फर्रुखाबाद परिक्रमा – पहला पत्थर वही मारे जो गुनाहगार न हो!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

पहला पत्थर वही मारे जो गुनाहगार न हो!

जिले भर में पूरे सप्ताह से पुतले फूंकने, अर्थियां जलाने की धूम रही। कोई किसी से दबने को तैयार नहीं है। कंपिल, कायमगंज, नबावगंज, शमसाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहगढ़, कमालगंज में सिलसिला जारी है। अपने को सही और दूसरे को झूठा बेईमान भ्रष्ट सिद्ध करने की होड़ मची हुई। हम उन्हें जिले में घुसने नहीं देंगे। हम रैली हर हाल में करेंगे। कांग्रेसियों को छोड़कर राजनैतिक दलों के नेता इस मुद्दे पर खामोश हैं। उन्होंने तय कर लिया है कि न तू मेरी कह, न मैं तेरी कहूं। परन्तु सामाजिक गैर राजनैतिक संगठनों के लोगों ने जो तरीका अपनाया है, वह है राजनैतिक दलों का ही। अब चाहें वीरेन्द्र मिश्रा, सतीश पाण्डेय, पुन्नी शुक्ला हों या अन्य कांग्रेसी। सर्वोदयी लक्ष्मण सिंह हों, भारतीय किसान यूनियन के देवकी नंदन गंगवार, गुलाबी गैंग की लीडर अंजली यादव, लोक समिति के सुल्तान सिंह या महिला नेत्री सुलक्षणा सिंह, लेखक विचारक जवाहर सिंह आदि। सबके सब पूरे दम खम के साथ सलमान खुर्शीद व मेडम लुईस को भ्रष्ट तथा केजरीवाल को पाक साफ और भारत भाग्य विधाता बनाने का कार्य जिले और नगर में यह लोग कर रहे। ठीक उसी की तर्ज पर यही कार्य प्रदेश और दिल्ली में दिग्विजय सिंह, संजय सिंह, मनीष तिवारी सिसोदिया, कुमार विश्वास आदि कर रहे हैं। अन्ना के आंदोलन से गहरे तक जुड़े स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक के लोगों ने इस मुद्दे पर गहरी चुप्पी साध रखी हैं।

क्या होगा इससे। देश के जिस आम आदमी के लिए काम करने की कसमें खाते हो। उसका इससे कुछ भी भला नहीं होगा। दूसरों पर कीचड़ उछालने से पहिले स्वयं आत्म मंथन करो कि हम देश और समाज को क्या दे रहे हैं।

हमारे देश में लोकतंत्र है। इन हरकतों तौर तरीकों से लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा। जितने उत्साह उमंग के साथ पुतले जलाते हो। अर्थियां फूंकते हो। उतने ही उत्साह के साथ नए मतदाता पंजीकृत करने का जो अभियान चल रहा है। उसमें जुटो। आम और खास दोनो लोगों को आने वाले चुनावों में निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान करने के लिए संकल्प बद्ध करो। तब यह बात उजागर होगी कि, जब देश राजनैतिक उहापोह और अराजकता, भ्रष्टाचार के दौर से गुजर रहा था। लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर चलाने के स्थान पर अपनी जिम्मेदारी समझते हुए लोकतंत्र को मजबूत और खुशहाल बनाने में अपना योगदान किया।

कांग्रेसियों को, सपाइयों को, बसपाइयों को, भाजपाइयों को अपने नेताओं से पूछने की हिम्मत दिखनी होगी। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के स्थान पर एकजुट होकर चुनाव सुधारों को लागू करने, मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए उसी तरह सर्व सम्मति से प्रयास क्यों नहीं करते। जैसा उन्होंने अपने स्वयं का वेतन भत्ता बढ़ाने और सांसद विधायक निधि को बढ़ाने के लिए किया था। यकीन मानिए आपकी हमारी इतनी हिम्मत से लोकतंत्र का कुम्हला रहा वृक्ष पुनः सशक्त और हराभरा हो जाएगा।

यह देश हमारा है। हम देश के हैं। देश में लोकतंत्र है। सबको समान रूप से अपनी राय देने निर्णय सुनाने का अधिकार है। समय आने पर इस अधिकार का प्रयोग विधिमंत्री सलमान खुर्शीद और मेडम लुईस जैसे लोग तक नहीं करते। तब फिर औरों की बात ही क्या कहें। इस अधिकार का प्रयोग करो। इसका प्रयोग करने के लिए लोगों को सच्चे मन से प्रेरित करो। यकीन मानो पुतले और अर्थी जलाने की नौबत ही नहीं आयेगी। हमारा प्यारा फर्रुखाबाद सभी का है। केजरीवाल का भी और सलमान का भी। सभी लोग आओ अपनी बात कहो प्रेम से शान्ती से सलीके से। कहा भी है –  निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।

