डेस्क: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में दावेदारी कर रहे कई दावेदारों का खेल आरक्षण बिगाड़ने वाला है। पिछले कई सालों से मतदाताओं को रिझाने के चक्कर में वे बड़ी पूंजी लगा चुके हैं और अब आरक्षण के फेर में उन्हें यह पूंजी डूबने का डर सता रहा है। आरक्षण आवंटन अभी जारी नहीं हुआ है, इसलिए अपने मन मुताबिक सीट निर्धारित कराने के लिए वे कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन इस बार उन्हें कहीं से कोई आश्वासन नहीं मिल पा रहा।पिछले चुनाव के बाद से ही मतदाताओं को रिझाने के लिए करते रहे हैं भागदौड़
इस बार 1995 से लेकर 2015 तक के पंचायत चुनाव की समीक्षा की गई है। इसी के आधार पर यह तय हुआ है कि जो गांव कभी भी एससी या ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं किए गए हैं, उन्हें इस बार आरक्षित किया जा रहा है। पिछले साल तक लगातार कई बार मनमुताबिक सीट रहने के चलते इस बार भी दावेदारों को उनके मुताबिक ही सीट निर्धारित होने की उम्मीद थी। पिछला चुनाव हारने के बाद कई लोगों ने पूरे पांच साल तक गांव में मतदाताओं को रिझाने में समय बिताया है। पर, आरक्षण को लेकर आए शासनादेश पढ़ने के साथ ही उनकी धड़कने बढ़ने लगी हैं और सारी मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। परफार्मेंस ग्रांट पाने वाले जिले के 34 में से कई गांवों में भी आरक्षण बदल सकता है।
खोज रहे विश्वसनीय प्रत्याशी
आरक्षण आवंटन की सूची भले न जारी हुई हो लेकिन लोगों को इस बात का अनुमान लग गया है कि उनके गांव की सीट किस वर्ग के पाले में जाएगी। इसे देखते हुए उसी वर्ग का कोई विश्वसनीय व्यक्ति खोजने में लगे हैं। उसी व्यक्ति पर दांव लगाकर पांच सालों की मेहनत को सफल बनाने की तैयारी की जा रही है।