रखा है यह चिराग शहीदों नें बाल के..

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फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) सोमवार को सुबह सेन्ट्रल जेल मेंदेश भक्ति के तरानें गूंजे| देश भक्ति के तरानों के बीच शहीद मणिन्द्र नाथ बनर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी| इसके साथ ही शहीद मणिन्द्र की वीगाथा से सभी को अवगत कराया गया|
आजादी के अमृत महोत्सव की श्रंखला में पहला कार्यक्रम अमर शहीद मणींद्र नाथ बनर्जी की प्रतिमा स्थल पर आयोजित हुआ| वरिष्ठ जेल अधीक्षक प्रमोद कुमार शुक्ला नें शहीद मणींद्र नाथ बनर्जी की प्रतिमा पर उपकारापाल सुरजीत कुमार आदि के साथ माल्यार्पण किया| इसके बाद उन्होंने शहीद की वीरगाथा और शहादत के किस्से से सभी को अवगत कराया|
सेन्ट्रल जेल अधीक्षक नें कहा कि शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 13 जनवरी 1909 में वाराणसी के सुबिख्यत एवं कुलीन पाण्डेघाट स्थित माँ सुनपना देवी के उदर से हुआ था| इसके पिता ताराचन्द्र बनर्जी एक प्रसिद्ध होम्योपैथिक के चिकित्सक थे| उनके पितामह श्रीहारे प्रसन्न बनर्जी डिप्टी कलक्टर के पद पर आसीन रहे| जिन्होंने 1899 में बदायूं से बिर्टिश शासन की नीतियों से दुखी होकर अपने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय हो गये|
श्री बनर्जी आठ भाई थे इन आठो भाईयो को मात्रभूमि के प्रति बहुत लगाव था| उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका अदा की| काकोरी कांड से सम्बंधित राजेन्द्र लाहिडी को फांसी दिलाने में सीआईडी के डिप्टी अधीक्षक श्री जितेन्द्र नाथ बनजी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी| जिसे बनजी ने बर्दास्त ना कर सके और उन्होंने जितेन्द्र से बदला लेने की ठान ली| 13 जनवरी 1928 को जितेन्द्र नाथ बनर्जी से वाराणसी गुदौलिया में बदला ले लिया| इस शौर्यपूर्ण कार्य के लिये उन्हें दस वर्ष की सजा व तीन माह तन्हाई की सजा मिली| 20 मार्च 1928 को उन्हें वाराणसी केन्द्रीय कारागार से केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भेजा गया| जंहा उन्होंने अन्य राजनैतिक बन्दियो को उच्च श्रेणी दिलाने के लिये भी संघर्ष किया| 20 जून 1934 को सांयकाल आठ बजे कारागार के चिकित्सालय में उन्होंने अंतिम साँस ली| स्मारक पर लिखा रखा है यह चिराग शहीदों नें बाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो सभांल के| लोगों को नया संदेश दे रहा है|
कारागार के बैंड नें किया सभी को देश भक्ति से सराबोर
केन्द्रीय कारागार के ऐतिहासिक बैंड में देश भक्ति के तरानें ऐ मेरे वतन ले लोगों, जरा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करों कुर्बानी की धुन जब निकाली तो लोग भारत माता की जय के नारे लगानें लगे|