उत्साह और स्फूर्ति का पर्व है मकर संक्राति

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फर्रुखाबाद : मकर संक्रांति सूर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन सूर्य भूमध्य रेखा को पार करके उत्तर की ओर अर्थात मकर रेखा की ओर बढ़ना शुरू करता है। इसी को सूर्य का उत्तरायण स्वरूप कहते हैं। इससे पूर्व वह दक्षिणायन होता है। सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व इसी कथा से स्पष्ट है कि शर शैया पर पड़े भीष्म पितामह अपनी मृत्यु को उस समय तक टालते रहे, जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हो गया। मकर संक्रांति होने पर ही उन्होंने देह त्यागी। हमारे ऋषि इस अवसर को अत्यंत शुभ और पवित्र मानते थे। उपनिषदों में इसे ‘देवदान’ कहा गया है।

जब सूर्य किसी एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति काल प्रतिमाह होता है। वर्ष के 12 महीनों में वह 12 राशियों में चक्कर लगा लेता है। इस प्रकार संक्रांति तो हर महीने होती है, मगर मकर संक्रांति वर्ष में केवल एक बार होती है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह पर्व सामान्य तौर पर 14 जनवरी को ही पड़ता है।

सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है। इस समय से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी। दिन बड़े होने का अर्थ जीवन में अधिक सक्रियता है। फिर इससे हमें सूर्य का प्रकाश भी अधिक समय तक मिलने लगता है, जो हमारी फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे यह पर्व अधिक क्रियाशीलता और अधिक उत्पादन का भी प्रतीक है।
यह पर्व सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण होने का संधिकाल भी है। दक्षिणायन में चंदमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में सूर्य का। सृष्टि पर जीवन के लिए जो आवश्यकता सूर्य की है, वह चंद्रमा की नहीं है। इस प्रकार यह पर्व सूर्य के महत्व को भी उजागर करता है।

यह पर्व शिशिर के अंत तथा बसंत के आगमन का सूचक है। बसंत की मादकता और प्रफुल्लता इसके साथ जुड़ी हुई है। जिन लोगों की यह धारणा है कि आर्य मूलत: भारत के निवासी नहीं थे, बल्कि उत्तरी ध्रुव से आए थे, उनके विचारों के अनुसार सूर्य के उत्तरायण काल को अधिक महत्व देने के पीछे आर्यों की अपने मूल स्थान के प्रति निष्ठा भावना भी थी। उत्तरी ध्रुव पर छह महीने का दिन और छह महीने की रात होती है। इसी प्रकार सूर्य का दक्षिणायन और उत्तरायण काल भी छह-छह महीने का ही होता है। इससे आर्य, सूर्य के उत्तरायण काल को ही अपने लिए शुभ और पवित्र मानते थे तथा मकर संक्रांति को उसके प्रारंभ पर उत्सव मनाते थे।

मकर संक्रांति पर्व लगभग संपूर्ण भारत में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग स्थानों पर इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे आयोजन की विधि में भी कुछ अंतर है। गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं और असम में इसका नाम ‘नेगालीबिहु’ है। पंजाब में इसे ‘लोहड़ी’ कहा जाता है तथा तमिलनाडु में ‘पोंगल’ और आंध्र में ‘उगादि।’

आंध्र में इस दिन घरों को रंगोली से सजाया जाता है तथा घर की सभी देहलियों और आंगन में गोबर की छोटी-छोटी टिकियाएं रखी जाती हैं, जिनमें घास के तिनके लगाकर उनमें हल्दी और सिंदूर लगाया जाता है। इनके साथ तिल, मूंग, चावल, बैंगन तथा बेर आदि वस्तुएं भी रखी जाती हैं। इसके बाद महिलाएं एक दूसरे के मस्तक पर कुंकुम और चंदन लगाती हैं तथा आंचल में गुड़ और तिल रखती हैं।

पंजाब में लोहड़ी के अवसर पर बच्चे सभी घरों से लकड़ियां मांग कर लाते हैं, जिन्हें बाद में सामूहिक रूप में जलाया जाता है। इसमें गन्ने आदि के साथ तिल की भी आहुति दी जाती है। तमिलनाडु में पोंगल के रूप में इस पर्व को फसल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। गाय और बैलों को सजाया जाता है। कहीं-कहीं बैलों की लड़ाई भी आयोजित की जाती है। फसल के देवता के रूप में सूर्य का पूजन किया जाता है और दावतें होती हैं।

व्यापारियों के लिए शुभ
सूर्य जब मकर राशि में पड़ता है उसे मकर संक्राति कहते हैं। इस बार ध्वांशी नामक संक्राति है जो व्यापारियों के लिए शुभ मानी गई है। घनिष्ठा नक्षत्र में होने से 30 मुहूर्ती है। इसका वाहन हाथी है, उपवाहन गधा है, वस्त्र रक्त, आयुध धनुष, फल मध्य, जाति मृग, भक्षण पय, लेपन गोरोचन, वय प्रौढ़ा, पात्र लोहा, भूषण मुकूट, कचुक सित, स्थिति बैठी, फल लक्ष्मी, पुष्य बेल है। संक्राति का पुण्य काल सूर्यास्त तक रहेगा।

संक्राति सुबह होने से राजा को कष्ट रहता है। यहां पर राजा से तात्पर्य प्रधानमंत्री से समझे। पूर्वार्द्ध में होने से राजाओं को कष्ट, व्यापारी को सुख। सोमवार को होने से उत्तर में गमन व दिशा दृष्टि ईशान में है।

संक्राति सोमवार को होने से अन्न, गेंहू, मक्का, ज्वार, बाजरा, गुड़, शक्कर, खांड, सोना, मूंगा, मोती सस्ता होगा, चांदी, घी, में तेजी होगी। सरसों, अलसी घटा-बढ़ी में रहे और पदार्थ, कोयला, पत्थर, लकड़ी आदि में तेजी बनकर मंदा होंगे। रूई, सूत और लाल वस्तुओं में मंदी का रुख अधिक रहे, सर्व प्रकार से आनन्द होगा।
मकर संक्राति त्योहार पर भारी पड़ी महंगाई
महंगाई की मार से फीका पड़ रहा है मकर संक्राति का त्योहार। खाद्य सामग्रियों के मूल्यों में जिस तरह उछाल है कि सब घर को दही चूड़ा और लड़वा नसीब नहीं हो रहा है। पर्व को लेकर जो उत्साह रहती थी उसमें कमी देखी जा रही है। लोग बढ़ते कीमत को देख सामग्रियों में कटौती कर रहे हैं।
सोमवार 14 जनवरी मकर संक्राति को लेकर रविवार को बाजारों में देर शाम तक खरीदारों भीड़ जमी रही। तिलकुट एवं किराना दुकानों पर सुबह से शाम तक चहल-पहल लगी हुई थी। पूर्व में जो तरीके से खरीदारी हुई थी उस अनुपात में बिक्री कम हो रही है। महंगाई के चलते ग्राहक पाकेट के हिसाब से खरीदारी कर रहे है। बाजार में हर सामग्रियों की कीमत आसमान पर है। सामान्य मोटा चूड़ा 22 से 25 रूपए किलो बिक रहा है। कतरनी चूड़ा का रेट ग्राहक देख की लगाया जा रहा है। कम से कम 50 रूपए किलो मिल रहे हैं। दुकानदार 60 से 65 रूपए किलो भी बेचने से बाज नहीं आ रहे है। मूढ़ी का भी वही हाल है। सामान्य दिनों में 25 से 28 रूपए किलो आसानी से मूढ़ी मिल जाती है लेकिन पर्व को लेकर मूढ़ी भी 30 से 35 रूपए किलो बिकना शुरू हो गया है। गुड़ 30 से 35 रूपए किलो बिक रहा है। तिल का रेट भी आसमान पर है। काला तिल रविवार को 120 रूपये जबकि उजला तिल 160 रूपया किलो मिल रहा है। तिलवा की कीमत भी कम नहीं है। साठ से सत्तर रूपया किलो बाजार में मिल रहा है। साधारण तिलकुट 250 रूपए, खास्ता तिलकुट 300 रूपए, पोस्तादाना तिलकुट 350 रूपए, काजू तिलकुट 400 रूपए केशर पिस्ता तिलकुट 600 रूपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है।