चौक का पत्थर व नगर पालिका चुनाव: मंत्री का वात्सल्य और शेरनी का पलटवार

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फर्रुखाबाद: नगर पालिका चुनाव की रणभेरी बजते ही राजनीति के धुरंधरों की पर्दे के पीछे की सरगर्मी बढ़गयी है। पुरानी कहावत है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। राजनैतिक गलियारों से आ रही कुछ खबरें तो धुरविरोधियों के एक जुट होने तक की है। सूत्रों की मानें तो अभी तक खुद या अपनी बहू को नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ाने का दम भर रही सपा की एक घायल शेरनी ने एक मुस्लिम प्रत्याशी का सारथी बनने का फैसला कर लिया है। वहीं दूसरी पार्टी में उनके धुर विरोधी खेमे की जुगत से मंत्री जी का वात्सल्य एमएलसी की पत्नी पर उमड़ रहा है।

नगर पालिका चुनाव हो या सदर विधान सभा का मामला, उसका एक ध्रुव “नाला” होता है। इस बार भी इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। पिछले लगभग 20 वर्षों के राजनैतिक उठापठक के दौरान उस्ताद की भूमिका हमेशा उल्लेखनीय रही। आसन्न नगरपालिका चुनाव में भी राजनीति की चौसर पर पांसे सजाने वाले इस बार भी उस्ताद को घेरने में ही व्यस्त हैं। जब से पार्टी ने सिंबल पर चुनाव लड़ाने से इनकार किया है तबसे सर्वाधिक बिखराव सपा में है। इस जंग में सपा की घायल शेरनी अब तक सत्ता के सहारे स्वयं या अपनी बहू को चुनाव लड़ाकर जीतने का दम भर रही थी, सो उन्होंने भी पार्टी के रुख का देखकर उस्ताद को पटखनी देने के लिये एक भारी-भरकम मुस्लिम प्रत्याशी का सारथी बनने का निर्णय कर लिया है।

उनके इस निर्णय के पीछे जो गणित है उसके अनुसार एक तीर से उनके दो दुश्मन एक साथ धाराशायी होने की संभावना है। बात दरअसल चौक के पत्थर से शुरू होती है। पत्थर लगने के बाद मंत्री के सिपहसालारों ने पहले जिस तरह अपने कुर्तों की बाहें फाड़ीं, और आखिर पत्थर को रातों-रात उखड़वा कर ही दम लिया, और फिर जिस आसानी से पत्थर पर नाम बदल कर आनन-फानन में लोकार्पण की तैयारी हो गयी, उससे यह संकेत साफ तौर पर चला गया कि कहीं न कहीं मंत्री और लाला की दुरभि-संधि हो गयी है। फिर क्या था, घायल शेरनी ने मंत्री और उस्ताद दोनों को सबक सिखाने के लिये कुर्सी का मोह त्याग दिया। सूत्रों की मानें तो एक दो दिन में औपचारिक घोषणा भी हो सकती है। परंतु मंत्री जी अपने पत्ते खोल पायेंगे इसकी संभावना कम ही है। हां इस बहाने लाला को शासन-प्रशासन की पुश्तपनाही जरूर सुनिश्चत हो जायेगी। परंतु शहर की राजनीति की इस ताजा करवट ने चाहे-अनचाहे उस्ताद की मूंछों के नीचे अक्सर अठखेलियां करने वाली खतरनाक मुस्कुराहट को और तीखा कर दिया है।