जमाना internet का: कहा से श्रीकृष्ण रुक्मिणी को ले भागे थे?, देखिये और जानिए श्रीकृष्ण का ससुराल

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शेष देशवासी इन्हें चिंकी और चीनी कह कर चिढ़ाने में जरा भी संकोच नहीं करते। चीन इनके इलाके पर अपना दावा ठोंकता है। पर इनकी जड़ें तो भारत के महान धर्मग्रंथों रामायण-महाभारत में हैं। ये वही जगह है जहाँ से भगवान श्री कृष्ण अपनी प्रेमिका रुक्मिणी को ले भागे थे| मथुरा से 1500 किलोमीटर दूर भारत-चीन बॉर्डर पर थी श्रीकृष्ण की ससुराल| इन्टरनेट का दौर है अब मथुरा और चीन-भारत के बॉर्डर में दूरी नहीं बची है| देखिये और पढ़िये रोचक हजारो साल पहले का वाकया-
SRI KRISHAN SASURAL

ये खुद को भगवान श्रीकृष्ण की महारानी रुक्मणी का वंशज मानते हैं। अपनी जीवित परंपराओं, पुरातात्विक अवशेषों के रूप में इस बात के दृढ़ प्रमाण भी देते हैं। यह वे लोग हैं जिन्हें देश में सर्वप्रथम सूर्योदय का दर्शन प्राप्त होता है।
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अरुणाचल प्रदेश की 54 जनजातियों में से एक मिजो मिश्मी जनजाति खुद को भगवान कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी का वंशज मानती है। दंतकथाओं के अनुसार रुक्मिणी आज के अरुणाचल क्षेत्र स्थित भीष्मकनगर की राजकुमारी थीं। उनके पिता का नाम भीष्मक एवं भाई का नाम रुक्मंगद था। जब भगवान कृष्ण रुक्मिणी का अपहरण करने गए तो रुक्मंगद ने उनका विरोध किया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ।

अरुणांचल प्रदेश के भीष्मकनगर में राजा भीष्मक के किले का भग्नावशेष आज भी मौजूद है। यह नगर राज्य के दिबांग घाटी जिले में रोइंग से करीब 29 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भीष्मकनगर किला मिश्मी जनजातियों का प्रमुख तीर्थ है।
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परमवीर रुक्मंगद को पराजित करने के लिए कृष्ण को अपना सुदर्शन चक्र निकालना पड़ा। यह देख रुक्मिणी ने कृष्ण से अनुरोध किया कि वे उनके भाई की जान न लें, सिर्फ सबक सिखाकर छोड़ दें। तब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को रुक्मंगद का आधा मुंडन करने का आदेश दिया। मिजो मिश्मी जनजाति के पुरुष आज भी अपनी केशभूषा वैसी ही रखते हैं।

यहां एक अन्य दर्शनीय स्थान है मालिनी-थान मन्दिर। रुक्मिणी से विवाह करके लौटते समय श्रीकृष्ण ने वहीं विश्राम किया था। इसी स्थान पर भगवान शंकर और पार्वती ने नव-दम्पत्ति को आशीर्वाद दिया था। पार्वती जी ने उन्हें फूलों की माला दी थी और श्री कृष्ण ने खुश होकर पार्वती को नाम दिया मालिनी। तभी से इस स्थान को मालिनीथान के नाम से जाना जाता है।
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तिरप जिले के कुछ लोग आज भी वैष्णव हैं। यहां विभिन्न देवी-देवताओं के मन्दिर तथा टूटे हुए अवशेष आज भी मौजूद हैं। पुरातत्व विशेषज्ञों का यह मानना है कि 15वीं सदी में गुरुनानक जी इस क्षेत्र में आए थे। उनके पदचिन्ह मेचुका में संजोकर रखे गए हैं।
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बौद्ध काल में अरुणाचल प्रदेश पर इस धर्म का भी प्रभाव पड़ा। लाजेला गोंपा, पश्चिमी कामेंग में तेरह सौ (1300) वर्ष पुराना और तवांग में चार सौ (400) वर्ष पुराना बुद्ध मन्दिर इस बात के गवाह हैं।