फर्रुखाबाद: बरसाती पहने छाता लगाये मुंशी हर दिल अजीज झमाझम बरसात में पूरे तीन दिन फर्रुखाबाद फतेहगढ़ की गलियों सड़कों पर घूमने के बाद चौक की पटिया पर आकार बैठे। उनकी आँखे नम और मन बोझिल था। न पानी पिया और न ही पान की फरमाईश की। अनमने से बैठे ठंडी साँसे ले रहे थे। उन्हें इस हाल में देखकर किसी ने हिम्मत करके कुछ पूंछना चाहा। अपने स्वाभाव के विपरीत ठीक है ठीक कहकर मुंशी ने हाँथ जोड़कर पल्ला झाड़ लिया। काफी देर बैठे रहने के बाद पटिया से उछलकर वह सड़क पर आकर खड़े हो गए। बारिश थी कि थमने का नाम नही ले रही थी। अपने आपको समझाने के अंदाज में बुदबुदाए लगता है मियाँ झान झरोखे आज आयेंगें नहीं। चलो उनके घर ही चलते हैं। यूं तो मियाँ और मुंशी में दाँत काटी दोस्ती है, परन्तु घर पर आवाजाही जहां तक होता अथा दोनों ही टालते हैं। पूंछने वाले पूंछते हैं तब दोनों ही एक-दूसरे को कनखियों से देखकर हँसते हुए बात को टाल जाते हैं।
मुंशी को जिस बात का डर था वही हुआ। मियाँ और उनकी बेगम दोनों दरबाजे पर ही मिल गए। बेगम झाडू लिए थीं। मियाँ हाँथ में लोटा बाल्टी लिए घर में भरे हुए पानी को निकाल रहे थे। पसीने-पसीने हो रहे थे। बेगम जैसे तैयार बैठी थीं मुंशी को देखते ही बोली आओ श्रीमान जी आओ स्वागत है आपका। आज तो बड़े सजधज कर आये हो सिर पर टोपी ऊपर छाता बदन में बरसाती पैरों में बढ़िया बरसाती जूता वाह वह क्या ठाट हैं? मजाल है पानी की एक बूँद भी श्रीमान जे एके बदन तक पहुँच जाए। तुम्हारी सांठ-गाँठ तो पूर्व और वर्तमान दोनों नगर पिताओं से हैं। बताओ शरमा क्यों रहे हो? यह खैरात कहाँ से मिली जिसे अपने दोस्त को दिखाने और हमारे दिल को जलाने झमाझम बरसात में चले आ रहे हो। मुंशी बेचारे कहाँ फंस गए के अंदाज में सकपकाते से बोले नहीं नहीं भाभी बात वह नहीं है जो आप समझ रही हैं।
बेगम झाडू लहराती दहाड़ने के अंदाज में बोली सफाई देने की जरूरत नहीं है। हमारी गरीबी का मजाक उड़ाने आये हो। अपना रुतबा ज़माने आये हो। हमें इस हालत में देखकर बहुत खुश हो रहे होगे। अब सब देख लिया। अब जाओ अपने मुंह बोले भांजे को जाकर पूरी रिपोर्ट जाकर दे दो। बताना शहर की सड़के तो सदके गालियाँ तुम्हारी ईमानदारी के कारण शीशे की तरह चमक रही हैं। पूरे शहर में जल भराव कहीं ढूंढें से भी नहीं मिला। स्कूल कालेजों के आसपास गंदगी का आलम तो ऐसा है जैसे गधे के सिर पे सींग। न नाले चोक हैं और न ही नालियों में कहीं गन्दगी का नामो निशान है। मियाँ तुम्हारे भांजे का सफाई तन्त्र इतना चाक चौबंद है कि घर गली सड़कें तो दूर कूड़ेदान तक इतने साफ़ सुथरे रहते हैं कि क्या कहिये ? इधर अनुशासित नागरिकों ने लाइन लगाकर कूड़ेदान में कूडा डाला। उधर सफाई कर्मियों ने कूड़ेदान को साफ़ सुथरा करके पुनः “ मुझे इस्तेमाल कीजिये” योग्य बना दिया। वाह वाह दमदमी भाई के लूट, उत्पीडन व शोषण के लंबे इतिहास को आपके प्रिय भांजे ने पूरी तरह से मिटा दिया। मुंशी जी बड़े कपडे फाड़ते थे दमदमी मई के राज में। कलेक्ट्रेट, बीना मीना से लेकर लोक आयुक्त तक दौड लगाई थी। अब क्या हो गया। अब तो लगता है भानजे के राज ने भाजपा के राम राज्य को भी पीछे छोड़ दिया है। जिससे भी कहो थप्पड़ मारने के अंदाज में कहता है चुप साले ! ईमानदार होगा तेरा बाप ( नगर पिता ) ।
