निषाद, प्रजापति, कहार, कश्यप आदि जातियों को दलित आरक्षण की कवायद फिर शुरू

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प्रदेश सरकार के गले की हड्डी बनी सत्रह पिछड़ी जातियों के आरक्षण मामले में अब मंत्रियों की समिति रायशुमारी करेगी। यह समिति अपनी राय देगी कि किस तरीके से इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया जा सकता है। समिति की संस्तुतियों के आधार पर ही प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा।

आरक्षण वैसे तो केंद्रीय मामला है लेकिन सरकार अपने घोषणापत्र में किए गए वायदे को अमल में लाने के लिए हर कदम उठाने को तैयार है। इसीलिए मंत्रियों की समिति की संस्तुतियों का रास्ता निकाला गया है जो कि इन जातियों के बारे में समग्र अध्ययन के साथ अपनी संस्तुति करेगी। इस समिति का गठन भी कर दिया गया है। समाज कल्याण मंत्री अवधेश प्रसाद इसके अध्यक्ष बनाए गए हैं जबकि सदस्यों में राम गोविंद चौधरी, ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी और शिव कुमार बेरिया को रखा गया है। प्रमुख सचिव कल्याण सदाकांत इस समिति के सदस्य सचिव होंगे। समिति न सिर्फ इन जातियों के बारे में पूरा ब्यौरा हासिल करेगी, बल्कि इसके परिणामों के बारे में भी अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश करेगी। इससे पहले समाज कल्याण विभाग ने इस आशय का एक प्रस्ताव बनाकर विधि विभाग की राय भी जाननी चाही थी लेकिन आरक्षण को केंद्रीय अधिकारियों का मामला बताकर विधि विभाग ने इस संवेदनशील मसले से किनारा कर लिया था।

उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग में शामिल निषाद, प्रजापति, मल्लाह, कहार, कश्यप, कुम्हार, धीमर, बिंद, भर, केवट, धीवर, बाथम, मछुआ, माझी, तुरहा और गौड़ जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की घोषणा की थी। इसके बाद जब इस दिशा में कवायद शुरू हुई तो आरक्षण के पेंच सामने आ गए। आरक्षण की व्यवस्था आबादी के अनुरूप है इसलिए यदि यह जातियां पिछड़ी जातियों के समूह से हटायी जाती हैं तो पिछड़ों के आरक्षण में कटौती करनी होगी। सरकार के लिए सबसे बड़ी जरूरत इस समस्या का समाधान भी खोजना है। मंत्रियों की समिति इसके लिए भी सरकार को अपनी राय सौंपेगी।

उल्लेखनीय है कि सपा ने अपने पिछले शासनकाल में भी इस आशय का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था और एक अधिसूचना जारी करके इन जातियों को अनसूचित जाति जैसी सुविधाएं देने की घोषणा भी कर दी थी लेकिन मामला अदालती विवाद में फंसकर रह गया था। इसके बाद मायावती सरकार ने भी दो बार केंद्र सरकार को इस आशय का प्रस्ताव भेजवाया लेकिन केंद्र ने अनुसूचित जाति, जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान से इन जातियों का विशेष अध्ययन की बात कहकर प्रस्ताव वापस कर दिया था।