पंचायत की शतरंज- 1 करोड़ के लालच में माँ और बीबियाँ लगेगी दांव पर, बहनो पर भरोसा नहीं

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Editorउत्तर प्रदेश में जिला पंचायत के चुनावो की शतरंजी बिसात बिछने लगी है| चौसर के पासे तो कोई शकुनी ही फेकेगा| दांव लगाने वाले इस युग में कोई अर्जुन या युधिष्ठिर नहीं है| दुर्योधन ने अर्जुन की जगह ले ली है| जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए वोट के बदले मिलने वाली संभावित 1 करोड़ रुपये की रिश्वत कमाने के लिए प्रत्याशी अपनी माँ और बीबियो को चुनावी मैदान में उतारने जा रहे है, बहनो पर जैसे उन्हें विश्वास कम है| वैसे यहाँ महिला शब्द इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा| क्योंकि महिलाओ के अन्य रिश्तो पर दुर्योधन को विश्वास नहीं होता है लिहाजा बहन या बेटियो के नाम पर नेता पर्चे दाखिल आमतौर पर नहीं करते|

विवाहित बहने दूसरे घर की हो जाती है और बहनोई की बात मानने लगती है इसलिए विवाहित बहनो पर दांव लगाना कमजोर कड़ी हो सकता है| माल खर्च करे साला और मलाई खाए जीजा| इस युग का दुर्योधन नेता इतना भी बेबकूफ नहीं| राजनीति में इससे ज्यादा की रिश्तेदारी चलती भी नहीं| बिहार में सीटो के बटवारे में समधी (लालू) ने समधी (मुलायम) को ठेंगा दिखा दिया| राजनीति में साले बहनोई की कम पटरी खाती है| और मामला जहाँ माल आने का हो वहां तो और भी सतर्क रहना पड़ता है| साले ने जो दे दिया है जीजाजी उसी में खुश रहो या दुखी दुर्योधन की बला से| नए आरक्षण से सीट महिला जरूर हो गयी है मगर बहना तुम पर दांव नहीं लगाएंगे|

राजनीति में दांव लगाने के लिए सबसे पहला ऑप्शन बीबी होता है| भारतीयता से ओत प्रोत| दगा देने के चांस कम| हाँ एक दो उदहारण बदायू जनपद में किसी महिला विधायक के अपवाद को छोड़ दे तो| सबसे कमजोर निरीह प्राणी खुद की “बीबी”| राजनीति की सबसे कमजोर और मजबूत कड़ी|

मैंने कुछ पंद्रह दिनों पहले फर्रुखाबाद जनपद के ब्लाक बढ़पुर प्रथम, कमालगंज द्वितीय और राजेपुर तृतीया क्षेत्रो में भ्रमण पर गया तो कई बिजली के खम्बो पर एकला संभावित प्रत्याशियों के फोटोशॉप से चमकते हुए पुरुष चेहरों को लटका पाया था| जिला पंचायत सदस्यों के आरक्षण जारी होते ही तस्वीर बदल गयी है| इन इलाको में महिलाओ के लिए आरक्षण हो गया| जो शादीशुदा है वे अपनी बीबियो के साथ लटक गए है और जो कुंवारे है वे अपनी माँ के फोटो के साथ| ये बात और है माँ का दर्ज बड़ा होने बाबजूद फोटो बेटे का बड़ा छपा है| मुझे अभी तक किसी रिपोर्टर ने ये खबर नहीं दी कि इन तीनो क्षेत्रो में सीट महिला के लिए आरक्षित होने के बाद किसी प्रत्याशी ने अपनी बहन को चुनाव लड़ाने का सहस दिखाया हो| प्रदेश के अन्य क्षेत्रो में भी कमोवेश यही स्थिति होती है एक आध अपवाद को छोड़कर|

अब माँ तो माँ है| बेटा एक बार चुनाव जीत जाए| बीस पचीस लाख की गाड़ी में पूर्णागिरि उसे भी घुमा लाये| इस मामले में माँ भी नहीं पूछती कि बेटा चुनाव लड़ने में जो खर्च होगा उसे सरकार देगी या फिर कोई वेतन मिलेगा| वो तो मात्र एक साडी और कुछ पॉकेटमनी में ही सतुष्ट होने वाली है| बेटा रिश्वतखोर होने जा रहा है इस मामले में वो दखल नहीं देती या फिर उसकी चलती है| भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विवाहित महिलाओ को ज्यादा पूछने का अधिकार नहीं है|

सीटो के महिला के लिए आरक्षण होते से बीबियो की लाटरी निकल आई है| मगर केवल चुनाव तक| पति महोदय फोटो खिचाने से पहले ब्यूटी पार्लर ले जाना नहीं भूले और जब पोस्टर तैयार करने की बारी आई तो ऑपरेटर के साथ बैठ कर बाकी कमाल और कारीगरी फोटोशॉप से करायी| वैसे भी प्रत्याशी वैसा तो नहीं होता जैसा पोस्टर में चमचम दिखता है| पोस्टर में लिखी बाते भी उसकी जिंदगी से मेल नहीं खाती| बस वादे किये और लटका दिए बिजली के खम्बो पर| जीत भी गए तो जब जनता की बारी पूछने की आएगी पोस्टर कब का धूप में रंग छोड़ चूका होगा| नेताजी देर शाम किसी होटल ढाबे में अंग्रेजी पौवे के साथ 1 करोड़ इन्वेस्टमेंट करने का हिसाब लगा रहे होंगे| दिहाड़ी मजदूरी पर रखे गए बन्दूकची और चेले चमचे नेताजी के सिगरेट के पैकेट पर नजर लगाये तमंचे पर डिस्को का आनंद ले रहे होंगे| और दांव पर लगने वाली बीबी घर में बच्चो को खाना खिलाकर सोने का उपक्रम करते हुए करवटे बदल रही होगी|