फर्रुखाबाद परिक्रमा: आरटीआई की अर्थी, मित्र पुलिस, टीपू का प्रोमोशन और उमा की बेचारगी

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कप्तान साहब बहादुर ! जनसेवक बनों हिटलर नहीं-

झमाझम बारिश हो रही थी चौक की पटिया पर बैठे मुंशी हर दिल अजीज गर्मी पर गर्मी खाए जा रहे थे| मियाँ झान झरोखे उन्हें जितना समझाने की कोशिश करते वह और ज्यादा हत्थे से उखड जाते| बोले तमाशा है क्या? अब कप्तान साहब बहादुर हो गए तब फिर किसी को कुछ समझेगें ही नहीं तानाशाही नहीं चलेगी? शहर और जिले में गलत काम थाने चौकी से लेकर गली मोहल्लों में नहीं हो रहे? फतेहगढ़ में जिला मुख्यालय पर कप्तान साहब की नाक के नीचे कोतवाली में क्या गुल खिलाए जा रहे हैं| सिपाही से लेकर थानेदार तक मनमानी पर उतारू हैं आप खामोश है| किसी से कुछ करते नहीं बन रहा है पहले अपना घर ठीक करो फिर अपराधियों दबंगों, सफेदपोशों, जुआ, सट्टा, शराब के अड्डों माफियाओं पर कहर बनकर टूट पडो| कौन रोकता है आपको ? गली गली आपकी जय जयकार होगी अभिनंदन होगा| परन्तु आपको तो तिराहे चौराहों पर ड्यूटी के नाम पर खुली बसूली करने वाले अपने लोगों तक पर अंकुश लगाने की फुर्सत नहीं है|

मियाँ झान झरोखे ने एक बार फिर मुन्शे के कंधे पर हाँथ रखकर कहा अब बस भी करो मुंशी बात क्या है? यूं ही पुलिस पर राशन पानी लेकर पीछे क्यों पड़े हो, कुछ बताओ तो सही| इतना सुनते ही मुंशी आग बबूला हो गए बोले चुप रहो तुम्हारे जैसे किन्नरों और कायरों की फ़ौज ने पुलिस को बेलगाम कर दिया है| कहने भर के लिए हैं जन सेवक और मित्र पुलिस| परन्तु चाल चलन और चरित्र तौर तरीके और कार्यशैली कहीं से भी अनुकरणीय और सराहनीय नहीं है|

मुंशी बोले शहर और जिले में आपराधिक बारदातों पर अंकुश लगा पाना तो बहुत दूर की बात है, नो इंट्री को धता बताने, डग्गामारी को प्रोत्साहित करने का काम पुलिस कर्मी पैसा लेकर खुलेआम करवाते हैं| इसे कौन नहीं जानता और कौन नहीं देखता| चौक तिराहों नाकों बाजारों में चुंगी से भी बेशर्मी भरी क्रूरतापूर्ण बसूली है पुलिस की| कब ट्रक, डग्गामार जीप, टैम्पो आदि को डंडा चलाकर मारकर वाहन को रोका जाता है| कब क्लीनर, ड्राईवर मालिक का हाथ जेब में जाता है कब हाथ वाहन के बाहर आता है| कब बाहर आया हाँथ पुलिस के हाथ से मिलता है| कब एक मुडी तुड़ी छोटी बड़ी रंगीन पुडिया पुलिस के हाथ से पुलिस के जेब में चली जाती है| त्योरियां ढीली पद जाती हैं| डंडा और आँख दोनों नीचे झुक जाते हैं| एक मिनट पहले का दो कौड़ी की हैसियत वाला क्लीनर, ड्राईवर या मालिक शान से मूंछो पर हाँथ फेरता हुआ आगे बढ़ जाता है| जिधर उसे जाने की मनाही पुलिस ने ही कर रखी है| इस सबको जद से खत्म करने की बहादुरी क्यों नहीं दिखाते कप्तान साहब बहादुर| लगे हांथो यह भी बता दें एक हाथ से दूसरे हाथ और जेब में जाने वाली रंगीन पुडिया नशे के पाउडर की नहीं बल्कि रिजर्ब बैंक के गवर्नर की चिट्ठी होती है|

मियाँ झान झरोखे ने फिर कुछ कहना चाहा, मुंशी हर दिल अजीज फिर भड़क गए बोले विक्रम होटल के मालिक दीपक की निर्मम ह्त्या हुई| नगर में किसकी आँख गीली नहीं हुई, किसको गुस्सा नहीं आया| कातिल को पकडने के लिए पुलिस ने साम दाम दंड भेद सब हथकंडे अपनाए| किसी को इस पर शायद ही एतराज हो| घर की महिलाओं को भी दवाव बनाने के लिए पकड लाये| चलो यहाँ तक भी ठीक है| हत्यारा गिरफ्तार हो गया, पुलिस को शाबासी मिली मिलनी चाहिए| परन्तु दवाव बनाने के लिए पकड़ी गई महिलाओं को तीन दिन बाद नशीला पाउडर रखने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया| इस बात का क्या औचित्य है कप्तान साहब| लोग पुलिस के खौफ से चुप हैं| इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आपकी इस अन्यायपूर्ण पुलिसिया कार्यवाही पर जन स्वीकृति है|

मियाँ बोले हम सब कहते हैं कि विक्रम होटल के मालिक दीपक का हत्यारोपी पंकज सट्टे के अवैध व्यापार में वर्षों से आपकी पुलिस की मेहरवानी से लगा है| आपकी इसी मेहरवानी से उसे और उसके परिवार को दड़ा सट्टा माफिया और किंग का खिताब मिला हुआ है| क्या आप दावे के साथ कह सकते हैं कि दड़े और सट्टे के इस अवैध व्यापार में कथित रूप से आपकी पुलिस की हिस्सेदारी नहीं है| मुंशी बोले मियाँ हमने अपनी जिंदगी में ऐसे ऐसे कड़क कप्तान, सीओ, थानेदार और इंचार्ज देखे हैं जिनके चार्ज लेते ही टपोरी, बदमाश से लेकर बड़े बदमाश दबंग और अवैध धंधे में लगे लोग इलाका छोड़कर चले जाते थे| और तो और जनसेवक नेता माननीय और कलम के सिपाही कहे जाने वाले वह लोग जो कथित रूप से इन लोगों की शासन प्रशासन में पैरवी करते थे और आयेदिन उपकृत होते रहते थे| वह भी अपनी हरकतों से तौबा कर लेते थे|

मियाँ बोले मुंशी बातें तो तुम्हारी सोलह आने सही है परन्तु यह भी सच्चाई है कि खाली पुलिस ही क्यों जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब लोग निर्भीक और निष्पक्ष होकर काम नहीं करते तब फिर आलम यही होता है जो आज पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित विभिन्न विभागों का हो रहा है| शासन प्रशासन इकबाल से चलता है इकबाल लगभग खत्म हो गया है| नतीजतन हालात दिन प्रतिदिन बिगडते ही जा रहे हैं|

मुंशी बोले मियाँ ऐसी बात नहीं है| सब कुछ गलत नहीं है परन्तु अब गलत काम करने वाले बेईमानी लूट करने वाले लोग अपनी गलत बातों पर झेपते या पश्चाताप नहीं करते अब पलट कर बेशर्मी से कहते हैं| बेईमानी का मौक़ा नहीं मिलता इसलिए ईमानदारी की दुहाई ज्यादा देते हैं| उपभोक्ता वादी संस्कृति के चलते घूसखोरी, बेईमानी और लूट को बढ़ावा देने वाली यह सोंच बहुत खराब है| अनीति और बेईमानी से संपत्ति अर्जित करने वालों की प्रशंसा का चलन भ्रष्टाचार के यज्ञ में घी की आहुतियों की तरह है| इसे रोकने और इसके विरोध का निर्णय करना होगा|

कम जरूरत से बहुत ज्यादा दिखाई दे रहा है,

अब तुम्हे सूरज उगाना ही पडेगा|

रात जैसी रात हो तो ठीक भी है,

एक दिन की बात हो तो ठीक भी है|

आज तो सूरज जन्म से सांवला है,

और कुछ उलझा हुआ सा मामला है|

बरम किरन को पालकी ठहरा रहा है,

अब तुम्हे निर्णय सुनाना ही पडेगा|

तीन माह में चले तीन कोस-

अपने यहाँ कहाबत है नौ दिन चले अढाई कोस| परन्तु संचार क्रांति के युग इक्कीसवी सदी में जितना प्रशासन के वरिष्ठतम अधिकारियों की चाल और कार्यशैली का नजारा वास्तव में हैरान करने वाला है|

ज्यादा समय नहीं हुआ पूर्व जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के घोटालों, घपलों भ्रष्टाचार आदि की शिकायतों पर मचे जबर्दस्त बवाल के चलते उन्हें निलंबित किया गया था| जिलाधिकारी के आदेश से अपर जिलाधिकारी ने सारे प्रकरण की जांच की थी जिसमे बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने प्रमाण दिए थे और अपने बयान दर्ज कराये थे| अपर जिलाधिकारी ने जांच पूरी होने के एक माह के अंदर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की बात कही थी| धीरे धीरे आया हुआ तूफ़ान थम गया| प्रशासन ने यह प्रदर्शित किया कि जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं| नए बेसिक शिक्षा अधिकारी कुछ दिन सहमे रहकर निलंबित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से भी अधिक कला कौशल दिखाने लगे|

सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जांच कार्यवाही के सम्बन्ध में 7 अप्रैल 2011 को जिलाधिकारी को प्रेषित पत्र का उत्तर अपर जिलाधिकारी के हस्ताक्षरों से पूरे सवा तीन माह बाद 12 जुलाई 2011 को दिया गया| यह उत्तर भी बहुत रोचक और प्रशासन की कार्यप्रणाली को रेंखाकित करने वाला है| इसमें उल्लेख किया गया है कि जांच आख्या सचिव बेसिक शिक्षा उत्तर प्रदेश शासन को 08/02/2011 को प्रेषित की जा चुकी है| इतना उत्तर देने में अपर जिलाधिकारी को पूरे सवा तीन माह लग गए| जांच आख्या की प्रति अपर जिलाधिकारी के कार्यालय में नहीं होगी| यह बात समझ नहीं आती| पूर्व जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के एक अन्य प्रकरण में तत्कालीन जिला अधिकारी के आदेश से ही पिछले वर्ष विभिन्न शिकायतों की जांच विगत वर्ष इन्ही दिनों की गई थी| गंभीर अनियमितिताओं के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई| अब लगता है प्रशासन ने इस शिकायत को भी दबाने का मन बना लिया है| शासन प्रशासन की इसी ढिलाई और लेट लतीफी ने बेईमानों और भ्रष्टाचारियों को बेलगाम और बेख़ौफ़ कर दिया है| उन्ही बेसिक शिक्षा अधिकारी जिन पर गंभीर आरोप लगे वे अब पड़ोस के जिले में उसी पद पर सुशोभित होकर जाँच और जाँच प्रक्रिया को मुह चिड़ा रहे हैं| चर्चा आई है कि जाँच रिपोर्ट को दबाने/बदलने और फिर से बेसिक अधिकारी बनने के लिए पचास लाख का खर्च आया है| बेचारे खबरची ये पता लह्गाने में लगे हैं कि पचास लाख कहाँ कहाँ बटा? सब लखनऊ कानपुर में खर्च हो गया या कुछ फर्रुखाबाद के भी हिस्से में आया? जय हो जाँच व्यवस्था की!

टीपू का कद फिर बढ़ गया-

जिले और शहर के कांग्रेसियों के लिए मिठाई बांटने और आतिशबाजी छुडाने का एक और मौक़ा| निरंतर अपने कद में इजाफा करने वाले टीपू मियाँ का कद सोमवार को उनके विधि मंत्री बनते फिर बढ़ गया था| अब वह मिशन 2012 के अंतर्गत होने वाले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने वाली कमेटी के मुखिया बन गए हैं| नतीजतन उनका कद और बढ़ गया है| ऐसे में मिठाई भी बंटेगी और आतिशबाजी भी छुडाई जायेगी| इधर लगातार कद बढ़ रहा है| परन्तु अपने संसदीय क्षेत्र में विधान सभा चुनाव के लिए ढूँढने से भी दमदार प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं| लखनऊ में जूतों में दाल बाँट रही सपा बसपा दिल्ली में समर्थन कर रही है| बढे कद के नेता को अपने जिले में भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इन्हें दोनों का सहारा है| विशेष रूप से तब जब बेगम तक पर चुनावी दांव लगा हो| सही ही कहा है-

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेंड खजूर,

पंक्षी को छाया नहीं फल लगे अति दूर|

और अंत में –जबर मारे भी और रोने भी न दे-

भाजपा जितने खेल खेलती है उसके खेलों के जानकर पुराने लोग उन्हें फेल करने में देर नहीं लगाते| भाजपा में बड़ी धूमधाम से उमा भारती की वापसी हुई| वह गंगा सफाई अभियान पर निकल पड़ीं| फर्रुखाबाद आई और भाजपाई अंदाज में बयान दिया कि कल्याण सिंह का कोई विकल्प नहीं है| वह उनकी बेटी है और उनकी उत्तराधिकारी है| पहले जवाब दिया पार्टी के प्रांतीय उपाध्यक्ष ने| बात ज्यादा नहीं बनी तब फिर मोर्चा सम्भाला स्वयं कल्याण सिंह ने बोले उमा भारती जहां जातीं हैं वहाँ दो ढाई सौ लोग भी नहीं जुटते| इतना ही नहीं ऊपर से यह भी जड़ दिया कि इससे ज्यादा लोग तब इकट्ठे हो जाते हैं जब वह मूंगफली खाने निकलते हैं| भाजपा की फायर ब्रांड नेता साध्वी उमा भारती की समझ में नहीं आ रहा है कि अपने स्वघोषित पिता के इस कथन पर वह क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करें|

कल्याण सिंह को जब उनके चहेते पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ने सपा की टिकट से उनके एक सजातीय और विश्वास पात्र के चुनाव मैदान में उतरने की जानकारी दी| तब फिर उनकी टिप्पणी काबिले गौर थी| रामलला से टेलीफोन पर बात करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जो सजातीय नेता उनका नहीं हुआ वह सपा का क्या होगा|

फिर धीरे से बोले जब हमारी सपा मुखिया से नहीं पटी तब फिर लोधी और यादवों की कैसे पटेगी| अवसर था समीपवर्ती जनपद हरदोई में सपा मुखिया के सबसे पुराने और विश्वसनीय सिपहसालार रहे नेता के पुत्र के सपा छोड़कर कल्याण सिंह की पार्टी में आने का|

जय हिंद……………………………

(लेखक वरिष्ट पत्रकार के साथ वकील व समाजवादी चिंतक है)

प्रस्तुति-

सतीश दीक्षित (एडवोकेट)
1/432, आवास विकास कालोनी फर्रुखाबाद

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