पेरिस अटैक: हमले के पीछे फ्रांस खुद भी हो सकता है

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paris6दिल्ली: “इस हमले से सबसे ज़्यादा फ़ायदा किसे हुआ है? फ़्रांस और जर्मनी जैसे देश कभी भी ये नहीं चाहते थे कि सीरिया और इराक के शरणार्थियों को अपने देश में आने दें। जब आयलान कुर्दी नाम के बच्चे का शव मिला, तभी से इन यूरोपीय देशों पर दबाव है कि वो शरणार्थियों को अपने देशों में आने से रोकें नहीं, लेकिन आतंकी हमले के बाद अब इन देशों के पास बहाना है कि शरणार्थियों के साथ आतंकी आते हैं इसीलिए अब हम और लोगों को शरण नहीं देंगे।” ये बातें कह रहे हैं पेरिस के कुछ मुसलमान। मैंने कहा – आपका कहना है कि ये हमला फ़्रांस की सरकार ने खुद ही अपने ऊपर करा लिया? जवाब मिला,“बिल्कुल – ये सोचिए ना इस हमले से फ़ायदा किसे हो रहा है।

यूरोस्टार पर सवार होने से पहले मुझे एक टैक्सी ड्राइवर भी मिला – तौफ़ीक अफ़्रीकी मूल का है लेकिन दक्षिणी फ़्राँस में पैदा हुआ, पला-बढ़ा। मैंने बताया कि मुझे प्रत्यक्षदर्शी मिले जो रोते-रोते मुझे बता रहे थे कि हमलावरों ने अल्लाहू अकबर के नारे लगाए, साथ ही कह रहे थे कि सीरिया का हमने बदला लिया है। तौफ़ीक का कहना है – “ मेरी टैक्सी में एक प्रत्यक्षदर्शी बैठा, जिसने ये कहा कि वो उसी कॉन्सर्ट हॉल में था, लेकिन उसने किसी को भी अल्लाहू अकबर का नारा लगाते नहीं सुना”।

एक साथ बात करने का माहौल नहीं था। यूरोस्टार में बैठकर मैंने फ़्रांस के कुछ लोगों से अलग से बात की। मुझे एशियाई मूल का देखकर पहले बात करने से कतराए पर जब मैंने मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दर्द के बारे में बताया तो कुछ लोग बात करने लगे। बोले – चाहे न्यूयॉर्क का 9/11 का हमला हो या मेडरिड,मुंबई, लंदन या पेरिस जो भी ये कह रहा है कि ये हमले सरकारों ने खुद ही करवा लिए वो सच्चे कारणों को समझने से कतरा रहा है। समस्या के जड़ में जाना होगा। ‘डिनायल’ में जीना शुतुर्मुर्ग की तरह रेत में सर घुसाकर असलियत से मुंह छिपाने के बराबर है।

मैंने दोनों पक्ष सुने लेकिन मुझे ज़्यादा चिंता उन फ़्रांसीसी लोगों की है जो नाराज़ थे, दुखी, परेशान और क्षुब्ध थे, लेकिन बोल नहीं रहे थे। फूल रखकर,कैंडल जलाकर जा रहे थे लेकिन नि:शब्द। उनकी शांति के पीछे एक पूरा ज्वालामुखी धधक रहा है। ये लोग सेक्युलर हैं, धर्म निरपेक्ष। लेकिन ये लोग क्या दक्षिणपंथी मेरी ला पेन की ओर झुक जाएंगे। फ़्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति सोशलिस्ट हैं, वामपंथ की ओर झुके हुए हैं। उनके शासन में आतंकी हमला ज़्यादा मायने रखता है।डेनमार्क के कार्टून विवाद और चार्ली हेब्दो से जुड़े आतंकी हमलों के बाद यूरोप में मुसलमानों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा भड़का है। पेरिस में हुआ हमला फ़्रांस की धरती पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। नतीजा साफ़ है – शरणार्थियों का आना रुकेगा, मुसलमानों के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण तेज़ होगा, इस्लामोफ़ोबिया बढ़ेगा।

फ़्रांस में जल्द ही स्थानीय निकाय चुनाव होनेवाले हैं – लोग मानकर चल रहे हैं कि दक्षिणपंथी पार्टी की नेतात मारीन ला पेन को चुनाव में सीधा फ़ायदा होगा और उसी के साथ मारीन ला पेन की 2017 के चुनाव में राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना को भी बल मिलेगा।मारीन कुछ समय से मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़क रहे ग़ुस्से को भुनाने की जुगत में हैं। हाल ही में मारीन ला पेन ने कहा था कि मस्जिदें भर जाने के कारण जो मुसलमान सड़क पर नमाज़ अदा करते हैं वो सही नहीं है – ये कब्ज़ा करने के बराबर है और स्थानीय लोग इससे नाराज़ हैं साफ़ है – फ्रांस में आतंकी हमला करने वाले चाहे जो हों वो मुसलमानों का फ़ायदा कम, नुक्सान ज़्यादा कर रहे हैं. अगर ISIS ही इसके पीछे है तो उसकी नीति कम से कम मुसलमानों को तो फ़ायदा नहीं पहुंचा रही है।