बेगम रुकने का नाम नहीं ले रही थीं । मुंशी बेचारे अपने दोस्स का इतना शानदार इस्तकबाल देखकर बुत बने खड़े थे। मियाँ ने एक दो बार अपनी बेगम को रोकने की कोशिश की तो बेगम ने उन्हें भी झिड़क दिया। हार मान मियाँ लोटा बाल्टी रखकर मुंशी को हाँथ पकड़कर बरामदे में ले आये और कुर्सियों पर बैठ गए। मियाँ माफी माँगने के अंदाज में बोले मियाँ इनकी बात का बुरा मत मानना इनकी आदत ही ऐसी है। वैसे यह तुम भी जानते हो कि दिल की बेगम बिलकुल बुरी नहीं है। मुंशी भी चुपचाप बैठे रहे।
लेकिन बेगम को तो जूनून सवार था। झाडू फेंक खुद भी मियाँ और मुंशी के सामने ही कुर्सी खींचकर बैठ गई। बोली खरी और सच्ची कहती हूँ। बुरा मानों चाहें भला हमारे ठेंगें पर। पांच साल पहले तुम दोनों ने ही हमारी बहन दमदमी मई और उनके कुनबे को पानी पी पीकर कोसा था। कौन सी कसार बांकी राखी थी। कमीशनबाजी, घपलों, लूट गुंडई, अपराधों की सूची तुम दोनों की जुवान पर रहती थी। मुई मैं भी तुम दोनों के झांसे में आ गई। दमदमी माई को छोड़कर लग गई तेरे भांजे के प्रचार में। दमदमी मई हो गयीं पैदल तुम्हारा भांजा हो गया पैदल से हांथी पर सवार। फिर तो मद में हांथी और उस पर सवार तुम्हारा भांजा दोनों बौरा गए।
बेगम बोली घर में गैस नहीं है, दूध नहीं है और तो और चाय की पती भी नहीं है। हमारा मुंह मत खुलवाओ नहीं तो कुछ ऐसा निकल जाएगा कि तुम दोनों को बुरा लगेगा। मियाँ और मुंशी दोनों हंस पड़े। वाह बेगम वाह तुम्हारा जवाब नहीं। अभी कुछ कहने को रह गया क्या? तुमने हम दोनों की लानत मलानत में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बेगम बिना अंदाज बदले बोली नो मस्का ! इतने में ही मिर्च लग गई है। मुंशी जी यह तो बानगी है पूरा चिट्ठा खोल दूंगी तो मुंह छिपाने को जगह नहीं मिलेगी। फिर जाने क्या सोंचकर बेगम घर के अंदर गयीं और मियाँ का छाता लेकर बाहर आयीं और बोलीं यह मत समझना कि मै युद्ध विराम कर रही हूँ। मुई बरसात ने घर से बाहर तक हुलिया बिगाड़ रखा है। मालिक का दिया घर में सबकुछ है सही मानों तो मन नहीं है। बहुत दुखी हूँ हालात देखकर कर मना फिर एक पचास का नोट मुंशी की हथेली पर रखकर बोली। बंगाली होटल की तुम्हारी बैठक कब की उजड गई। कही साफ़ सुथरी जगह पर बैठकर चाय समोसा खा लेना। अबकी बार आना तो वह सब बनाकर खिलाऊँगी जिसके लिए मियाँ की बेगम पूरे शहर में मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम है। मुंशी और मियाँ दोनों खैर मनाते हुए धीरे से खिसक लिए।
यहाँ की भारती और वहाँ के साक्षी- अब गंगा के नाम पर ( वोट ) दे दो बाबा !
