फर्रुखाबाद परिक्रमा : ग्लैमरस रक्षाबंधन के बाद बाढ़ उत्सव पर सरकार, नेता और मीडिया सक्रिय

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

मियां बोले अब बस भी करोगे या गोले दागते ही रहोगे। अच्छा हुआ ब्रह्मकुमारियों ने तुम्हें आमंत्रित नहीं किया। वहां पराकाष्ठा और विशिष्टजनों का जमकर जमावड़ा लगता है। परन्तु………..खैर छोड़ो हमें क्या लेना देना।

खबरीलाल बहुत जल्दी में थे। व्यस्तता के बहाने वह सत्यनरायन कथा के प्रसाद की तरह टुकड़े टुकड़े खबरें बांटते और सहेजते हर जगह देखे जा सकते हैं। शहर के नामी होटल से निकल रहे थे। इतने में ही मियां झान झरोखे जाने कहां से आ टपके। मियां ने पकड़ लिया क्यों भइया। आ गए न पूरे के पूरे नेताओं और अफसरों वाले लक्षण। कल हमने टेलीफोन किया था। तब क्या कहा था तुमने। लखनऊ में हैं। हर पार्टी में रेलमपेल मची हुई है। लोकसभा चुनाव को लेकर। जब आयेंगे तब बात करेंगे। कब आयेंगे अभी यह भी नहीं बता सकते। अब मिल गई फुर्सत। यहां क्या कर रहे हो। पकड़े गये न रंगे हाथों।

मजाक और सियासत का मोहरा बन गया रक्षाबंधन!

खबरीलाल ने झटके में अपनी बांह छुड़ाई। मियां से बोले कुछ सुनोगे भी कि ऐसे ही राशन पानी लेकर चढ़ाई करते रहोगे। मियां तुम्हारे फोन के बाद ही वत्सला बहिन जी का (चेयरमैन फर्रुखाबाद नगर पालिका) का टेलीफोन आ गया। उनसे भी मैंने यही कहा कि जो तुमसे कहा। परन्तु मानी नहीं मजबूरन आना पड़ा। अब तुमसे क्या छुपायें। यह जो अपने कप्तान साहब हैं। बहुत भले आदमी हैं। उनकी डाक्टर पत्नी भी बहुत भली हैं। बार बार टेलीफोन पर टेलीफोन। बच्चे का जन्मदिन है। आपको हर हाल में आना है। कोई दिखावा हल्ला गुल्ला नहीं होगा। छोटा सा परिवारिक कार्यक्रम होगा। आप जैसे दो चार लोग ही तो हैं जिनसे दिल की बात हो जाती है। अन्यथा हम पुलिस वालों के पास आता ही कौन है। जो आता भी है वह अपने मतलब और बहुत जरूरी काम से आता है। ठीक है हम पुलिस वाले हैं। लेकिन अपने बच्चों के मां बाप भी हैं। अपनी पारिवारिक खुशी मनाने और आप जैसे लोगों में उसे बांटने का अधिकार हमको भी है। इतने इसरार के बाद हम न तो वत्सला बहिन को मना कर पाए और न ही कप्तान साहब बहादुर को।

मियां बोले अब बस भी करोगे या गोले दागते ही रहोगे। अच्छा हुआ ब्रह्मकुमारियों ने तुम्हें आमंत्रित नहीं किया। वहां पराकाष्ठा और विशिष्टजनों का जमकर जमावड़ा लगता है। परन्तु………..खैर छोड़ो हमें क्या लेना देना।

खबरीलाल बोले नहीं-नहीं जो मन में है वह कहो जरूर। हमें छेड़ोगे तब हम फिर तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। मियां समझ गए कि खबरीलाल मानने वाले नहीं हैं। बोले भइया! हमारा कोई गलत मतलब नहीं है। हमें इस बात का गर्व है कि हमारा भाई खरी और साफ बात कहने के बाद भी बड़े बड़े और अच्छे लोगों का स्नेह पात्र बना हुआ है।

खबरीलाल बोल देखो बनो मत। साफ साफ बोलो बात को घुमाओ मत। मियां टालना चाहते थे। खबरीलाल मान नहीं रहे थे। बात बढ़ रही थी। मियां समझ गए कि अब खबरीलाल की शैली में ही कुछ कहे बिना काम चलेगा नहीं। बोले खबरीलाल तुम्हारे मन में सही गलत क्या हो हम नहीं जानते। परन्तु हमें एक बात बताओ। तुम तो शहर और जिले के हर गली गांव मुहल्ले का हाल जानने का दावा करते हो। तुम्हें मालूम है कि शहर की सीमा पर जसमई के पास बच्चों का एक अनाथ आश्रम है। इसे सरकार भी सहायता देती है। निराश्रित बच्चों की शरण स्थली है यह!

अपनी जिन वत्सला बहिन से राखी बंधवाने और कप्तान साहब के बच्चे के जन्मदिन पर आशीर्वाद देने तुम लखनऊ की चहल पहल छोड़कर अपनी व्यस्तता के बावजूद भागे भागे यहां चले आये। उनसे पूछो कि जब उनके पति निवर्तमान चेयरमैन एमएलसी साहब अपनी मुहंबोली बहनों से मीडिया की चकाचौंध के बीच मुद्रित मन राखी बंधा रहे थे। तब नगर की संरक्षक होने के नाते उन्हें अपने इन अनाथ भाइयों की कलाइयों की सुधि क्यों नहीं आई। दिल्ली लखनऊ से लेकर जिले में विशिष्ट जनों के स्वागत सत्कार और अभिनंदन में तत्पर रहने वाली माननीयों को इन अनाथ कलाइयों पर प्रेम के दो धागे बांधने का समय क्यों नहीं मिल पाया। माफ करना कप्तान साहब के पास तो अधिकृत रूप से बहुत लम्बी फौज है। हम भी तुम्हारी तरह मानते हैं कि वह बहुत भले आदमी हैं। उनके इलाकाई कारकून ने यदि उन्हें इस अनाथ आश्रम के विषय में बताया होता। तब फिर कप्तान साहब वहां भले ही न जा पाते। मिठाई जरूर भेज देते। तब फिर कलाई पर राखी बांधे मिठाई खाकर यह बच्चे मन से कप्तान साहब के बच्चे को दुआ देते। – तुम जिओ हजारों साल, हर बरस के दिन हों पचास हजार! खबरीलाल चुपचाप अपने घर चले गए।

नेताओं का लगा लखनऊ में डेरा!

खबरीलाल तो घर चले गए। परन्तु मियां झान झरोखे का मन भरा नहीं था। घूमते घूमते पहुंच गए रेलवे स्टेशन। चुपचाप प्लेटफार्म पर चहल कदमी करते रहे। थक गए तब एक बेंच पर बैठ गए। मौसम सुहावना था। कब नींद आ गई पता नहीं चला। छपरा मेल के आने पर प्लेटफार्म पर जो चहल पहल हुई। उसमें उनकी नींद खुल गई। बेंच पर उठकर बैठ गए। देखते क्या हैं। लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशिता के लगभग एक दर्जन दाबेदार पूरे ताम झाम के साथ चले आ रहे हैं। लखनऊ जाने के लिए। मियां कुछ समझ पाते या किसी से कुछ बात करते खबरीलाल भी चले आ रहे हैं। जैसे ही यह लोग मियां की बेंच के सामने से गुजरे। मियां ने पूरी ताकत से आवाज लगाई खब……….। परन्तु खबरीलाल ने उतनी ही तेजी और फुर्ती से अपनी हथेली मियां के मुहं पर रखकर आवाज को लाक कर दिया। सब अपनी-अपनी जल्दी में थे। कोई जान नहीं सका कि क्या हो गया। कुछ देर बाद घूमकर खबरीलाल मियां झान झरोखे के पास आए और बोले। हमें यहां देखकर नाराज हो। तुमसे दामन छुड़ाकर भागे थे। तुम यहां मिल गए। तुम्हारी नाराजगी जायज है। हम क्या करें मियां। हमारा काम ही ऐसा है। चोर से कहते हैं चोरी करो। शाह से कहते हैं जागते रहो।

मियां हंसे और बोले इन्हें कहां हांके लिए जा रहे हो। खबरीलाल बोले लंबी कहानी है। यह सब वह हैं जो सांसद बने बिना देश समाज की सेवा नहीं कर सकते। यह भी कल ही आए थे हमारे साथ। आज हमारे साथ ही वापस जा रहे हैं। जब तक पर्यवेक्षक यहां रहे। उनके आगे पीछे घूमते रहे। अपनी तारीफ करते रहे। दूसरे दावेदारों की सच्ची झूठी कहानियां गढ़ते रहे। सबको यही मुगालम है कि उनसे अच्छा कोई है ही नहीं। अब पर्यवेक्षक की नजरों में चढ़ने के लिए लखनऊ में डेरा डालेंगे। गाड़ी आ रही है। पूरी रात नहीं गए। अब घर जाओ। वापसी में सब कुछ तुमको विस्तार से और सही-सही बतायेंगे। मियां रेलवे स्टेशन से बाहर आ गए।

