फर्रुखाबाद:(अमृतपुर प्रतिनिधि) गांव से शहर तक के लोगों की थाली से अपने यहां की अरहर दाल की सोंधी महक लगभग गायब हो चली है। किसान बताते हैं कि तीन दशक जनपद में अरहर दलहन की प्रमुख फसल होती थी। जिसमें किसानों नें बड़ा मुनाफा भी होता था और फसल में लागत भी कम होती थी| लेकिन अब खेतों से अरहर की फसल लगभग गायब है|
जनपद में अस्सी के दशक तक अरहर की खेती होती थी। लेकिन नब्बे के दशक में अरहर की पैदावार कम होने लगी और धीरे-धीरे 1995 के बाद अरहर की खेती सिमटने लगी। किसान बताते हैं कि 2000 आते आते किसान इसकी खेती से लगभग पूरी तरह से दूरी बना ली| किसानों का कहना है कि अरहर के उत्पादन में गिरावट की मूल वजह इसके पौधों में फूल कम लगना और फूलों का झड़ना रहा। एक समय था कि अरहर के पौधे फूल से लद जाते थे। एक पौधे में सैकड़ों छिमीयां लगती थीं, आज आलम है कि एक पौधे में एक से दो दर्जन छिमीयां भी नहीं लग पाती हैं। इसके साथ ही किसान अरहर की खेती के लिए आवारा पशुओं को भी जिम्मेदार मानते है|
(ब्रजकांत दीक्षित अमृतपुर)