उत्साही युवा डाक्टर और लाइलाज मरीज

यूपी का सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा है। यह व्‍यक्‍तव्‍य किसी विरोधी दल के नेता का नहीं प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का है। स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा अपने अधीन तंत्र के विषय में इस प्रकार की सपाट और स्पष्ट स्वीकारोक्ति चौंकाने वाली है। वास्तव में यह स्‍वीकारना बहुत ही बड़े कलेजे और हिम्मत रखने वाले व्यक्ति से ही संभव है। मुंशी हर दिल अजीज चौक की पटिया पर बैठे मियां झान झरोखे से ही बातें कर रहे थे। मुंशी बोले मियां क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि मुख्यमंत्री ने पहली बार नब्ज को सही तरीके से टटोला है। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में शासन संभालने के सात माह चार दिन बाद पूरी छानबीन और जांच पड़ताल करके पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कहने की हिम्मत दिखाई कि प्रदेश का सरकारी तंत्र आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा है। भ्रष्टाचार ने पूरे प्रदेश को बर्बाद कर दिया है। मुख्यमंत्री का यह भी कहना है कि समाजवादी पार्टी सरकार लोकसेवकों के बीच से भ्रष्टाचार के विनाश के लिए कटिबद्ध है।

मियां झान झरोखे जैसे ताक में ही बैठे थे। उन्होंने मुंशी का हाथ पकड़ कर कहा। कुछ दूसरों की भी सुनोगे या अपनी ही तानते रहोगे। वह कप्तान लड़ाई के मैदान या जंग कभी नहीं जीत सकता जो अपनी टीम में ही मीन मेख निकालता रहे। यह तो वही बात हुई कि घोड़े पर बस नहीं चला और लगाम मरोड़ डाली। नाच न जाने आंगन टेड़ा। मियां बोले मुंशी हर दिल अजीज आप का नाम ऐसे ही नहीं रख दिया गया। आप जरा जरा सी बात पर फिदा हो जाते हो। तारीफों के पुल बांधने लगते हो। परन्तु वास्तविकता का सामना करने में तुम्हें भी जूड़ी लगने लगती है।

मियां की बात पर मुंशी बहुत भन्नाए। बोले तुम्हें नौजवानों की स्पष्ट बयानी पता नहीं क्यों अच्छी नहीं लगती। प्रदेश के युवा पढ़े लिखे ऊर्जावान मुख्यमंत्री ने पहली बार प्रदेश में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने का संकल्प व्यक्त किया है। दूसरी ओर तुम हो जो इसमें भी मीन मेख निकालने में आनंद का अनुभव कर रहे हो। मुंशी बोले अब औरों की क्या कहें। जब हमारे विषय में ही तुम्हारे ऐसे ख्यालात हैं। तब दूसरों की बात ही क्या करें। युवा मुख्यमंत्री ने तंत्र की कमजोरी बताकर उसे सुधारने का संकल्प व्यक्त किया है। इसमें मियां तुम्हें अनावश्यक रूप से हैरान परेशान होने की क्या आवश्यकता है।

इस बार शायद मियां झान झरोखे भी भरे हुए बैठे थे। इससे पहले कि मुंशी अपनी बात को आगे बढ़ायें। मियां तपाक से बोले नहीं नहीं हैरान परेशान होने की जरूरत है। मियां बोले मुंशी तुम यह मत समझना कि हमारी मुख्यमंत्री से कोई अदावत या खुन्नस है। हमें वास्तव में खुशी है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश में एक युवा मुख्यमंत्री इस हौसले और विकास के रास्ते पर ले जाना है। परन्तु हकीकत को जांचना परखना कोई गुनाह नहीं है।

