जहाँ मिले आशीर्वाद ले लो- वत्सला ने निरंकारी सत्संग पहुच मारी बाजी

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फर्रुखाबाद: चुनाव अगर रणनीति से न लड़ा जाए जो मखौल लगता है| और जब कई साल का तजुर्बा हो जाए तो ये काम अकेले भी किया जा सकता है| नगर पालिका चुनाव के वोट पड़ने में एक सप्ताह की देर है| आखिरी सप्ताह और लिखा पढ़ी के केवल 5 दिन बचे है प्रचार के| आखिरी के दो दिन तो रुपया पैसा बाटने और दारु शारू बाटने में खर्च हो जाता है| देर रात रणनीति बनती है और सुबह से बस्ता का खेल शुरू हो जाता है| ऐसे में चुनाव के आखिरी दौर में अब तस्वीर कुछ कुछ साफ़ नजर आती दिख रही है| बदत बनाने में चार प्रत्याशी नजर आ गए है| वत्सला, माला, सलमा और दयमंती| इनमे से दो प्रत्याशी समूह की दम पर लड़ रहे है तो दो प्रत्याशी अपनी दम पर| समूह वाले दोनों नए खिलाडी है| और अकेले दम वाले पुराने और मजे हुए खिलाड़ी| कर्कर्ता और मतदाता की नस नस से वाकिफ| फिर भी हार जीत हो जाती है तो नए पैमाने निकाल लिए जाते है|

चौक और नाला ये दो शब्द इस शहर के लिए नए नहीं है अलबत्ता अगर आप फर्रुखाबाद से बाहर के पाठक है तो समझिये की फर्रुखाबाद बाजार का चौक और उससे उत्तर में 1 किमी आगे चलने पर आता है नाला मछरट्टा मोहल्ले का तिराहा| इसलिए शोर्ट में इसे नाला और चौक कहा जाता है| चौक पर निवर्तमान नगरपालिका अध्यक्ष का घर है और नाले (नाला मछरट्टा) पर वर्तमान विधायक और दो-तीन बार पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वालो का घर| अब ये दोनों सूरमा तो नगरपालिका की रसमलाई और खुरचन दोनों का स्वाद जानते है| अलबत्ता दो और प्रत्याशी जो मुख्य मुकाबले में हैं उन्हें पार्टी चुनाव लड़ा रही है| बात चुनाव प्रचार के तरीके की है अलबत्ता इधर उधर भटकना ठीक नहीं|

रविवार का दिन कहाँ भीड़ होगी| नगर में सामाजिक संगठनो की बैठके कहाँ होगी इसका खाका वत्सला के पति के पास ठीक ठाक है| कुशल मैनेजर जो है| खाटी सफल व्यापारी की तरह कब कहाँ और कैसे किया जाए ये प्लान बनाना मनोज से सीखा जा सकता है| रविवार को सबसे ज्यादा भीड़ निरंकारी सत्संग बढ़पुर में होती है| मौका भी और दस्तूर भी| वत्सला अग्रवाल वहां समय से पहुची और कुछ देर प्रवचन सुना| गद्दी नशीं से आशीर्वाद लिया दोनों हाथ जोड़े और मुस्कराकर अभिवादन किया| एक पहचान जो पोस्टरों में दिख रही है, यहीं हैं वो- कुछ श्रोताओं की यही आवाज थी| एक बोली चुनाव में खड़ीं है| चेयरमेन के घर से हैं जे| ज्यादातर पिछड़े और दलित वर्ग का अनुयायी है यहाँ| बात पते की थी और इतनी ही थी| जो नहीं जा पाए चूक गए|

एक नजर तस्व्वेरो से देखिये-