मुजफ्फरनगर दंगे में 21 की मौत, शहर छावनी में तब्दील

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mujjafarnagar1मुजफ्फरनगर। यूपी के मुजफ्फरनगर में साम्प्रदायिक हिंसा के बाद तनाव जारी है। आज 8 लोगों की मौत हुई और मरने वालों की संख्या बढ़कर 21 हो चुकी है। इसके अलावा अब तक 35 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कई इलाकों में दंगाईयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। लेकिन हकीकत ये है कि सेना की मौजूदगी के बाद भी हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। वहीं मुजफ्फरनगर के हालात को लेकर मुलायम ने अपने घर पर आपात बैठक बुलाई।

कहना मुश्किल नहीं कि मुजफ्फरनगर में कैसे अखिलेश सरकार की लापरवाही से एक चिंगारी आग के गोले में तब्दील हो गई। देखते ही देखते चुनिंदा इलाकों में दंगाईयों का कब्जा हो गया। दंगों की आग रविवार को भी जारी रही। शाहपुर इलाके के कुटबा गांव में सुरक्षा बलों और दंगाईयों के बीच झड़प हुई और दो लोगों की मौत हो गई। जिला प्रशासन ने दंगाईयों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है। साफ है दंगों की आग में मुजफ्फरनगर के कई इलाके अब भी झुलस रहे हैं। हर तरफ सन्नाटा पसरा है, हर चेहरे पर दहशत है।
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मुजफ्फरनगर के बिगड़ते हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कई दिनों से यहां छिटपुट झड़प की खबरें आ रही थीं। लेकिन अखिलेश सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन भी कान में तेल डालकर सोता रहा। अब जब हालात बेकाबू हो गए तो सेना बुलाई गई। इस समय मुजफ्फरनगर में कुल 38 कंपनियां तैनात की गई हैं। इसमें से पैरा मिलिट्री फोर्स की 15 कंपनियां, रैपिड एक्शन फोर्स की 5 कंपनियां भी शामिल हैं। जबकि 5 अतिरिक्त कंपनियां बुलाई गईं और 13 कंपनियां पहले से ही मौजूद हैं। हालात बेकाबू होने के बाद डीएम ने सेना की 8 कंपनियां बुलाईं। जिसमें सिर्फ देहात में 5 कंपनियां तैनात की गई हैं। प्रशासन ने पूरे शहर को 8 जोन में बांट दिया है। और पूरे शहर में कर्फ्यू है।

IBN7 पत्रकार राजेश वर्मा के अलावा कई मौतों के बाद भले ही अखिलेश सरकार की नींद टूट गई हो। सेना तैनात कर दी गई हो। लेकिन हकीकत ये है कि सूबे के आला अधिकारियों के सामने ही तनाव फैलाने की कोशिश की गई। स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे अवैध रूप से पंचायतें बुलाई गईं और लोगों को भड़काया गया। सवाल ये कि क्या जान बूझकर हालात बिगड़ने दिया गया। क्या प्रशासन की मंशा दंगों को रोकने में नहीं थी। क्या जान बूझकर नेता दंगों को हवा देने में लगे थे। क्या स्थानीय प्रशासन के पास पुलिसबल की कमी थी। आखिर क्यों हालात बिगड़ने के बाद सेना को बुलाया गया।

सरकारी अधिकारियों की जुबान में कहें तो दंगों के दूसरे दिन मुजफ्फरनगर में हालात काबू में लेकिन तनावपूर्ण हैं। शहर के लोगों तक अखबार नहीं पहुंचा। केबल कनेक्शन काट दिया गया। वीडियो और अखबारों की क्लिपिंग की तलाशी ली जा रही है, जिससे शक है कि लोगों के गुस्से को भड़काया गया। अफवाहें फैलाने वाले लोगों की धरपकड़ जारी है। अफसरों की मानें तो दंगाई देहात इलाकों में ज्यादा सक्रिय थे। जिसने आखिरकार पूरे शहर को अपने आगोश में ले लिया। लेकिन आम लोगों का एक ही सवाल आखिर कार्रवाई में इतनी देरी क्यों।

मुजफ्फरनगर का ताजा हाल बयान करें तो कर्फ्यू की वजह से आम लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ चुकी हैं। लोगों के घरों में दूध, सब्जियों समेत जरूरी चीजों की किल्लत हो गई हैं। जबकि कई इलाकों में आलू, प्याज समेत तमाम जरूरी चीजों की कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं।

खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट कहें या फिर केंद्र सरकार का अलर्ट, पिछले कई दिनों से ये खबर आ रही है कि दंगाई सूबे में सक्रिय हो रहे हैं। लेकिन शायद अखिलेश सरकार तक इसकी गूंज नहीं पहुंचती, या फिर वो सुनना नहीं चाहते। फिलहाल गृहमंत्रालय ने यूपी सरकार से दंगों पर रिपोर्ट मांगी है। मेरठ के सभी शिक्षण संस्थान को भी सोमवार को बंद रखने का फैसला किया गया है। लेकिन सवाल ये है कि सरकार समय रहते इन घटनाओं से सबक क्यों नहीं लेती।