हम नहीं रह सकते पुलिस के बिना

मियां फर्रुखाबाद रेलवे स्टेशन के नए भवन की ओर से बाहर सड़क पर आए। नए भवन और उसके आस पास गंदगी का नजारा देखकर मन और दुखी हो गया। बाहर सड़क पर बद इंतजामी का नजारा। सोचने लगे क्या होता जा रहा है हमें। हम पुलिस को कोसने में कभी कोई कमी नहीं रखते। परन्तु पुलिस के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। अनुशासित होकर शांती से लाइन में लगकर टिकट नहीं ले सकते। परीक्षा नहीं दे सकते। और तो और कथा भागवत, सत्संग, प्रवचन, मंदिर दर्शन मेला हो। इंतजाम करने वाले इस बात में अपनी शान मानते हैं कि थाने चौकी से दो अदद सिपाही मौके पर डंडा फटकारते दिखाई दें। कुछ खबरची ऐसे मौकों पर पुलिस ही देखने जाते हैं। दर्शन सत्संग प्रवचन आदि में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं। क्या हम दिन रात पुलिस को कोसने लानत मलामत करते रहने के बाद भी पुलिस की चाहत में नहीं रहते। मियां सोच रहे थे कि खबरची लौटकर अपनी खबर लिखेंगे। तब कथा मंदिर सभागार मेला स्थल आदि की बात कम, पुलिस की उपस्थिति, उसकी चुस्ती फुर्ती ढिलाई आदि की चर्चा ज्यादा। पुलिस वाले भी इन खबरचियों को देखते ही हो लेते हैं। भाई साहब कैसे हैं। हमारी आपकी भेंट इन्हीं कार्यक्रमों में हो जाती है। यहां सब ठीक है। अब खबरचियों के लिए पुलिस जी का नाम पूछना जरूरी हो जाता है। अब पुलिस जी भी लजाते शर्माते कहते हैं। अरे नाम का क्या। हमें तो डियुटी के साथ ही दर्शन मेले का आनंद भी मिल जाता है। पुलिस तो है ही जनता की सेवा के लिए। तब तक इंतजामियां कमेटी का कोई सक्रिय सदस्य दुपट्टा डाले तिलक लगाए तेजी में निकलता दिखता है। तैनात पुलिस जी उसे अपनी बुलंद आवाज में बुलाते हैं। अरे भइया कहां भागे जा रहे हो। यह भाई साहब फलाने प्रेस से हैं। बड़े भले आदमी हैं। हमारी तरह इनके बिनामी तुम्हारे कार्यक्रम की चर्चा नहीं होगी। अपना नाम लिखा दो इन्हें छप जायेगा। जरा पानी प्रसाद, महा प्रसाद लाओ भइया जी के लिए। इंतजाम अपनी जगह पुलिस जी, भैया जी इंतजामी और खबरची जी तीनो गदगद- सफल आयोजन के पूरे इंतजाम मियां यही सब सोंचते सोंचते स्टेशन से रेलवे रोड पंडाबाग मठियादेवी होते हुए चौक त्रिपौलिया पर आ गए।

लौट के मुंशी लखनऊ से आए

मियां झान झरोखे के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने चौक की ऐतिहासिक पटिया पर मुंशी हरदिल अजीज को बैठा देखा। गुस्से से तमतमाते मियां बिना दुआ सलाम के मुंशी से उलझ पड़े। बोले मुंशी तुम्हें और खबरीलाल को क्या हो गया है। हम लोगों की तिकड़ी मशहूर थी। अब तुम दोनो कहां हो क्या कर रहे हो। कुछ पता ही नहीं चलता। अभी कल खबरीलाल मिले थे। आज फिर लखनऊ चले गए। तुम भी तीन दिन से गायब हो। फोन करो स्विच आफ। घर पर ताला पड़ा है। आखिर माजरा क्या है।

मुंशी हरदिल अजीज मियां झान झरोखे को शांत करते हुए बोले। अभी अभी लखनऊ से ही आ रहे हैं। बताते हैं कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। लखनऊ में इस समय सभी पार्टियां दिल्ली जाने की तैयारी में जूझ रहीं हैं। खबरीलाल और साथ-साथ लखनऊ नहीं गये थे। परन्तु वहां हम लोग अपने अपने काम के दौरान एक दूसरे से कई बार टकराये। परन्तु अजनवियों की तरह। ऐसा न करते तो काम को अंजाम न दे पाते। अब हमें तो खबरीलाल की मुहं बोली बहिन वत्सला अगग्रवाल से राखी बंधानी नहीं थी। न ही कप्तान साहब के बच्चे के जन्मदिन समारोह का निमंत्रण हमारे पास था। खबरीलाल यहां आ गए और हम वहीं रुक गये।

