फर्रुखाबाद परिक्रमा: अब सलमान के बाद संतोष भारतीय की बारी है

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबादः मुंशी हरदिल अजीज और मियां झान झरोखे आज कल बोर्ड की परीक्षाओं में व्यस्त हैं। युवा मुख्यमंत्री द्वारा खनन माफिया के विरुद्व अभियान के ऐलान से उनका उत्साह बढ़ा हुआ है। कहते घूम रहे हैं अब जिले में ठेके पर खुली सामूहिक नकल पर रोक लगेगी। नकल माफिया सुधरे नहीं तो जेल जायेंगे।

मुंशी का उड़नदस्ता कंपिल से कन्नौज तक का तूफानी दौरा करके लौटा। तब तक सारा उत्साह हवा हवाई हो चुका था। चौक की पटिया पर उदास हताश निराश बैठे ये मुंशी हर दिल अजीज मियां झान झरोखे और खबरीलाल। मुंशी और मियां उदास थे। इसलिए खबरीलाल पूरे फार्म थे। बोले पूरी व्यवस्था में ऊपर से नीचे तक कदम-कदम पर पैसा लिया जाता है। मंत्री से लेकर संतरी तक कोई भी नहीं सुनता माल पानी के बिना। यह सब किसी को दिखायी नहीं देता। दिखाई देती है तो केवल और केवल नकल और वह भी परीक्षा के दिनों में। इन पंद्रह दिनों के आगे पीछे महामना मदन मोहन मालवीय के कलयुगी वंशजों द्वारा क्या कुछ नहीं किया जाता, इसको जानने की समझने की और समस्या के समाधान की फुरसत किसी को भी नहीं है।

खबरीलाल बोले जा रहे थे, बड़ी-बड़ी बातें करना हमें भी खूब आता है, परन्तु समस्या के समाधान में किसी की दिलचस्पी नहीं है। पहले लोगों की दिलचस्पी छात्रों के भविष्य और अपनी संस्था को आदर्श बनाने में होती थी। इसमें अवरोध आता था तब सिर्फ संचालक, प्रबंधक, आचार्य, प्राचार्य अपनी आत्मशक्ति के बल पर बेईमान अधिकारी को दबोच लेते थे। बेईमान अधिकारी की एैसी तैसी हो जाती थी।

खबरीलाल हाथ में लिए पानी की बोतल से दो घूंट मुहं में डाल कर फिर शुरू हो गये। बोले बात कड़वी है लेकिन कहेंगे जरूर। आज जिले के विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं में कौन ऐसा है? हारे जीते प्रत्याशियों में कौन ऐसा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी शिक्षा संस्था से न जुड़ा हो। कौन सी ऐसी शिक्षा संस्था है, विशेष रूप से उनकी जिन्हें अब बड़े शौक से अब नकल माफिया कहा जाता है, जिसे किसी न किसी जनप्रतिनिधि ने अपनी निधि से पैसा नहीं दिया। खबरीलाल बड़े जोश के साथ बुलंद आवाज में बोले, है कोई माई का लाल! जो छाती ठोंक कर ईश्वर को हाजिर नाजिर मानकर कह सके कि, यह आदान प्रदान बिना अंशदान के गंगा की तरह निर्मल और पवित्र तरीके से किया गया है। सही बात यह है कि आज जितनी गंगा मैली है उससे कहीं ज्यादा गंदगी इस आदान प्रदान के अंशदान में होती है।

मुंशी और मियां को उदास खामोस देखकर भी खबरीलाल बिना रुके बोलते ही जा रहे थे। बोले, बड़े-बड़े महापुरुषों के नाम पर स्थापित शिक्षा संस्थाओं के कथित काले कारनामों की सूची बहुत लम्बी है। बड़ी-बड़ी गोष्ठियों सेमिनारों और वार्षिकोत्सवों में स्वागत सत्कार अभिनंदन, वंदन, चंदन, शाल, दुशाला, स्मृति चिन्हं, फोटो, वीडियो, लंच, डिनर, ब्रेकफास्ट, गायन, वादन, नृत्य ही नहीं, युगल गान तक की व्यवस्था होती है, करनी पड़ती है। रिपोर्ट आख्या आपत्ति, सर्वेक्षण सब के रेट निश्चित हैं। मान्यता के लिए खींसे निपोरे, कठपुतली की तरह जांच के नाम पर दाम फेंकते जाइए सब काम होते जाएंगे। अब ऊपर से नीचे तक शिक्षा विभाग में चांदी का जूता ही चलता है वह भी मखमली रूमाल में लपेट कर। पर अब भी जब कोई दिलजला मरने मारने के अंदाज में तन कर खड़ा हो जाता है तब फिर बला टालो की अंदाज में सब कुछ बिजली की चमक की तरह हो जाता है। व्यवस्था फिर अपनी पटरी पर लौट आती है।