चुनावी राजनीति में काफी निचले पायदान पर पहुँच गई भारतीय जनता पार्टी मिशन २०१२ की तैयारी में फूंक फूंक कर कदम रख रही है। परन्तु पुरानी खुन्नसें समाप्त होने का नाम नही ले रही। बहुत लंबे समय तक भाजपा की सियासत फर्रुखाबाद और छिबरामऊ के दो दिग्गजों के इर्द गिर्द घूमती रही। दोनों ही स्वर्गवासी हो चुके हैं। अब इन दोनों नेताओं के उत्तराधिकारी अपने पिता की बिरासत के साथ भाजपा में महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं। मिशन २०१२ में दोनों का चुनाव लड़ना लगभग तय जैसा है परन्तु अभी हाल ही में पार्टी में आये नेताओं को अपने-अपने कारणों से अपने नए सहयोगी अपनी निजी पसंद और उपयोगिता के आधार पर बनाने पड़ रहे हैं। भाजपा छोड़कर सपा में गए और अब सपा छोड़कर पुनः भाजपा में आये। सूबे भर में बहन जी की सरकार के रहते चिकित्सा और स्वास्थय सेवाओं में क्या प्रगति हुयी यह तो लखनऊ में घटी घटनाओं, जिसमे अन्टू भैया की छुट्टी भी शामिल है और जिला कारागार में डॉ सचान की निर्मम ह्त्या से ही स्पष्ट है। परन्तु विभागीय मंत्री रहते अन्टू भैया ने जिले की स्वास्थ्य सेवाओं का जो बंटाधार किया उसकी दूसरी मिसाल शिक्षा विभाग में तो मिल सकती है और कहीं नहीं।
विधायक बनते ही अन्टू भैया और व्यस्त हो गए। क्षेत्र के लोगों को कोई तकलीफ न हो इसके लिए उन्होंने चीफ कलेक्शन एजेंट ( वोट के या नोट के इसका फैसला आप करें ) केस में श्रीमान बोझा जी को यहाँ स्थायी रूप से नियुक्ति कर दिया। बोझा जी ने अन्टू भैया को निहाल कर दिया। वह यहाँ आना ही भूल गए। समय बदला और अपने अन्टू भैया पैदल हो गए। यहाँ के लोगों ने राहत की साँस ली। चलो अब मंत्री जी न सही विधायक जी अपने क्षेत्र में दिखाई देंगें। परन्तु हुआ बिलकुल उल्टा अन्टू भैया तो अभी तक आये नहीं। श्रीमान बोझा जी भी बोरिया बिस्तर लेकर यहाँ से कूंच कर गए। नेहरू रोड पर स्थायी निवास बन गई कोठी उनके कारनामों को याद कर राहत की सांस ले रही है। थाने, बलाक, सरकारी विभाग ठेकेदार, कोटेदार बाढ़ राहत, सूखा राहत आदि सभी मदें और उनसे जुड़े लोग गदगद हैं। चलो रोज रोज के हिसाब से फुरसत मिली। बोझा जी आप कहाँ हो ?