मियां बोले अब यह लंबी चौड़ी भूमिका मत बांधों, वहां करते क्या रहे यह बताओ। मुंशी बोले लखनऊ में इस समय हर तीसरी लक्जरी गाड़ी के पीछे शीशे पर सपा का लंबा स्टीकर चिपका है लक्ष्य 2014। इन गाड़ियों पर बैठे लोग इतने उताबले हैं कि उनकी चले तो वह आज ही अपना संकल्प पूरा करके सपा मुखिया को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दें। परन्तु उनकी नजर लोकसभा चुनाव के पार्टी टिकट पर हैं। दारुल शफा, बहुखंडी, गौतम पल्ली, कालीदास मार्ग, विक्रमादित्य मार्ग पार्टी मुख्यालय जहां कहीं भी सपा के दिग्गजों का निवास है वहां और सरकारी अतिथिगृहों में सपा नेता लोकसभा चुनाव का दूल्हा बनने के लिए अपनी अपनी बारात बैन्ड बाजा लिए घूम रहे हैं। सत्ता की ठसक हनक उससे भी ज्यादा चमकदार ढंग से दिख रही है। जितनी छः माह पूर्व बसपा नेताओं के निवासों और बहिन जी के आस पास थी।

मुंशी से यह बातें सुनकर मियां हैरत में पड़ गए। बोले यह तुम्हें क्या हो गया मुंशी। तुम तो इन चक्करों में पड़ते नहीं थे। मुंशी बोले करना पड़ता है। अपने को अपडेट करने के लिए। इसके पीछे मीडिया की ताकत और कमजोरी दोनो हैं। मीडिया को विज्ञापन के चांदी के जूते ने दवा रखा है। ऊपर से सत्ताधारियों की दबंगई का खौफ है। विज्ञापनदाताओं पर उनकी कोई कला नहीं चलती। वह चाहें स्याह करें या सफेद। नतीजतन हमें अपनी कार्य पद्धति बदलनी पड़ती है। यह तो लखनऊ दिल्ली आने पर ही पता चलता है कि अपने अपने जिलों में विज्ञापन के बल पर स्थापित नेताओं की वास्तविक हकीकत क्या है। हम किसी पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष की बात नहीं करेंगे। परन्तु हाल कमोवेश सब जगह एक ही है।

मुंशी बोले मियां इस सबके बीच गजब का कलेजा है। सपा मुखिया मुलायम सिंह का। जिन मुलायम सिंह ने अपने बेटे की सरकार के सौ दिन पूरे होने पर सौ में सौ नंबर दिये थे। उन्हीं मुलायम सिंह ने विरोधियों की कोई खास चुनौती न होने पर भी अपनी सरकार मंत्रियों पार्टी नेताओं कार्यकर्ताओं को होश में रहने अनुशासित रहने की सलाह और चेतावनी देकर सजग और सतर्क करने को जोखिम उठाया। अब आने वाले दिनों में इसका प्रभाव क्या होता है। यह देखना है। परन्तु निराले हैं मुलायम सिंह यह बात साबित हो गयी।

और अंत में – सूखे सावन भरे भादौं- सूखे और बाढ़ का संगम
कंपिल से श्रंगीरामपुर तक गंगा उफान पर हैं। सावन सूखा गया भादौं में रिमझिम है। बाढ़ बंधा खतरे का निशान गंगा, रामगंगा, काली नदी आदि आदि नावें राहत शिविर बाढ़ पीड़ित मकानों फसलों की बर्बादी जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी, तहसीलदार, लेखपाल, सीएमओ, डाक्टरों की टीमें जनप्रतिनिधि, स्वयंसेवी और इन सबकी निगरानी करने वाले मीडियाकर्मी सबके सब सक्रिय हो गये हैं। यह एक वार्षिक कर्मकाण्ड बन कर रह गया है। समीक्षा होगी बैठकें होंगीं। स्थलीय निरीक्षण दौरे राहतकार्य होंगे। सब कुछ होगा परन्तु इस समस्या का स्थाई निदान नहीं होगा।

एक दिलजला बोला पागल हैं आप जो स्थायी समाधान की बात करते हो। सूखा बाढ़ सोने की मुर्गी हैं। यह हर वर्ष सोने का अंडा देती हैं। स्थायी समाधान में क्या रखा है।

चलते चलते – कहां गए हाजी जी –
ऐसा लगता है कि सपाई बनने और बदलने का नगर विधायक का रिकार्ड टूटने के कगार पर है। नगर पालिका चुनाव के  बाद से सपाई बने हाजी जी सपा के खेमे में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। पर्यवेक्षक के वयानों और चुनाव परिणामों ने उनकी नींद उड़ा दी है। हां सलमान साहब के रोजा अफ्तार में जरूर पहुंचे हाजी साहब! वहां से यह गुनगुनाते हुए जा रहे थे –

तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली।
चलो फिर हो गया मिलना, न तुम खाली न हम खाली।

आज बस इतना ही – जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट- फर्रुखाबाद