की पिस्टल से फायर होने के बाद धुंआ नहीं निकलता था। इसकी वजह से अंग्रेज पेड़ों के पीछे से पता नहीं लगा पाते थे कि गोली कहां से चली।पिस्टल को अमेरिकन फायर आर्म बनाने वाली कोल्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी ने 1903 में बनाई थी। जो अब कोल्ट पेटेंट फायर आर्म्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के नाम से जानी जाती है। प्वाइंट 32 बोर की पिस्टल हैमरलेस सेमी आटोमैटिक थी। इसमें आठ बुलेट की एक मैंग्जीन लगती थी। गोली चलने के बाद इससे धुआं नहीं निकलता है जिससे शहीद चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों से मोर्चा लेने में सुविधा हुई थी।आजाद पेड़ों की आड़ से लक्ष्य कर गोली चलाते थे। पिस्टल से धुआं न निकलने से अंग्रेज अफसर और सिपाही नहीं जान पाते थे कि वह कब किस पेड़ के पीछे हैं। आजाद ने अपनी इस पिस्टल को बमतुल बुखारा नाम दिया था। 1976 में लखनऊ से प्रयागराज संग्रहालय में ले जाकर रखा गया।