लखनऊ: प्रदेशभर में अब कक्षा एक से 12 तक के दिव्यांग विद्यार्थियों को दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए अब जिला अस्पतालों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। ‘उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अभियान’ के अंतर्गत दिव्यांग विद्यार्थी अपने विद्यालय में ही प्रमाणपत्र बनवा सकेंगे। उनकी सुविधा के लिए बकायदा एसेसमेंट कैंप लगाए जाएंगे।
अपर राज्य परियोजना निदेशक विष्णुकांत पांडेय की ओर से गुरुवार को दिव्यांगता प्रमाणपत्र विद्यालय में ही निश्शुल्क बनाने का आदेश जारी कर दिया गया है। समग्र शिक्षा के अंतर्गत समेकित शिक्षा में वर्ष 2019-20 में विशिष्ट आवश्कता वाले दिव्यांगों का तहसील व ब्लॉक स्तर पर कैंप लगाकर विद्यालयों में दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवाया जाएगा। पूर्व में दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सीमएओ कार्यालय से लेकर जिला अस्पताल तक कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सभी जिलों के लिए बजट का प्राविधान भी कर दिया गया है।
दिव्यांगता प्रमाणपत्र के लिए इन नियमों पर होगा जोर
- चिकित्सकों के दल में एक आर्थोपेडिक सर्जन, एक ईएनटी सर्जन, एक नेत्र विशेषज्ञ, एक साइकोलाजिस्ट व साइकिट्रिशियन अनिवार्य रूप से उपस्थित रहेंगे
- डीएम की अध्यक्षता में कार्ययोजना तैयार किए जाने के लिए बैठक आयोजित हो, जिसमें सीएमओ, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, महिला एवं बाल विकास विभाग, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग व पंचायतीराज समेत अन्य विभागों के अधिकारी आमंत्रित होंगे
- तहसील स्तर पर एसडीएम की अध्यक्षता में संकुल प्रभारी एनपीआरसी की बैठक आयोजित की जाए, जिसमें संबंधित विकास खंड में स्थित माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य को आमंत्रित किया जाए
- आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में प्रावधानित समस्त दिव्यांग बच्चों के प्रमाण पत्र भी बनवाए जाएं
- जिन बच्चों को उपकरण एवं करेक्टिव सर्जरी की आवश्यकता है, उसकी सूची तैयार करके चिह्नित किया जाए
- जापानी इंसेफ्लाइटिस एवं एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों को चिन्हित कर परीक्षण कराया जाए
- मेडिकल एसेसमेंट कैंप के लिए तिथियों का निर्धारण 10 अगस्त 2019 तक करा लिया जाए
- सभी जिलों में मेडिकल कैंप का आयोजन 15 अक्टूबर तक पूरा कराया जाना है
यहां दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए दिक्कते कई
जिला अस्पतालों में दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवाने का दावा किया जाता है, लेकिन दिव्यांग विद्यार्थियों को सीएमओ कार्यालय से लेकर अस्पताल तक कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उनकी पढ़ाई बाधित होती है और शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त भी होते हैं। एसीएमओ डॉ. एके सक्सेना बताते हैं कि दो फोटो और आइडी प्रूफ के साथ आने वाले दिव्यांगों का बलरामपुर अस्पताल में निश्शुल्क प्रमाण पत्र बनता है जो 40 प्रतिशत से ज्यादा दिव्यांग होते हैं। उनके संबंधित अंग का संबंधित डॉक्टर चेकप करके अपनी रिपोर्ट सौंपते हैं, तब आगे की कार्रवाई करके प्रमाणपत्र दिया जाता है।