खबरीलाल बात को लपेटने के अंदाज में बोले हां ठीक है। अखिलेश यादव को लम्बी पारी खेलनी है। युवा हैं, पढ़े लिखे हैं, तरक्की पसंद, बड़े-बड़े वादे किये है परन्तु ठेके पर खुले सामूहिक नकल के बड़े कारोबार में लगे सब तो अपने हैं। अब जरा बताओ राजनीति हो या कूटनीति हो अपनों से कौन लड़ता है। मियां जी, मुन्शी जी आप हमसे बड़े हैं, योग्य हैं, अनुभवी हैं, आपके इरादे भी नेक हैं परन्तु जिले और प्रदेश से नकल की महामारी को रोक थाम की अखिलेश यादव या किसी से मत करो उम्मीद। बहुत कष्ट होगा जैसा आप दोनों को इस समय हो रहा है। भला अपनों से कौन लड़ा है और कौन जीता है। अपनों से सब हारे हैं। खबरीलाल रेलवे रोड की ओर चल दिये। मियां और मुंशी ठंडी आह भरकर बोले सच कहते हो खबरीलाल घोड़े पर वश नहीं चल रहा और लगाम मरोड़ने की कसरत चल रही है।

चावल के खेल में तू भी खेला मैं भी खेलूं

वह बहुत बड़े नेता हैं जब इस पार्टी का शासन होता है तब उसी के नेता हो जाते हैं। कल तक बसपा का शासन था, बसपा में थे, मतलब से थे, बिना घोषणा के थे। अब सपा का शासन है। सपा में हैं, मतलब से हैं, घोषणा के साथ हैं। बड़े इतने कि मंत्री, विधायक, नेता, हाकिम, हुक्काम सब हाजिरी देते हैं। सबको साधने की कला में पारंगत हैं। मोहम्मदाबाद की हवाई पट्टी पर एक बहुत बड़े नेता को सोने की भारी चेन पहना देते हैं। नेता जी खींसे नपोरे अंधे समर्थकों की जिंदाबाद के बीच पहन भी लेते हैं। अत्यंत वरिष्ठ हैं, उनकी वरिष्ठता का जिले में ही नहीं प्रदेश में भी लोग लोहा मानते हैं। उनके स्वागत सत्कार में बिछ जाते हैं। जो लोहा नहीं मानता उसका टिकट काटने, गाली देने, फंसाने में कोई कसर नहीं रखते हैं। कहीं वह कुत्ते की तरह दुम हिलाते हैं, बाकी उनके यहां दुम हिलाते हैं। वह दानवीर है उदार है, मिलनसार हैं, गरीब परवर हैं। वो वह सब कुछ हैं जो हैं वास्तव में नहीं है। विज्ञापन देने की ताकत के बल पर उनके छींकने, खांसने, खंखारने तक की खबरों फोटो सहित छपती है। वह अकेले नहीं हैं अपनी तरह के लोगों के वह बिना ताज के महाराजा हैं। वर्षों से उनका जलवा कायम है। गरीबों को उनके यहां रोटी मिलती है, नेताओं को बोटी मिलती है, फकीरों-भिखारियों को लंगोटी मिलती है। काले हैं लेकिन दिल वाले बहुत हैं। कर्ण से ज्यादा दानी हैं। अजीत से ज्यादा जितेन्द्रीय हैं। प्रताप से ज्यादा प्रतापवान हैं। मोहब्बत और नफरत का इजहार सही समय पर ही करते हैं। पूरा कुनवा, परिवार, कस्बे, जिले और प्रदेश की सेवा में लगा है।

बड़े श्रद्धालु हैं, जरूरत से ज्यादा ईर्श्यायालु हैं। अच्छे बुरे कामों के लिए दान, सहयोग, आशीर्वाद लेने वालों की उनके यहां लाइन लगी रहती है। वे खेल प्रेमी हैं और मेल प्रेमी भी है। वह बहुत कुछ हैं सब कुछ हैं परन्तु वह नहीं है जो उन्हें वास्तव में होना चाहिए। कल तक वह जहां-जहां हाजिरी लगाते थे आज वह सब उनके यहां हाजिरी लगाने में अपने आपको गौरवान्वित मानते है। उनकी महिमा न्यारी है, अब उनकी ही बारी है। बड़े चुनाव की तैयारी है, सबसे उनकी यारी है। एक श्रद्धालु से नहीं रहा गया, हिम्मत करके पूछ दिया बताओ क्या हैं? हंसते हुए बोले हम कुछ नहीं हैं सुदामा के तंदूल हैं, कृष्ण के अक्षस हैं, मिड डे मील के घटिया चावल हैं, डिनर के बासमती पुलाव हैं, सर्दी के अलाव हैं, गर्मी के एसी हैं, बरसात की छतरी हैं। हम क्या हैं यह तो हम स्वयं ही नहीं जानते। हम बालू के तेल हैं। चावल के खेल हैं। तू ज्यादा भ्रम और दुविधा में मत पड़ होली में गले मिल, गुजिया खा, चावल के खेल को तू भी खेल और मैं भी खेलूं। इस खेल में एकाकार हो जा। इसी में मेरा तेरा सबका कल्याण है।

