फर्रुखाबाद: जब तक भारत में लोकतंत्र जीवित है चुनाव तो आते जाते ही रहेंगे| चुनाव प्रक्रिया में भी सतत परिवर्तन होते रहेंगे|हाथ उठाकर चुनावो की शुरुआत से लेकर बैलेट पेपर और मतपेटी का सफ़र तय करता हुआ चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वीवीपेट के दौर से गुजर रहा है| हो सकता है आने वाले चुनाव में मोबाइल पर ओटीपी डाल वोट डाले जाए और आप *1234*1# डायल कर अपना वोट कहाँ पड़ा इसे पुष्ट कर सके|
नेताओ के चुनाव लड़ने के तरीके बदले| पहले लंबरदारी चलती थी, फिर ठोकोदारी (डकैतों और गुंडों को मतपेटी लूटने का) का दौर चला| वक़्त बदला तो ठेकेदारी का भी दौर चला और पोल खुली, विश्वसनीय समर्थको का अभाव हुआ तो चुनावो में प्रोफेशनल आ गए और अब मतदाताओ के दिमाग को प्रभावित करने के लिए व्यापारिक अनुबंध होने लगे| जीत गए तो कोई गम नहीं और हार गए तो ठीकरा किसके सर फोड़े इसका इंतजाम कोई आज की बात नहीं जमाने से हो रहा है| वोटिंग ख़त्म होते ही योगी ने राजभर को चलता कर दिया| ऐसे राजभरो की भरमार है अभी और किनारे होंगे| न केवल सत्ता दल वाले अपितु जो सत्ता से बाहर है वे भी करेंगे| ऐसा पिछला इतिहास रहा है|
जब परिणाम पूर्व में अंदाजित हो जाते है तो चुनाव परिणाम जानने का मजा ख़त्म सा हो जाता है| कुछ ऐसा ही इस बार आम जनता में मतगणना के प्रति रुझान में लग रहा है|
ऐसे समय में आज हम नए जमाने के वोटर्स के लिए कुछ इतिहास खोद कर लाये है जो पिछले 10 सालो में जेएनआई के खजाने से निकाला गया है| उम्मीद है पाठको को पसंद आएगा|