अन्टू भैया ! फर्रुखाबाद के तारनहार तुम कहना हो? आओ अगले साल विधान सभा का चुनाव होने जा रहा है। गुंडे, माफिया, अपराधी, दल बदलू अवसरवादी आदि जाने क्या क्या चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं। इन सबसे भला आपके अलावा कौन निपट सकता है। जिले और नगर की जनता तुम्हारी याद कर रही है क्या अपने ५ साल के कार्यकाल की रिपोर्ट कार्ड नहीं लेने आओगे……….।
तुम्हे गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली ।
चलो फिर हो गया मिलना न तुम खाली न हम खाली।।
दोनों संसदीय क्षेत्रों से सांसद निर्वाचित हुए हैं। यह खिताब समाजवादी आंदोलन के प्रणेता डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम पर भी है। परन्तु आज की स्थित दूसरी है। बैरियर तोड़ बाबा अभी तक फर्रुखाबाद पधारे नहीं है। उनका छिबरामऊ में भाजपा के दिग्गज नेता की बरसी पर शानदार स्वागत बंदन अभिनंदन हो चुका है। वहीं धीरपुर नरेश के आवास पर जो कल तक सपा के दिग्गज नेताओं का चहेता अड्डा थी, भाजपा नेताओं का भव्य बैठक हो चुकी है। भाजपा में यह सबको मालूम है कि वापस आ रहे नेता किसे पसंद और किसे नापसन्द करते हैं। यही हाल कार्यकर्ताओं का भी है। कोई पद यात्रा को अनुशासन हीनता बता रहा है और कोई भाभी जी को साथ लेकर बार बार अनुशासन हीनता की बात कर रहा है।
अब गंगा अभियान के नाम पर चुनावी नब्ज देखने प्रदेश भाजपा प्रभारी उमा भारती आ रही हैं। वह फर्रुखाबाद से कन्नौज और आगे कलकत्ता तक जायेंगी। उनके इस अभियान से गंगा के साथ ही साथ भाजपा की कितनी सफाई होगी इस पर अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं। परन्तु भाजपा पर कल्याण सिंह का खौफ पूरी तरह से कायम है। साथ ही साथ वह धार्मिक, सामाजिक मुद्दों पर भी राजनीति करने की अपनी आदत छोड़ नहीं पातीं। यह सही है कि आने जाने वालों का निशाना २०१२ के साथ ही २०१४ भी है। परन्तु उतना सही यह भी है कि दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम । अब गंगा के नाम पर ( वोट ) दे दो वावा।
और अंत में…………
बोलो बिजली विभाग की जय –
बिजली आने-जाने के रोस्टर का समय और उसके पालन का काम बिजली विभाग कितनी मुस्तैदी से करता है। हम सब उसके मुक्तभोगी है। परन्तु विभाग नित नूतन प्रयोग करता रहता है। यह विभाग अपने उपभोक्ताओं का लांक्षित अपमानित और परेशान करने में सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर चुका है। जब चाहो तब गली मोहल्लों मुख्य मार्गों पर बिजली विभाग का प्रसारण सुनायी पडेगा। फलानी जगह फलाने दिन बिजली बिलों की बसूली के लिए कैम्प लगाये जा रहे हैं। उपभोक्ता अपने बिल सही करा ले अन्यथा कनेक्शन काट दिया जाएगा। आज्ञा से अधिशाषी अभियंता। अब इन महानुभावो से यह पूंछो कि बिल क्या किसी और ने भेजे हैं। गलत बिल भेजने का जिम्मेदार कौन है? विभाग की मुस्तैदी का आलम यह है कि एक समाधान योजना के बिल संशोधित नहीं हो पाए दूसरी समाधान योजना पहली जुलाई से लागू हो गई। विभाग बिल भेजने गलत बिल भेजने के अलावा कोई सूचना या पत्र का जवाब देना अपनी शान के खिलाफ समझता है। चहेतों को बिजली चोरी कराते रहो उपभोक्ता पर हर समय चढाई करते रहो। बांकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा। यह विभागीय कार्यवाही का मूलमंत्र है।
एक वरिष्ठ सेवा निवृत विभागीय अधिकारी ने बताया। सोने की खान है यह विभाग। नया अधिकारी नई योजना लेकर आता है। करोड़ों के वारे न्यारे करके चला जाता है। सबको चोरी करना सिखा दिया है। अब किसी राजनैतिक दल नेता संगठन बिग्रेड आर्मी गैंग की भी हिम्मत नहीं है कि कोई इनकी ज्यादतियों के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष कर सके। जिले से लेकर मुख्यालय तक, कलेक्ट्रेट से लेकर कमिश्नर तक, सूचना अधिकार से लेकर उपभोक्ता फोरम तक सब के सब लाचार हैं, वेवस हैं। ज्यादा कलाकारी करोगे कनेक्शन कट देंगें, पेनाल्टी लगा देंगें, एफ आई आर दर्ज करा देंगें सारी हेकड़े भूल जाओगे। इसलिए चुपचाप विभाग के जुल्म सहते रहो और गाना गाते रहो।
हांथी घोड़ा पालकी- जय बोलो बिजली विभाग की।।
जय हिंद………………