होली पर घर की किचन बाजार में होती जा रही मर्ज

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फर्रुखाबाद:(ब्यूरो) समय के साथ त्योहारों का स्वरूप तो बदला ही है, इसे मनाने का अंदाज भी बदल गया है। यही वजह है कि होली की किचन अब बाजार में मर्ज हो गई है।
घर-घर में पकवान बनाने का जमाना अब पुराना हो गया। कई दिनों से कचरी पापड़ बनाने का दौर भी अब पुरानी बात हो गई। पहले की तरह अब गुझिया बनाने के लिए भी घर-घर महिलाओं की महफिल नहीं सजती। इस दौर में होली की किचन भी बाजार में मर्ज हो गई है। रंग-गुलाल के साथ ही गुजिया तक भी आकर्षक पैकेटों में सज गए हैं। गुजियों की कई वैरायटी है। इतना ही नहीं कचरी पापड़ और नमकीनों की वैरायटी भी कम नही हैं। फ़तेहगढ़ निवासी नीलू मिश्रा ने बताया कि समय के साथ होली मनाने का अंदाज काफी बदल गया है। पहले होली का त्योहार एक-दो दिन का नहीं होता था। पंद्रह दिनों पहले से ही त्योहार का रौनक बिखरने लगता था। गुजिया बनाने के लिए घर-घर में महफिल सजती थी। ढोलक पर होली के गीतों का सिलसिला घर में रौनक बिखेरता था। होली का त्योहार वाकई उमंग, तरंग और नई ऊर्जा लेकर आता था।
भोलेपुर निवासी बुजुर्ग रामबेटी नें बताया कि घर-घर में पकवान बनाने की परम्परा बेहद खास थी। कचरी पापड़ तो इकट्ठे ही बना लिए करते थे। त्योहार के पहले से ही घरों में रौनक बिखर जाती थी। हालांकि अब यह रौनक घरों से ज्यादा बाजार में बिखरी नजर आती है।