‘फर्रुखाबाद परिक्रमा’- जंगल में क्यों नाचा मोर, जाँच करेंगे चोर

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हम नहीं सुधरेंगें-

बा अदब वा मुलाहिजा मुंशी हर दिल अजीज पधार रहे हैं| बुलंद आबाज में मियाँ झान -झरोखे ने जब यह आगाज किया तो उदास मुंशी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई| रूमाल से पसीना पोंछते हुए बोले क्या बताएं मियाँ, स्वास्थय लाभ कर रहे वर्तमान जिलाधिकारी के कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व ही उनकी तेज तर्रार और कर्मठता के किस्से सुनायी पड़ने लगे थे| उनके आने पर कुछ बानगी भी देखने को मिली| मुंशी कुछ सोंचने लगे, चौक की ऐतिहासिक पटिया पर बैठे-बैठे बाबा पान वालों की दुकान से ठंडी पानी की एक बोतल ली, और एक सांस में गटक गए| बोले शिक्षकों के पशिक्षण में शिक्षकों को दी जाने वाली पुस्तकों से भरा एक ट्रैक्टर एसडीएम की उपस्थित में कार्यालय से निकलकर कबाड़ी बाजार के लिए जा रहा था परन्तु वह बेचारे कुछ भी नहीं कर पाए|

मियाँ बोले मुंशी यहाँ तो पूरे के पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है ऐसे में कोई क्या कर सकता है| जब ठेके पर खुली सामूहिक नक़ल कराने वालों को स्वच्छ छवि का बताकर चुनाव मैदान में उतारा जा रहा हो तब फिर कौन किसके लिए क्या कर सकता है और क्या वह कह सकता है| शिक्षा के मंदिरों में अपने निहित स्वार्थों के लिए धुन और दीमक लगाने वालों की जय जयकार करते हमें शर्म भी तो नहीं आती|

मुंशी ने बात का सूत्र पकड़ते हुए फरमाया मियाँ शिक्षा विभाग के एकबार वरिष्ठ अधिकारी के कारनामों से कुछ समय पहले यह जिला हिल गया अथा| मीडिया ने एकबार की अपनी निष्पक्षता और निर्भीकता का ऐसा नमूना दिखाया जैसे इससे पूर्व किसी को कुछ मालूम नहीं था| मियाँ कब चुप रहने वाले थे बोले सही कहते हो इस निलंबित अधिकारी से उपकृत होने वालो की सूची बहुत लम्बी है | उनके घपले घोटालों की सूची तो और भी लम्बी है| देखो अब कौशल का कौशल क्या करता है| मिर्जा बोले अरे बस करो मिर्जा तुम तो चालू होते हो फिर थमते ही नहीं हो| कुछ बाद के लिए भी तो रखो| मिर्जा बेमन से खामोश तो हो गए परन्तु जाते-जाते यह भी कह गए कि यह सुधरेंगें नहीं और हम इन्हें सुधारे बिना मानेगें नहीं|

चोर कहे औरों से चोर, वन्स मोर वन्स मोर-

आज सुबह की ही तो बात है मौसम की मार से हलकान मुंशी कान पर हाथ रखकर पंचम स्वर में गा रहे थे| क्यों जंगल में नाचा मोर इसकी जांच करेंगें चोर| इसी बीच मियाँ झान-झरोखे आ टपके| दे ताली अंदाज में बोले कहे चोर औरों से चोर, वन्स मोर वन्स मोर|

मुंशी हरदिल अजीज बोले कि आप बताएं मियाँ| जनलोक पाल बिल मसौदा कमेटी के गैर सरकारी सदस्यों को पानी पी पीकर कोसने वाले अमर राग के प्रणेता जब मसौदा कमेटी के सरकारी सदस्य और खडा खेल फर्रुखाबादी के सांसद सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह के साथ गलबहियां कर रहे थे, उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे थे, मुलायम सिंह यादव के साथ रहते हुए किये गए अपने कथित पापों की सार्वजनिक माफी मांग रहे थे, तब मन में यही आ रहा था कि राजनैतिक मौक़ा परस्ती की ऐसी मिसालें अपने जिले और शहर में चाहें जब देख लो| अब तो यह मिसालें पेश करने बाहर से भी कलाकार आने लगे हैं|

मियाँ बोले कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगीं| कोई यूं ही तो बेवफा नहीं होता|

