ईश्वर की ओर ले जाता आध्यात्मिक सुख

FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद:(नगर संवाददाता)शहर के पंडाबाग मंदिर के सत्संग भवन मेंमानस सम्मेलन के तीसरे दिन वक्ताओं नें कहा कि सांसारिक सुख धरती पर समाप्त हो जाता,जबकि आध्यात्मिक सुख ईश्वर की ओर ले जाता है| इसके साथ ही मानव के ईश्वर से मिलन के सरल रास्ते के विषय में भी बताया गया|
काशी के मानस विद्वान अखिलेश उपाध्याय ने कहा कि रामचरित मानस तीनों लोको में कही नही सुनाई जाती है, यह केवल मृत्युलोक में ही होती है। अन्य विद्वान ने बताया कि जब दुनिया से शरीर जाता है तब सोना, चांदी,हीरा सब कुछ यही पर रह जाता है। कुछ भी साथ नहीं जाता है। अखिलेश उपाध्याय ने श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाही,प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि यह रामचरित मानस तीनों लोको में कही नही होती है, यह केवल मृत्युलोक में होती है। उन्होंने कहा कि सुख दो प्रकार के होते है,सांसारिक सुख और आध्यात्मिक सुख। सांसारिक सुख धरती पर ही समाप्त हो जाता है और जबकि आध्यात्मिक सुख ईश्वर की ओर ले जाता है । उन्होंने कहा कि समर्पण व भक्ति के साथ भक्त प्रह्लाद व मीराबाई के साथ चमत्कार हो सकता है तो आध्यात्मिक मानव का क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि एक बार ज्ञान व भक्ति दोनो भगवान विष्णु के पास पहुंचे दोनो ने भगवान से पूछा कि ज्ञान की महत्ता ज्यादा है या भक्ति का महत्व ज्यादा है इस पर नारायण बोले ज्ञान मेरी आत्मा है पर भक्ति मेरी परमात्मा है। मध्य प्रदेश जबलपुर की कथा वाचक आस्था दुबे ने पेम अमिय भंडर विरह, भरत पयोधि गंभीर, के प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि जब दुनिया से शरीर जाता है तब सोना,चांदी,हीरा कुछ भी साथ नहीं जाता है, जाता है तो केवल श्री राम का नाम । उन्होंने कहा कि राजा दशरथ गाय है तो राम,लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न उनका दूध है। मानस में सबसे बड़े भक्त भरत और सबसे बड़ी अपराधी मंथरा है। छत्तीसगढ़ दुर्ग से पधारे मानस विद्वान पीलाराम शर्मा ने सुंदरकांड पर बोलते हुए कहा कि सुग्रीव के मंत्री जामबंत सबसे अधिक बुद्धिमान थे । राजा सुग्रीव ने सीता माता का पता लगाने के लिए चारो दिशाओं के लिए चार दल बनाए। इसमें एक दल के प्रमुख जामवंत थे जिसमे हनुमानजी भी शामिल थे। जामबंत ने कहा कि जिस पर श्रीराम की कृपा होगी बही माता सीता का पता लगाने में सफल होगा । संयोजक डा० रामबाबू पाठक ने लक्ष्मण चरित्र पर बोलते हुए कहा कि लक्ष्मण से हमे सीखना चाहिए कि कब हमे बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए। सीता ने वन के पंचवटी आश्रम में लक्ष्मण पर बहुत से आरोप लगाए । सीता सुनाती रही पर लक्ष्मणजी कुछ नही बोले । तबले पर संगत नंदकिशोर पाठक ने की,संचालन पंडित रामेंद्र नाथ मिश्र ने किया । मानस श्रोताओं में अरुण प्रकाश तिवारी ददुआ,रमेश चंद्र त्रिपाठी,रमाकांत बाजपेई,अनिल त्रिपाठी,रमाकांत मिश्र,सुजीत पाठक,पवन अघिनोत्री ,रामबरन दीक्षित,ज्योति स्वरूप अघिनोत्री,अशोक रस्तोगी, बी के सिंह,शशि रस्तोगी,लक्ष्मी,संध्या पाठक,रजनी लोइगानी,अपूर्व,विशेष,अद्भुत,वरुण,अभिषेक पांडेय आदि रहे|