बच्चों का मेडिकल कराने नहीं सीएमओ कार्यालय भेंट करने गये थे: उमेश गुप्ता

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फर्रुखाबाद: विगत  को प्रकाशित समाचार के संदर्भ में उमेश गुप्ता ने बताया कि वह बच्चों को लेकर मेडिकल कराने नहीं वल्कि सीएमओ कार्यालय में भेंट करने गये थे।

उल्लेखनीय है कि 5.12.2012 को जेएनआई ने मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय में कुछ बच्चों का चिकित्सीय परीक्षण कराने आये लोगों के सम्बंध में चित्रों सहित समाचार ‘मासूमों को तम्‍बाकू कुटान में झोंकने को सीएमओ के सर्टिफिकेट की आड़’ प्रकाशित किया था। चिकित्सीय परीक्षण में अपर-मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी डा. आरके कनौजिया ने 23 बच्चों में से 8 बच्चों के 14 वर्ष से कम आयु होने की पुष्टि भी की थी, और उनमें से कोई भी बालिग नहीं पाया गया था।

इस सम्बंध में अब उमेश कुमार गुप्ता का कहना है कि वह बच्चों को लेकर नहीं गये थे वह तो सीएमओ कार्यालय में भेंट करने गये थे। उन्होंने 05.12.2012 को छपे समाचार में उल्लखित अपने बयान से भी इंकार कर दिया है। उमेश गुप्ता ने बंदर छाप तम्बाकू के स्वामित्व से अपना सम्बंध न होने के आधार पर पूरे प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ लिया है। उन्‍होनें बताया कि वह तो केवल सीएमओ कार्यालय में भेंट करने गये थे।

उल्लेखनीय है कि कायमगंज में तम्बाकू जैसे खतरनाक उद्योग में नाबालिग बच्चों को मजदूरी पर लगाये जाने की अत्यंत अमानवीय प्रथा काफी समय से चली आ रही है और इसमें समाज के कई धनाड्य एवं तथा कथित प्रतिष्ठित लोग भी सम्मलित हैं। बड़े बड़े मंचों और धार्मिक संगठनों की आड़ में गरीबी से अभिशप्त वर्ग के बच्चों को इस अमानवीय प्रथा से जोड़े हैं। यही कारण है कि कायमगंज को जहां साक्षरता और शिक्षा की दृष्टि से जनपद का सर्वाधिक पिछड़ा ब्लाक होने का तमगा प्राप्त है। वहीं टीवी और दमा जैसे रोगों से पीड़ित लागों की संख्या भी दिनों दिन बढ़ रही है। श्रम विभाग से लेकर वाणिज्य कर और केन्द्रीय उत्पाद कर विभाग तक के अधिकारियों की अधिकांश ऊपरी आय का साधन कायमगंज ही है। इधर जिलाधिकारी व उपजिलाधिकारी की सख्‍ती के चलते कुछ विभागीय छापे पड़ने लगे हैं। परंतु लोगों की जागरूकता व मीडिया की सक्रियता से स्‍थिति बदल भी सकती है। जरूरत केवल सार्थक प्रयास शुरू करने भर की है।