फर्रुखाबाद परिक्रमा: बड़े साहब का धनुष नहीं हिलेगा, पहले जिला पंचायत चुनाव का कलंक मिटाओ

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

जी हां! हम नहीं सुधरेंगे क्या कर लोगे हमारा। जो आ रहा है, हमीं पर रुआब गांठता चला आ रहा है। यह करो यह मत करो। ऐसा करो वैसा करो। बांकी दुनिया सुधर गई। हमीं बचे हैं सुधारने के लिए। वाह साहब वाह क्या कहने हैं।
हम नहीं सुधरेंगे! लाख कोशिशें कर लो! हम हैं पुलिस
वाह साहब वाह क्या कहने हैं आपके। एक हम ही मिले आपको। सारा कानून कायदा हमारे लिए ही है। खबरी लाल बेखौफ होकर पुलिस की वर्दी में सजे धजे लोगों पर बीच चौराहे पर बरस रहे थे। बरसे जा रहे थे। उनकी बात चीत का लिहाजा बहुत कुछ ऐसा था कि नहीं सुधरेंगे। हमारा आप कर क्या लोगे। बड़े आए हमें सुधारने वाले। खबरीलाल बोले नाच न जाने आंगन टेड़ा।

मुंशी हर दिल अजीज से नहीं रहा गया। बोले क्या बात है खबरीलाल। यह तुम बोल रहे हो या तुम्हारी पुलिसिया वर्दी जो तुम कबाड़ी बाजार से खरीदकर लाए हो। यह वर्दी का नशा है ही ऐसा। जब चढ़ता है तब फिर उतरता नहीं है। आखिर बताओ भी यह माजरा क्या है। गर्मी बहुत है। सावन के महीने में भोले भंडारी के किसी भक्त ने ठंडाई पिलाई है क्या।

मुंशी का इतना कहना भर था कि खबरीलाल और अधिक भड़क गए। बोले होश की दवा करो मुंशी होश की। हमें कुछ नहीं हो गया है। यह कबाड़ी बाजार की पुलिसिया बर्दी नहीं है। पुलिस वेलफेयर ऐसोसिएशन ने खास हमारे लिए सिलवाकर हमें भेंट की है। अब हम पुलिस पर होने वाले हर अत्याचार ज्यादती का मुहं तोड़ जबाव देंगे। यह भी कोई बात हुई पुलिस न हुई गरीब की जोरू की तरह सबकी भाभी हो गयी।

खबरीलाल बोले मुंशी जी पुलिस तुम्हारी लौंडी नहीं है। चौबीसों घंटों तुम्हारी सेवा टहल करती है। इसे नींद भी आती है। भूख प्यास भी लगती है। पुलिस के भी बाल-बच्चे, परिवार, नातेदार, रिश्तेदार हैं। पुलिस को हमेशा सतर्क रहने, एलर्ट रहने का उपदेश देने के अलावा कभी उसके सुख दुख के विषय में सोचा है। पुलिस भी हाड़ मांस के जीव हैं। रोबोट या कठपुतलियां नहीं। इन्हें भी सर्दी गर्मी बरसात और लोगों की तरह झेलनी पड़ती है। आप चैन से सोते हैं। यह सूनी गलियों, सड़कों और बाजार में गश्त करते हैं। कभी सोंचा है इनके विषय में।

मियां झान झरोखे से नहीं रहा गया। बोले खबरीलाल क्या बात है। पुलिस वेलफेयर एसोसिएशन की वर्दी पहन ली। बस इतने में ही दुर्वासा ऋषि बन गए। तुम्हारे डीजीपी साहब ने पिछले सप्ताह अपने वरिष्ठ मातहतों की मीटिंग में जो फरमाया था। उसे सुन लो तुम्हारा नशा उतर जाएगा- पुलिस अफसर एसी कमरे में बैठे हुकुम न बजायें, बाहर निकलें हकीकत जानें। थाने में दरोगा क्या कर रहा है और चोरियां, लूट, डकैतियां कैसे थमेंगीं। इंतजाम करिए थानेदार कौन है कैसा है यह तक अफसरों को पता नहीं है। महिलाओं को लेकर संवेदनशीलता है ही नहीं। बेबजह मुझे दो घंटे अदालत में फजीहत झेलनी पड़ी। ऐसा अब नहीं चलेगा। पुलिस ऐसा काम करे ताकि अपराधियों में खौफ पैदा हो न कि जनता में। मियां झान झरोखे यहीं पर नहीं रुके। बोले खबरीलाल क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे और तुम्हारे आस पास के जिलों से 1430 बिजली ट्रांसफार्मर चोर उठा ले गये। वीट इंचार्ज दरोगा सोते रहे। इसमें सुधार लायें वर्ना दोषियों पर कड़ी कार्यवाही होगी। खबरीलाल हक्के,बक्के खड़े अपनी सफाई में कुछ कहें मुंशी हरदिल अजीज बोले- बताओ कुछ कहो न जबाब दो यह यह हम नहीं कह रहे हैं। प्रदेश के डीजीपी कह रहे हैं। प्रदेश के डीजीपी कह रहे हैं। इसका क्या जबाव है। तुम्हारे पास। खबरीलाल ने चुपचाप खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। कैप वेल्ट और डंडा सम्हाले खिसक लिए।

समझदार को इशारा काफी
टाउनहाल पर हुए शपथ गृहण की अव्यवस्थाओं के कारण मुंशी हरदिल अजीज का पारा चढ़ा हुआ था। बुदबुदाते चले आ रहे थे। लोग पता नहीं मौके की नजाकत और गरिमा मर्यादा को क्यों भूल जाते हैं। शपथ यदि रस्म अदायगी है। तब फिर चाहें जितना नंगनाच करो हमें कुछ नहीं कहना। परन्तु यहां तो बात अपने प्यारे दुलारे नगर के विकास की थी। तब फिर हंसी खुशी के माहौल के साथ संजीदगी और जिम्मेदारी को निभाने की बात होनी चाहिए थी।

मियां झान झरोखे बोले कल तक जो बसपाई दबे दबे चल रहे थे। शपथ गृहण में ऐसे चमक रहे थे जैसे यह धनुष उन्होंने ही तोड़ा हो। यह वह स्थिति है जिसमें बात के बिगड़ने का पूरा चांस रहता है। पार्टी का समर्थन सामान्य चुनाव में तब तक माइने नहीं रखता। जब तक चुनाव चिन्हं का आवंटन प्रत्याशी को न हो। वत्सला चुनाव जीतीं शानदार चुनाव जीतीं। इसमें श्रेय नगर की सामान्य जनता को है और किसी को नहीं। अगर ऐसा न होता तब फिर चार चार पार्टियों का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त हाजी की ऐसी दुर्दशा न होती।

मुंशी बोले मनोज और वत्सला के लिए मौका है। खुद भी सुधरो और नगर को भी सुधारो। लोगों की नजरें तुम्हारे ऊपर रहेंगी। सामान खरीद में पारदर्शिता न हुई तब फिर बड़ी बदनामी होगी। अब कहीं शिकायत लेकर जाना भी नहीं पड़ेगा। आरटीआई लोकायुक्त हर समय दूध का दूध और पानी का पानी करने को तैयार बैठे हैं। समझदार को इशारा काफी होना चाहिए।

होश में रहो हम हैं नेता!

हर व्यक्ति का अपना अतीत होता है। कहते हैं व्यक्ति का अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ता। मियां झान झरोखे मुंशी हरदिल अजीज से कह रहे थे। मुंशी ऐसा लगता है कि नेता का कोई अतीत नहीं हेाता। उसका केवल वर्तमान होता है। वह वर्तमान में ही जीता है। जब वर्तमान अतीत में बदल जाता है तब वह उसे भी आसानी से भूल जाता है।

मियां बोले सच कहते हो मुंशी प्रदेश में सत्ता बदली जिले में परिवर्तन हुआ। पहिले बसपाई कहते थे। अधिकारी अपनी सपाई मानसिकता बदल लें नहीं तो जिले में रह नहीं पायेंगे। अब हर सम्मेलन मीटिंग बैठक में सपाई गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते हैं। अधिकारी अपनी बसपाई मानसिकता बदल लें नहीं तो उनका बुरा हाल कर दिया जायेगा। अब इन सपाइयों, बसपाइयों को कौन समझाये कि अधिकारी केवल अधिकारी होता है। उसकी मानसिकता न सपाई न बसपाई और न कांग्रेसी, भाजपाई या कोई और होती है। वह हमेशा अपना और केवल अपना हित देखता है। थानों में चौकियों में विभिन्न् कार्यालयों में सजातीय अधिकारियों की नियुक्ति से किसी का भला होने वाला नहीं है। इससे नुकसान ही नुकसान है। निकट अतीत का हिसाब देख लो। परन्तु नहीं नेता जी ठहरे नेता जी। उन्हें अतीत से क्या लेना देना। उन्हें वर्तमान में जीना है। देखो कल तक जो बौराये घूम रहे थे। थानों चौकियों आला अफसरों के यहां जिनकी जबर्दस्त हनक थी सलाम मिलती थी। बुरा न माने हैसियत और हनक के हिसाब से और खेल भी हो जाते थे। वह सबका सब सत्ता बदलते ही छूमंतर हो गया। दरबार वही पुराने हैं परन्तु दरबारी और शहनशाह बदल गए। अब उन्हें अपने अतीत की याद नहीं आती। पहिले वालों की तरह इन्हें भी यही लगता है कि पूरा नब्बे साल का पट्टा है। अब दरबारियों को क्या। उन्हें चाहे अनचाहे हां में हां मिलानी है। जिससे गली मोहल्लों गांवों में उनका अपना दरबार भी चलता रहे। परन्तु यह दरबार जब उजड़ते हैं तब बड़ी तकलीफ होती है।

मुंशी बोले अरे दूर क्यों जाओ मियां। आज से पांच सात महिने पहिले अपने अंटू भैया का क्या हालचाल था। स्वास्थ्य घोटाला उजागर होने से पहले का जलवा ही दूसरा था। अमृतपुर, नेहरू रोड, फतेहगढ़ सहित जिले भर में तथा कानपुर से लेकर लखनऊ तक दरबारों और दरबारियों के क्या कहने। अब न दरबार रहे न दरबारी। जिससे बात करो वहीं मुहं बिचकाकर कहता है। अब बहिन जी ही समर्थन के वोटों से बचा लें तो बचा लें। नहीं तो जेल जाना बिलकुल तय है। यह वर्तमान रुलाता है। परन्तु अतीत आप वापस नहीं ला सकते। कंपिल कायमगंज से लेकर जिले भर में बसपा दरबार बंद है। बसपा के लिए मर मिटने की कसम खाने वाले ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य सपा में आने के लिए यहां से लेकर लखनऊ तक नए गुलजार हुए दरबारों में हाजिरी लगा रहे हैं।

मियां झान झरोखे ने बात को समेटने की गर्ज से कहा कहां तक कहोगे मुंशी। बड़े बनने की होड़ आदमी को छोटा भी नहीं रहने देती। बेईमान, अवसरवादी और भ्रष्ट बना देती है। परन्तु हर खेल का समय है। खेल खत्म होते ही पैसा हजम हो जाता है। इसीलिए गुरु नानक कह गए-

नानक नन्हें हुई रहो जैसी नन्हीं दूब,
बड़े बड़े झर जायेंगे दूब खूब की खूब।

साहब न हुए शंकर जी का धनुष हो गये!

एक साहब हैं! अरे साहब नहीं है बड़े साहब हैं! बड़े साहब नहीं जिले के मालिक हैं। बड़े साहब की अपनी कार्यशैली है। यह कार्यशैली जिल के बड़े नेताओं को पसंद नहीं है। बड़े साहब को इन बड़े नेताओं की कार्यशैली पसंद नहीं है। कुछ छोटे नेताओं की जिले के छोटे साहबों से लाग डांट है। यह लोग एक दूसरे को पसंद नहीं करते।

अब नेता की दौड़ लखनऊ तक। लखनऊ में भी सीएम तक। लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज पर लगे हैं जोर लगा रहे हैं। परन्तु आज तक की रिपोर्ट यही है कि साहब डटे हुए हैं। बड़े साहब भी डटे हुए हैं। बड़े नेता जी छोटे नेता जी कुछ थके थके से लग रहे हैं। एक ने झुंझलाकर कहा देखो सरकार हमारी शासन हमारा नेता हम। परन्तु समझ में नहीं आता माजरा क्या है। साहब न हुए शंकर जी का धनुष हो गए। हम सब मिलकर हिला रहे हैं। साहब है कि टस से मस नहीं हो रहे हैं।

और अंत में ………………….

पता नहीं कैसा मौसम है। नेताओं को एक दम अपने युवराजों की चिंता सताने लगी है। यह खेल एक राष्ट्रीय बीमारी बन गया है। प्रदेश में अखिलेश यादव की शानदार ताजपोशी से यह बीमारी संक्रामक हो गई है। कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष को देश की चिंता नहीं है। राहुल की ताजपोशी या कहिए बड़ी जिम्मेदारी पार्टी और सरकार में देने की चिंता है। शरद पवार, करुणा निधि, अजीत सिंह सहित कुछ अपवादों को छोड़ कर लगभग सभी दलों के लगभग सभी बड़े नेताओं को अपनी विरासत अपने वारिसों को जल्दी से जल्दी सौंप देने की चिंता खाए जा रही है। आखिर तकाजा उम्र का तो है ही। प्रतिद्धन्दी को आगे न निकलने देने का मामला भी है।

यहां प्रदेश और अपने जिले में भी इस बीमारी के कीटाणु पहुंचने लगे हैं। नेताओं को अपनी चिंता है। अपने नौनिहालों की चिंता है। जनता द्वारा दी गई जिम्मेदारी को निभाने के स्थान पर जनता द्वारा दी गई ताकत रुतबे और अधिकारों के माध्यम से अपने सपूतों को राजनीति में अपने सामने ही अच्छी तरह स्थापित करने की इतनी जल्दबाजी इससे पहले कभी नहीं देखी गयी। आने वाले दिनों में इस बीमारी के और संक्रमक होने की प्रबल संभावनायें हैं।

चलते चलते …………………..

सपा मुखिया मुलायम सिंह ने लोकसभा चुनाव को समय से पहले होने की बात क्या कही। सपाई बम बम हैं। नेता से लेकर कार्यकर्ता सबके सब व्यस्त हो गये। एकदम सम्मेलनों की धूम मच गयी। एक पुराने सपाई ने अपने को बहुत सयाना साबित करने की गरज से जिले के एक बहुत बड़े नेता को सलाह दी। भैया! इससे पहले की लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो। हम सब एकजुट होकर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी पर लगे कलंक को धोने का संकल्प करें और उसे पूरा करें।

चमचे की यह बात सुनकर बड़े नेता को जबर्दस्त करेंट लगा। दांत पीसते हुए गस्से में कहा- होश में रहो श्री मान जी। यहां हमसे कहा सो कहा। कहीं और किसी से भी इसका जिक्र भी मत करना। कहने को तो बड़े नेता ने बहुत कुछ कहा। परन्तु हम उसे वयान नहीं कर सकते। परन्तु जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सपा की कलंक कथा क्या गुल लिखाएगी इसका इंतजार बहुत लोगों को है। जब प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव में पार्टी उम्मीदवार अपना वोट तक अपने आपको न देकर बसपा को भेंट कर दे। तब फिर सियासत की कालजयी कलंक कथा का सृजन होता है। इस कलंक कथा के नायक महानायक लोक सभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशिता में अपने आपको सबसे आगे रखने के लिए वही सब कर रहे हैं जो सादगी और ईमानदारी की राजनीति में सर्वथा वर्जित है। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

(सतीश दीक्षित)
एडवोकेट
1/432 शिव सुन्दरी सदन
लोहिया पुरम आवास विकास कालोनी
बढ़पुर फर्रुखाबाद ।