सुधरेंगे नहीं नेता

विधानसभा चुनाव निपट गये, सपा जिले की तीन सीटें जीतकर टापर रही। सदर सीट पर निर्दलीय ने अगस्त 2007 में उप चुनाव में अपनी हार का बदला ले लिया। उप चुनाव में वह कांग्रेस प्रत्याशी थे। उससे पहले से सामान्य चुनाव में वह सपा प्रत्याशी के रूप में जीते थे। फिर बसपा में चले गये। टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में आ गये। नरेश अग्रवाल बसपा से लोकसभा का चुनाव लड़े। श्रीमान जी पुनः बसपा में आकर नरेश अग्रवाल के प्रमुख चुनाव सारथी बन गये। वहां से फिर हवा हवाई हुए। भाजपा, बसपा, कांग्रेस की खींचतान में चुनाव जीत गये परन्तु परिस्थितियां ऐसी बनीं कि बेचारे घर के रहे न घाट के। धीरपुर नरेश भी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते। लेकिन दल बदल का उनका कीर्तिमान 1977 से 2012 तक फैला है। स्व0 ब्रहृमदत्त द्विवेदी की विरासत सम्हाले उनके बेटे भी बहक गए। जाने क्या सूझी कमल छोड़ हाथी पर बैठ गए। बहिन जी ने उनके पिता के अहसानो का बदला चुकाने की गरज से उन्हें लाल बत्ती थमा दी फिर कुछ दिन बाद छीन ली। हारे थके वह फिर अपनी पुरानी पार्टी में आ गए। परन्तु आदतें नहीं बदल पाए। महिने में 25 दिन बाहर रहेंगे। जब यहां रहेंगे तब मित्र मण्डली के आलावा किसी से कुछ मतलब नहीं। नतीजा सामने हैं भाजपा विरोधी वोट के चार हिस्सों में बंटने के बाद भी श्रीमान जी हारने का रिकार्ड नहीं तोड़ पाये।

किस्मत जब दगा देती है तब दिमाग स्थिर नहीं रहता है। यहां के लोगों को दिल्ली के नेता नासमझ मानते हैं। जब भी चुनाव का बिगुल बजे तम्बू कनात लेकर आ जाओ। सब कुछ आपको चाहिए। जनता ने ऐसा धोबी पाट चलाया कि जमानत तक नहीं बची। हाथी के कई सवार बदले गये। जनता ने सबको ठुकरा दिया। हाथ ने सपा के दलबदलुओं का हाथ थामा, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, फर्रुखाबाद सब जगह सूपड़ा साफ हो गया। यह जनता है यह सब जानती है। नेताओं चुनाव का संदेश साफ है सुधर जाओ, नहीं तो सुधार देंगे।

और अंत में: अब सलमान के बाद संतोष भारतीय की बारी है

फर्रुखाबाद से कथित रूप से डरने वाला नेता जब कोई नेता यह आकर कहे कि दिल्ली में बैठकर हमें आप सबकी बहुत याद आती है समझ लो चुनाव की तैयारी हो रही है। जवाहर सिंह गंगवार एडवोकेट की पुस्तक “शिलालेख” का विमोचन समारोह था। पूर्व सांसद फर्रुखाबाद संतोष भारतीय कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। किताब के सम्बंध में विस्तार से अगली बार लिखेंगे। परन्तु आज के समारोह में वक्ताओं के तेवरों और तरीकों और सबसे ऊपर संतोष भारतीय के लटकों, झटकों से श्रोता साफ समझ रहे थे कि खेल होने वाला है। टेलीफोन के नम्बर मांगे गये हैं और अपने दिये गये हैं। पुराने सम्बंधों की जमकर दुहाई दी गयी। एक बार जीते और दोबारा यहां से चुनाव हारे संतोष भारतीय कहीं से भी परिचय के मोहताज नहीं है। नेताओं, पत्रकारों की महीन से महीन कलाकारी के अच्छे जानकार हैं। देखना है कि आने वाले दिनों में क्या होता है। आगाज तो अच्छा है, अंजाम खुदा जाने। क्या 1989 की वापसी 2014 के लोकसभा चुनाव में होगी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेसियों की हुई फजीहत से तो ऐसा ही लगता है। जय हिन्द।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट