नगर पालिका चुनाव प्रचार अभियान में जासूस करमचंद और विष कन्याओ का खेल

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फर्रुखाबाद: नगर पालिका चुनाव में उतरे दो दिग्गजों का चुनाव में प्रचार अभियान से अधिक विरोधी खेमे के गद्दारों व  विभीषणों का खेल भी खूब चल रहा है। कुछ जगह तो विभीषणों ने विरोधी खेमें का पूरा-पूरा अभियान ही हथिया रखा है। प्रत्याशी बेचारे केवल शतरंज की बिसात पर मोहरे की तरह शहर के इस कोने से दूसरे कोने तक भागता फिर रहा है।

नगर पालिका चुनाव का अभी शुरूआती दौर है। चुनाव चिन्ह आबंटन के दो दिन बीतने के बाद फिलहाल मुकाबला चतुष्कोणीय है। इसमें भी दो पुराने धुरंधर हैं तो दो नये खिलाड़ी है। धुरंधरों ने नये विरोधी व नये खिलाड़ियों के खेमों में अपने विभीषण तो फिट कर ही दिये हैं, दूसरी ओर के गद्दार भी मोटी रकम लेकर सूचनायें इधर से उधर कर रहे हैं। कौन प्रत्याशी कहां जा रहा है, किस से मिल रहा है। कौन-कौन समर्थन का वादा कर रहा है, कौन किसको टरका रहा है, आदि सारी जानकारियां मोबाइल फोन के सहारे इधर से उधर होने का खेल जोरों पर है। एक नये खिलाड़ी का तो पूरा चुनाव अभियान ही कुछ शातिर विभीषणों ने कैप्चर कर रखा है। बेचारे प्रत्याशी के पति महोदय झड़ाझड़ प्याज खा रहे हैं और बहते हुए आंसुओं से अपनी कामयाबी को नाप रहे हैं।

नाले से चौक के बीच तो मानों क्रास और डबल-क्रास एजेंटों का जाल फैला है। दोनों किनारों पर राजनीति के खिलाड़ी हैं। दोनों यह खेल जानते हैं। कुछ को तो बाकायदा पहचानते भी हैं, इसके बावजूद इनको पालते हैं। सो इनके सामने केलव वही बात करते हैं, जो दूसरे खेमे तक पहुंचानी जरूरी समझते हैं। इनका इस्तेमाल एक दूसरे को गलत सूचनायें भिजवाने के लिये हो रहा है।

एक मुस्लिम प्रत्याशी का खेमा तो इस खेल के एक पुराने उस्ताद के एजेंटो का अड्डा ही बन गया है। रात को जनाब प्रोग्राम बनाते हैं कि कल सुबह फजिर की नमाज पढ़कर फलां के घर पहुंच कर सुबह-सुबह ही छाप लेंगे, परंतु पहुंचते हैं तो वहां दूसरे महाशय उनसे भी पहले से बैठे चाय की चुस्कियां उड़ा रहे होते हैं। इन डबल-क्रास एजेंटों के शातिरपन की हद तो यह है कि जनाब को कई बार के इस इत्तिफाक के बाद भी शक नहीं होने दिया।

यही हाल एक राष्ट्रीय पार्टी के कुछ सिरमौरों का भी है। शरीर कहीं है तो दिल कहीं। जनसंपर्क के दौरान जबान कुछ और कह रही होती है तो आंख का इशारा कुछ और कहता है। परंतु यह तो राजनीति है, यहां कानून तो चलता नहीं। जानते बूझते मक्खी निगलनी पड़ती है।