कांग्रेस का मनरेगा राग-

सरकार चाहें जिस पार्टी में हो थीम कमोबेश सबकी एक सी ही होती है| आम आदमी को गरीब आदमी को बेबस मजबूर मतदाता मात्र बनाए रहो| कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक राष्ट्रपिता के नाम पर चलाई जा रही मनरेगा का शोर थामे नहीं थम रहा है, परन्तु इसमें व्याप्त धांधलियों, घपलों और अव्यवस्था की बात न ही करें तब भी मनरेगा से अपने प्रदेश व जिले में कितने लोग कितना लाभान्वित हो रहे हैं? यह तो कांग्रेस द्वारा मनोनीति प्रभारी जाने, परन्तु क्या इससे आम जन में कोई बुनियादी सुधार हो पायेगा? बात चर्चा और सार्थक बहस इस पर होनी चाहिए| कांग्रेस और पार्टियों की तरह चुनावी पार्टी बनकर रह गई है| बुनियादी सामाजिक सरोकारों का एजेंडा उससे मंदिर, मस्जिद मंडल व कमंडल, माया मुलायम की छोटी-बड़ी आँधियों ने छीन लिया| इन्होने भी केवल छीना है इसे अपनाने का बूता इनमे भी नहीं है|

आजादी हो गई गुलाम, रघुपति राघव राजाराम|

भाजपा का मंदिर राग-

सवाल आस्था का है बार बार कहने चीखने चिल्लाने के बाद भी आस्था वोटों दर्शनी हुंडी नहीं बन पा रही है| भ्रष्टाचार, महंगाई और विकास मुद्दे नहीं बन पा रहे हैं| क्योंकि गगन चुम्बी, ज्वार-भाटा प्रकरण हो जाने के बाद लम्बे बुनियादी संघर्ष की हिम्मत नहीं रही है| लोग जब हमारे अन्दर की वास्तविकता को जान लेते हैं पहिचान लेते हैं| तब फिर हमारा आस्था राग मंदिर राग भी कांठ की हांडी हो जाती है, जो बार बार नहीं चढ़ती| हम स्वयं यह राग अलापें कि हम औरों से अलग है, इससे बात बनाती नहीं| बात तब बनाती है जब लोग यह खाना शुरू करें कि आप औरों से अलग और श्रेष्ठ हैं| हाल फिलहाल इसकी उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आती |

सपा बसपा का चरण बंदना राग-

शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब सपा और बसपा के उच्च नेता कांग्रेस और केंदारीय सरकार की ऐसी तैसी ना करते हो यह परदे के बाहर का खेल हैं | लेकिन सांसद में और बाहर जब पार्टी और सरकार पैर कोई संकट आता हैं ,तब कांग्रेस का संकट मोचक बनने में सपा बसपा में जो होड़ मची हैं उसे देखकर हंसी तो आती है दुःख भी होता है कि लोग जनता को कितना मूर्ख और ना समझ समझाते हैं| इसलिए तो हम जनतंत्र की असली मालिक जनता से बार बार यह कहते हैं कि जागो वोटर जागो| जिसदिन वोटर जागेगा ये सारी धोखाधड़ी, बेईमानी कथनी करनी पूर्ण समाप्त हो जाएगा आपको कुछ नहीं करना है केवल निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान करना होगा| जिस दिन जिले प्रदेश और देश का मतदाता अपने मत का प्रयोग करने लगेगा राजनीति की समाज की सारी गन्दगी छू मंतर की तर्ज पर समाप्त हो जायेगी|

और अंत में –

प्रत्यूष जी फर्रुखाबाद परिक्रमा की १५ साल २२ दिन बाद सामने आयी किस्त पर अपनी प्रतिक्रया के लिए धन्यबाद| हमने कभी यह दावा नहीं किया कि हम दूध के धुले हैं या मुंह में सोना डाले हैं| हम भी इंसान है और मानवीय कमजोरियों के कमियों से परे नहीं| परन्तु सच को निष्पक्ष और निर्भीक होकर उजागर करने की कोशिश करते हैं| इस कोशिश के चलते मिलने वाली सजा और बाधाओं को झेलने के लिए सदैव हंसी-खुशी तैयार रहते है| फर्रुखाबाद परिक्रमा के लम्बे अंतराल के बाद पुनः प्रकाश में आने के कारण छुपा नहीं है| उन्हें उजागर करके हम किसी का दिल नहीं दुखाना चाहते| पंकज दीक्षित ने परिक्रमा की पहली किस्त के साथ जो लम्बी भूमिका बांधी है वह स्वयं ही बहुत कुछ कह जाती है| प्रत्यूष और उन जैसे लोगों को उन्नति से हमें कभी जलन नहीं होती|