फर्रुखाबाद:(कमालगंज) कस्बे में प्रति वर्ष होने वाली रामलीला के विषय में अब किसी को बताने की जरूरत नही है| आज गाँव-गाँव गली-गली में रामलीला लोगों के जहन में बना चुकी है| सोशल मीडिया के बढ़ती बाढ़ के स्तर में भी यदि संस्कारों को नाव बनकर तैरा रहा है तो वह वर्षो पुरानी रामलीला है| जो आज भी आम आदमी को अपनी तरफ आकर्षित करती है|
कमालगंज में होने वाली रामलीला की उम्र लगभग 200 वर्ष की हो गयी है| जिसमे संस्थापक के पद पर स्वर्गीय पंडित गौरीशंकर भट्ट और पंडित जानकी प्रसाद दुबे,पंडित नाथूराम औदिच्य,पंडित पुत्तू लाल मिश्र और पंडित राम चरण औदिच्य आदि संस्थापक के पद पर रहे| वही अध्यक्ष की गद्दी स्वर्गीय लाला राम प्रसाद गुप्त,लालाराम चतुरी लाल,लाला बद्री प्रसाद,लाला रामदयाल,मंगली प्रसाद ,लाला जगन्नाथ प्रसाद ,बाबू भवानी शंकर अग्रवाल,लाला होतीलाल महेश्वरी,लाला जमुना प्रसाद व जटाशंकर दुबे व स्वर्गीय पंडित काशी नाथ शुक्ला व स्वर्गीय राम अवतार गुप्त व मूलचंद गुप्ता व बनारसी दास औदिच्य व पंडित सतीश चंद्र दुबे व मदन मोहन महेश्वरी व रवि दुबे आदि अध्यक्ष पद पर रहे है|
लेकिन हालात कैसे भी रहे हो लेकिन कमेटी ने फिर मुड़कर नही देखा| जिसका परिणाम है कि प्रति वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आकर रावण का वध देखकर श्रीराम की जयकार करते है| रामलीला से जुड़े और दशकों से अपने जहन में इतिहास को ताजा किये कस्बे के बुजुर्ग राधे गुरु का कहना है की लगभग 200 वर्ष पूर्व कस्बे में रामलीला नही होती थी| जिससे क्षेत्र के बाशिंदों ने पड़ोसी जनपद कन्नौज के विशुनगढ़ के राजा के दरवार में पेश होकर कमालगंज में रामलीला कराने की गुजारिश की| जिसके बाद राजा ने रामलीला के लिये साजो-सामान की व्यवस्था करायी थी| जिसके बाद कस्बे में रामलीला का चलन शुरू हो गया|
उनका कहना है की पहले इतनी व्यवस्था नही थी| जिसके चलते अँधेरे के लिये लालटेन का प्रयोग होता था| आज इलेक्ट्रानिक समय में रंगबिरंगी लाइटो ने रामलीला की आधुनिकता को बल दिया| रामलीला में बीएससी में पढने वाले विशाल पाठक श्रीराम का रोल अदा कर रहे है| वही सीता का रोल अनमोल मिश्रा सीता की का किरदार निभा रहे है| (मुईद खान)