दालमोठ ही क्या, फर्रुखाबाद के मिजाज में शामिल है तीखी कुरकुराहट!

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फर्रुखाबाद: दालमोठ जिसका नाम लेते ही हर व्यक्ति की जुबान गीली हो जाती है, उसके नमकीनपन का एहसास उसके दिलो दिमाग में कौंध जाता है। उसकी नमकीन खुशबू से ही व्यक्ति दालमोठ की तरफ आकर्षित होता है। फर्रुखाबाद के मिजाज में दालमोठ की तीखी कुरकुराहट शामिल है। इसके अलावा यूपी क्या राष्ट्रीय स्तर पर फर्रुखाबाद की दालमोठ अपने में ही प्रसिद्ध है। प्रदेश व देश स्तर पर फर्रुखाबाद की दालमोठ बड़े-बड़े मालों में विक्री के लिए उपलब्ध रहती है। बीते लगभग आठ दशक से फर्रुखाबाद में दालमोठ का व्यवसाय चल रहा है। फर्रुखाबाद में लगभग सन 1922 में ब्रिटिस शासन काल में दालमोठ का व्यापार शुरू हुआ। लेकिन उस समय दालमोठ का इतना प्रचलन नहीं था। अंग्रेज चाय की चुस्कियों के साथ दालमोठ का सेवन प्रातः किया करते थे, भारतीय लोगों को दालमोठ में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। जैसे-जैसे भारतीय लोगों को अंग्रेजों ने चाय की तरफ लोगों को आकर्षित किया तो भारतीय लोग दूध मट्ठा के साथ-साथ चाय में भी दिलचस्पी लेने लगे। अंग्रेजों का इसके पीछे मुख्य कारण था चाय की लत और यह लत डालने में वह किसी हद तक सफल भी रहे।

सन 1950 के आते-आते चाय का काफी प्रचलन होना शुरू हो गया। शहरी लोग चाय का इस्तेमाल अधिकांश मात्रा में करने लगे। चाय के साथ-साथ ही दालमोठ के कारोबार में भी इजाफा शुरू हो गया। तकरीबन 60 साल पहले देशराज नाम के एक युवा ने दालमोठ व्यापार में अपने हाथ आजमाये तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे दालमोठ का ऐसा प्रसिद्धिकरण हुआ कि फर्रुखाबाद की दालमोठ जनपद क्या राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गयी। जिसमें देशराज की दालमोठ का नाम अपने आप में एक ब्रांड था। दालमोठ की विक्री बढ़ने पर देशराज ने अपना कारोबार भी कुछ बढ़ा दिया। पुराने समय में यातायात के साधन न होने की बजह से दालमोठ बाहर कम जा पाती थी लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, फर्रुखाबाद की दालमोठ का स्वाद कई राज्यों में फैल गया। आज शहर में तकरीबन 40 दालमोठ की दुकानें मौजूद हैं, लोग अपने-अपने तरीके से माल को तैयार कर ग्राहकों को चटपटा स्वाद मुहैया करा रहे हैं।

फर्रुखाबाद में लगभग दालमोठ का व्यवसाय शुरू करने के बाद अपना पूरा जीवन इसी व्यवसाय में निकाल चुके देशराज अब बुजुर्ग हो गये हैं। लेकिन कारोबार में उनकी दिलचस्पी कम नहीं हुई। व्यापार तो अब उनके बेटे देखते हैं लेकिन गुणवत्ता पर कड़ी नजर दालमोठ के इतिहास कहे जाने वाले देशराज की रहती है। जेएनआई से बात करने के दौरान देशराज ने कहा कि उन्हें इस व्यवसाय में तकरीबन 60 साल का समय हो गया है। अब न तो उस तरह की शुद्ध चीज रही और न ही बनाने वाला कच्चा माल। बाजार में पहले वाली गुणवत्ता दालमोठ में नहीं रह गयी है। पूरा जीवन इसी में बिता देने के बावजूद भी देशराज सरकार को लेकर खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि एक तो सरकार ने कच्चे माल पर रुपये बढ़ा दिये दूसरा फर्रुखाबाद में दालमोठ की प्रसिद्धि दूर-दूर तक होने के बावजूद भी कोई भी योजना दालमोठ व्यापारियों, मजदूरों व इस कारोबार से जुड़े लोगों के लिए सरकार ने नहीं चलायी। महंगाई की मार कारोबार झेल रहा है।

वहीं दालमोठ व्यापारी सोनू चौरसिया ने बताया कि दालमोठ के व्यापार पर महंगाई का असर पड़ा है। जिससे तैयार माल को बेचने में कठिनाई होती है। कच्चे माल के महंगा होने से तैयार माल भी महंगा बिकता है। जिस बजह से हर ग्राहक खरीद नहीं पाता है। उन्होंने कहा कि अधिक दुकानें खुलने से भी दुकानदारी पर असर आया है।