मियां झान झरोखे बोले मुंशी हमारी बात ध्यान से सुनो। प्रदेश सरकार के सौ दिन पूरे होने पर सपा मुखिया ने प्रदेश सरकार को सौ में सौ नंबर दिए। सरकार के छः महिने पूरे हुए तो उपलब्धियों और वायदे पूरे होने का पूरे सूबे के प्रत्येक विधानसभा में जश्न मनाया गया। रिकार्ड तोड़ सफलताओं, उपलब्धियों से सजी रंगीन किताबें और फोल्डर बांटे गये। मियां बोले अगर यह सब सच और सही है जैसा कि प्रदेश सरकार दावा कर रही है। तब फिर यह सब है तो सरकारी तंत्र की दिन रात की मेहनत से जिसे अब सात माह चार दिन बाद स्वयं मुख्यमंत्री आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा बता रहे हैं। दोनो बातें साथ साथ नहीं चल सकतीं। अब या तो मुख्यमंत्री द्वारा विकास और उपलब्धियों का किया जा रहा दावा झूठा है। या सरकारी तंत्र के आकंठ में भ्रष्टाचार में डूबे होने की बात व्यर्थ बेमतलब और जल्दबाजी में बिना सोचे समझे दिए गए बयान से अधिक कुछ भी नहीं।

मियां झान झरोखे यही पर नहीं रुके। बोले अगर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा है। तब फिर राजनैतिक तंत्र पार्टी तंत्र के विषय में देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री का क्या ख्याल है। अपनी स्वयं की पार्टी के कार्यकर्ताओं नेताओं के चाल चलन चरित्र के विषय में मुख्यमंत्री जी का क्या ख्याल है। अगर इस सब पर निष्पक्ष और निर्भीक होकर विचार हो। तभी यह माना जाएगा कि हम वास्तविकता को जानना देखना और समझना ही नहीं चाहते उसे वास्तव में सुधारना भी चाहते हैं।

मुंशी हर दिल अजीज को मियां की बात समझ में आ गई। बोले मियां कहते तो तुम ठीक हो परन्तु इसको जांचने परखने का तरीका क्या हो सकता है। यह हमारी समझ में तो आ नहीं रहा। तुम्हीं बताओ।

मियां बोले मुंशी यह सही है कि सरकारी तंत्र और राजनैतिक तंत्र के क्रियाकलापों का आकलन असंभव नहीं तो काफी कठिन है। मुख्यमंत्री यदि प्रत्येक जिले में सबसे बड़े सरकारी अधिकारी (सामान्यतः जिलाधिकारी) तथा राजनैतिक तंत्र पार्टी तंत्र से अपने सबसे बड़े विश्वसनीय वरिष्ठ सहयोगी (सामान्यतः वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ) के विषय में सार्वजनिक रूप से जनता की राय लेकर दोनो लोगों को आमने सामने बिठा कर दोनो पक्षों के बीच संवाद करा दें। मुंशी बोले सही फर्माया तुमने मियां। यही प्रयास प्रदेश के प्रत्येक जिले के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में हो सकता है। जब युवा मुख्यमंत्री अपने सूत्रों, फीडबैक आदि से प्राप्त जानकारी की समीक्षा करेंगे। तब फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। देखना है प्रदेश का युवा मुख्यमंत्री इस फार्मूले को अपनाने की हिम्मत दिखाता है या नहीं।

धूम मची है रामलीला-दुर्गा पूजा की
जिले भर में गांव गली मोहल्लों में इस समय रामलीला और दुर्गा पूजा समारोहों का चरमोत्कर्ष है। कहो कुछ भी सही बात यही है कि धर्म और संस्कृति आज भी समाज को एकजुट करने का सबसे बड़ा और सशक्त माध्यम है। कुछ समय के लिए ही सही अपने त्यौहारों पर्वों, उत्सवों, समारोहों आदि में हम भाव विभोर होकर रम जाते हैं। इससे हमें नई ऊर्जा उत्साह और शक्ति मिलती है जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

भगवान राम का चरित्र, यह आपकी मर्जी क आप उसे कवि की कल्पना मानें या वास्तविक, भगवती दुर्गा का व्यकितत्व और कृतित्व सदियों से हमारे मन मंदिर और संस्कारों में रचा बसा है। समय के साथ इन आयोजनों, उत्सवों, समारोहों में अनेक परिवर्तन हुए और हो रहे हैं। परन्तु मूल भावना सदियों से वही चली आ रही है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और उनका विराट कृतित्व सभी को प्रेरणा का श्रोत हो सकता है। यदि हम सच्चे मन से उसे देखे, सुनें और समझें। यदि इसे मात्र एक वार्षिक कर्म काण्ड समझ कर करें। तब फिर बात और है। भगवती  दुर्गा का आवाहन शक्ति का आवाहन है। शक्ति जो सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। विद्धानों मनीषियों घर के बुजुर्गों को राष्ट्र की विराट युवा शक्ति को इन सांस्कृतिक धार्मिक मंतव्यों को उनके वास्तविक संदर्भों में समझाने बताने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। अन्यथा स्थिति विकट हो सकती है जिसमें यह कहना पड़ सकता है-

दीप इनके जले दिये उनके जले
वर्तिका आदि से अंत तक जल गई।
राम तुमने कहा राम हमने सुना
राम की जो कथा थी सपन बन गई।

इतना अहंकार अच्छा नहीं है सलमान साहब!

केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा ‘‘मेरे बयान (केजरीवाल के फर्रुखाबाद में जाकर रैली करने के सन्दर्भ में) का मतलब था कि फर्रुखाबाद की जनता मेरे साथ खड़ी है। केजरी वाल को वहां जाकर मेरी लोकप्रियता का पता चल जाएगा। मेरे संसदीय क्षेत्र में जाकर मुझ पर हमला करने वालों को अपना सामान समेट कर लौटना पड़ेगा।’’ बीते मंगलवार को खुर्शीद ने कहा था, ‘‘मुझे कलम से काम करने को कहा गया है, लेकिन अब मैं लहू से भी काम करने को तैयार हूं। केजरीबाल फर्रुखाबाद आयें, लेकिन वहां से लौटकर भी आयें’’।

आइए देखें अपने जिले अपने संसदीय क्षेत्र में सलमान खुर्शीद कितने लोकप्रिय हैं। वह यहां से वर्ष 1989 से 2009 तक होने वाले प्रत्येक लोकसभा चुनाव में स्वयं या अपनी पत्नी के माध्यम से प्रत्याशी रहे हैं। केवल दो बार चुनाव जीते हैं।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में सलमान खुर्शीद संसदीय क्षेत्र के कुल मतदाताओं का मात्र तेरह प्रतिशत (पुनः दोहरा रहे हैं मात्र तेरह प्रतिशत) वोट पाकर जीते और सांसद बने। यह जीत भी उन्हें कम मतदान और वोटों के बंटवारे के बल पर नसीब हुई। वह भी इस कारण कि उनके मुकाबले बसपा और सपा प्रत्याशी के रूप में प्रख्यात दलबदलू और राजनैतिक अवसरवादिता के प्रतीक नेता थे। सलमान को एक ही दल (कांग्रेस) में रहने का लाभ मिला। लेकिन वोट कुल मतदाताओं का तेरह प्रतिशत ही मिला। अपने जिले और संसदीय क्षेत्र में सलमान साहब कितने लोकप्रिय हैं। इसका निर्णय स्वयं आप करें। यही है हमारे जनतंत्र की वर्तमान स्थिति।

और अंत में –

आप चाहें न चाहें सराहें या आलोचना करें। अरविंद केजरीवाल इस समय देश की राजनीति के केन्द्र बिन्दु बन गए हैं। भाजपाई तिलमिलाए हुए हैं। कांग्रेसी सिर धुनते हैं। परन्तु देश का जन मानस समझ रहा है कि दाल में कुछ काला काला है ही । दिग्विजय सिंह को अब कांग्रेसी ही गंभीरता से नहीं लेते। उनके उठाए गए प्रश्नों का देश के जनमानस पर वैसा प्रभाव पड़ता प्रतीत नहीं होता। जैसी दिग्विजय सिंह अपेक्षा करते थे।

सार्वजनिक जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है व्यक्ति की विश्वसनीयता। इसका निर्णय जनतंत्र में जनता के अलावा किसी दूसरे के पास नहीं है। आज जनमानस की स्थिति यह है कि नेताओं पर आरोप लगते हैं। तब लोग हंसते हैं प्रसन्न होते हैं। क्योंकि वोट बैंक जातिवाद, साम्प्रदायिकता, माफियातंत्र, धनबल, बाहुबल आदि के बल पर राजनीति करने वालों पर जनता का विश्वास ही नहीं रहा। यदि ऐसा न होता तब फिर मतदान का प्रतिशत इतना कम नहीं होता। रही बात अन्ना हजारे केजरीवाल की। इनमें से कोई भी बाबा रामदेव की तरह आयकर सर्विस टैक्स ट्रस्ट आदि के कानूनी चक्रव्यूह और कथित घोटालों में नहीं फंसा हुआ है।

चलते चलते —
बाढ़ राहत के नाम पर कथित रूप से विभिन्न कंपनियों द्वारा दिया गया या लिया गया धन कब कहां और किन लोगों में बंटा। इसका जबाव और हिसाब कौन देगा। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट