फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) शरीर में ग्लूकोज की मात्रा का पता करना है तो 75 ग्राम ग्लूकोज पानी में मिलाकर पिएं। इसके दो घंटे बाद जांच कराएं और यदि ग्लूकोज की मात्रा 140 से अधिक है तो सतर्कता की जरूरत है। गर्भवास्था के दौरान यदि डायबिटीज का इलाज नहीं किया गया तो प्रसव के दौरान समस्याएं आ सकती हैं । यही नहीं होने वाले बच्चे में भी डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए गर्भवती का ओरल ग्लूकोज टरोल्वेंस टेस्ट (ओजीटीटी) कराना बहुत जरूरी है, जिससे पता चल सके की महिला को डायबिटीज़ है या नहीं। यह कहना है डॉ राममनोहर लोहिया चिकित्सालय महिला में तैनात स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ० नमिता दास का |
डॉ० दास का कहना है कि गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण प्रकट नहीं होते, लेकिन संभावित लक्षणों में बार-बार पेशाब आना, अधिक भूख व प्यास लगना, घावों का जल्दी न भरना और थकान आदि हो सकते हैं। व्यायाम और सही खानपान से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसकी अनदेखी करने से बच्चे को भी मधुमेह होने की संभावना हो सकती है।
डॉ० दास ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान ब्लड ग्लूकोज की मात्रा बढ़ना गिस्टिश्नल डायबिटीस मेलिटस कहलाता है, जिसकी वजह से बच्चों में माँ के गर्भ के दौरान एवं माँ को प्रसव के बाद डायबिटीस होने की संभावना बनी रहती है | इसलिए सभी एएनसी (प्रसव पूर्व देखभाल) वाली महिलाओं में जीडीएम को जाँचना और उपचार करना बहुत आवश्यक है। उन्होने बताया कि जीडीएम जानने के लिए ओजीटी (ओरल ग्लूकोज टेस्ट) किया जाता है। टेस्ट से पूर्व, गर्भवती महिला को 75 ग्राम ग्लूकोज पिलाया जाता है तथा दो घंटे तक बैठने एवं मनोरंजन के लिए बोला जाता है। दो घंटे बाद उनका ब्लड ग्लूकोज स्तर जांचा जाता है यदि वह स्तर 140 से ऊपर जाता है तो उस महिला को जीडीएम (गर्भकालीन मधुमेह ) की कैटेगरी में रखा जाता है।
उन्होने बताया कि गर्भावस्था के दौरान यदि ग्लूकोज का स्तर शरीर में ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह से बच्चे को जन्म से होने वाली विकृति, शारीरिक विकास में बाधा आदि हो सकती है वहीं महिलाओं में आने वाले समय में पूर्ण रूप से डायबिटिक होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होने बताया कि इसके उपचार के लिए संतुलित आहार, प्रोटीन व आयरन से भरपूर आहार एवं टुकड़ों में भोजन करना चाहिए। इसके अलावा दवाइयों से भी ठीक किया जा सकता है। बशर्ते इसको समय पर जांच लिया जाए, तो शुरुआती अवस्था में रोका भी जा सकता है।
उनका कहना है कि डायबिटीज के मरीज चाहे गर्भवती हो या कोई अन्य उसे चीनी, चावल व गेहूं का सेवन बंद कर देना चाहिए। ऐसे लोगों को चना आधारित डाइट का सेवन करना चाहिए, जिसमें 80 फीसदी चना, शेष बाजरा और जौ से बनी रोटी का सेवन करना चाहिए। उन्होने बताया कि डायबिटीज से ग्रसित गर्भवती को कम मीठे फल, दही, गाय के दूध का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही जितना भोजन तीन बार में करती हैं , उसे थोड़ा-थोड़ा करके छह बार में करें। डॉ० दास का कहना है कि 4 से 6 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की शिकायत देखने को मिलती है |
मधुमेह का कारण
– परिवार में किसी को मधुमेह हुआ हो।
– मोटापा
– 30 वर्ष से अधिक आयु में गर्भ धारण करना
– पूर्व में मृत शिशु को जन्म दिया हो
– पूर्व में तीन किलो से अधिक वजन के शिशु को जन्म दिया हो।