20 साल से दालमोठ का कारोबार कर रहे सूर्य प्रकाश ने बताया कि जब कारोबार शुरू किया था तब स्थिति ठीकठाक चल रही थी। बीच में आकर स्थिति बिगड़ गयी। महंगाई ने तो दालमोठ व्यापारियों की कमर तोड़कर रख दी है और वहीं सरकार की तरफ से तैयार माल को बाहर भेजने के लिए कोई योजना कभी भी लागू नहीं हुई। जिससे कई व्यापारियों के पैर उखड़ रहे हैं।

फर्रुखाबादी नमकीन के समय के साथ बढ़ते दाम
फर्रुखाबाद में कई दुकानों के शोरूमों पर सजी विभिन्न-विभिन्न तरीकों की नमकीन व मीठी दालमोठ कई नामों व अलग-अलग स्वादों में बनायी जाती है। वहीं बुजुर्ग हो चुके देशराज ने बताया कि लगभग 60 के दशक में दालमोठ के लिए कच्चे माल की उपलब्धता आसानी से हो जाती थी और दालमोठ कम दामों पर तैयार करके उपभोक्ताओं को भी सस्ते दामों पर उपलब्ध करा दी जाती थी। लेकिन अब महंगाई इतनी अधिक हो गयी है कि कच्चे माल पर महंगाई होने के कारण नमकीन में स्वतः ही कीमत बढ़ती चली जा रही है।

इस समय नमकीन की कीमत दालमोठ 120, गडबड 120, सादा दालमोठ 120, मूंग की दालमोठ 120, काजू बादाम दालमोठ 120, हरी मिलन काजू 200, आलू का सेव 130, आलू चिप्स 140, अनमोल 140, नवरतन 120, सेम का बीज 500, काजू 500, काजू रोस्टेड 600, पीनट 200, मूंगफली दाना 120, चना काबुली 120, हींग का सेव 120, मक्का का सेव 120, टुमैटो सेव 120, पनीर भुजिया 120, भुजिया बीकानेरी 120, आलू भुजिया 120, सेव बेसन 120, समोसा मिनी 100, मक्ता चना 130, चनाजोर 120, तहलका नमकीन 120, गाठिया पापड़ी 120, मठरी मैदा 120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में उपलब्ध है।

क्यों महंगीं हैं सेम व काजू की नमकीन ?
सेम का बीज मार्केट में काफी महंगे उपलब्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सेम के पेड़ को अण्डी के पेड़ों पर तैयार किया जाता है। सेम टूटने के बाद ग्रामीण क्षेत्र के लोग सब्जी के लिए मार्केट में न बेचकर सेम को छीलकर उसके बीज को अच्छे दामों में बेचते हैं। मुख्यतः तकरीबन एक कुन्तल सेम में छीलने के बाद 20 किलो ही उसके बीज निकल पाते हैं। इसके बाद बीज को भी छीला जाता है तो उसका बजन और भी कम हो जाता है। तलने व तैयार होने के बाद 20 किलो से लेकर तैयार सेम बीज की नमकीन का बजन मात्र चार किलो ही रह जाता है। यही मुख्य बजह है कि सेम के बीज की नमकीन 500 रुपये किलो के हिसाब से बाजार में उपलब्ध है। वहीं काजू भी अपने आपमें महंगा उत्पाद है। जिसके चलते काजू की नमकीन भी अन्य नमकीनों की तुलना में कई गुना महंगी है।

दिल्ली, बम्बई जैसे बड़े शहरों में भी फैला है फर्रुखाबादी नमकीन का कारोबार
फर्रुखाबाद की प्रसिद्ध नमकीन का कारोबार जनपद व प्रदेश स्तर पर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी होता है। फर्रुखाबादी नमकीन का कारोबार दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, वीकानेर राजस्थान, कलकत्ता, लखनऊ, कानपुर, बनारस जैसे बड़े शहरों में भी बड़े स्तर पर भी होता है। जनपद में उत्पादित होने वाली नमकीन की कुल नमकीन का 40 प्रतिशत हिस्सा बाहरी शहरों के बाजारों में भेजी जाती है। जिससे वहां फर्रुखाबाद की दालमोठ की विशेष मांग है।

दालमोठ उद्योग ने दिया है हजारों को रोजगार-कारोबार
दालमोठ कारखानों में काम करने के लिए अमूवन तीन से लेकर अधिकतम पांच कारीगर काम करते हैं। जिसमें एक कढ़ाई पर एक कच्चा माल कढाई तक पहुंचाने में और अन्य तैयार हुई दालमोठ पैक करने में लगते हैं। दालमोठ विक्री के हिसाब से तैयार की जाती है। जनपद में लगभग दो हजार से अधिक लोग दालमोठ व्यापार में अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं।