नई दिल्ली: नोएडा अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह की गिरफ्तारी की खबर इन दिनों सुर्खियों में है। यूपी में चाहे किसी की सत्ता रहे, यादव सिंह का सिक्का चलता रहा। पिछले साल यादव सिंह पर इनकम टैक्स का शिकंजा कसता रहा, लेकिन न तो नोएडा अथॉरिटी ने और न ही अखिलेश सरकार ने कोई बड़ा कदम उठाया। आखिर में जांच सीबीआई को सौंपी गई तो यादव सिंह की कुर्सी हिलने लगी। आखिर सीबीआई ने लंबी छानबीन के बाद कल यानि 3 फरवरी को उन्हें गिरफ्तार कर ही लिया।
बहरहाल, यादव सिंह की गिरफ्तारी ने उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की एक बड़ी कहानी पर मुहर सी लगा दी है। कई लोगों के लिए यह सिर्फ एक भ्रष्टाचार के केस में की गई कार्रवाई हो सकती है लेकिन जब तक आप यादव सिंह की पूरी कहानी जानेंगे तो दंग रह जाएंगे-
कई लोगों के लिए यह सिर्फ एक भ्रष्टाचार के केस में की गई कार्रवाई हो सकती है लेकिन जब तक आप यादव सिंह की पूरी कहानी जानेंगे तो दंग रह जाएंगे।
900 करोड़ की संपत्ति के मालिक यादव सिंह पर इनकम टैक्स विभाग ने छापा मारा था। छापेमारी में 2 किलो सोना, 100 करोड़ के हीरे, 10 करोड़ कैश के अलावा कई दस्तावेज मिले। 12 लाख रुपये सालाना की सैलरी पाने वाले यादव सिंह और उनका परिवार 323 करोड़ की चल अचल संपत्ति का मालिक बन बैठा। इसके बाद ही यादव सिंह से पूछताछ शुरू हुई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
एक साथ आगे बढ़े नोएडा और यादव
नोएडा और यादव सिंह के आगे बढ़ने की कहानी करीब एक है। वक्त के साथ नोएडा यूपी का सबसे महंगा शहर बना और यादव सिंह पर सबसे भ्रष्ट अधिकारी होने का आरोप लगा। 1976 में नोएडा अथॉरिटी का गठन किया गया और एक नया शहर बसाने के लिए बेरोजगारों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई। यादव सिंह डिप्लोमा धारक इंजीनियर था और उसे अथॉरिटी में नौकरी मिल गई। 1995 तक यादव सिंह को भी दो प्रमोशन मिल चुके थे यानी वो पहले जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर बन चुके थे।
यादव सिंह केस में अखिलेश सरकार को SC से करारा झटका
1995 में यादव सिंह को असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर के तौर पर प्रमोशन दिया गया। जबकि यादव सिंह के पास सिर्फ इंजीनियरिग का डिप्लोमा था। नियम के हिसाब से इस पद के लिए इंजीनियरिंग की डिग्री जरुरी है, लेकिन दस्तावेजों के मुताबिक यादव को बिना डिग्री के प्रमोशन दिया गया। इस हिदायत के साथ कि वो अगले तीन साल में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर लें।
जानकार के मुताबिक यादव सिंह को राजनीतिक सरपरस्ती भी खूब मिली। सत्ता किसी की भी रही, उनका बाल बांका नहीं हुआ। आयकर विभाग ने यादव सिंह के गाजियाबाद और दिल्ली के 20 ठिकानों पर छापा मारे थे। आयकर विभाग ने खुलासा किया था कि यादव सिंह ने मायावती सरकार के दौरान अपनी पत्नी कुसुमलता, दोस्त राजेन्द्र मिनोचा और नम्रता मिनोचा को डायरेक्टर बनाकर करीब 40 कम्पनी बना डालीं और कोलकाता से बोगस शेयर बनाकर नोएडा अथॉरिर्टी से सैकडो बड़े भू-खण्ड खरीदे। बाद में उन्हें दूसरी कम्पनियों को फर्जी तरीकों से बेच दिया।
60 कंपनियां खोल डालीं
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर भी सवाल उठा क्योंकि इन्हीं के राज में यादव सिंह पर 954 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले के आरोप लगे थे। हैरत है इन सब की नाक के नीचे यादव सिंह ने 60 कंपनियां खड़ी कर लीं, बंगले बना लिए, करोड़ों का कैश जमा कर लिया। आईबीएन 7 को पुख्ता सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यादव सिंह पिछली सरकार में इतना रसूख रखता था कि जूनियर होने के बावजूद अपने सीनियर अफसर के लेटरहेड पर साइन करके ठेके पास कर देता था।
यादव सिंह पर आरोप है कि इसने यूपी के सबसे अमीर विभाग नोएडा प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर रहते हुए कई सौ करोड़ रुपये घूस लेकर ठेकेदारों को टेंडर बांटे। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के इंजीनियर रहते हुए यादव सिंह की सभी तरह के टेंडर और पैसों के आवंटन बड़ी भूमिका होती थी।
जांच के दौरान पता चला है कि प्राधिकरण में हर ठेके में पांच प्रतिशत घूस तय थी और घूस की इस रकम में प्रमुख अभियंता से लेकर वित्त नियंत्रक तक सारे अधिकारियों का हिस्सा भी तय था। जो कर्मचारी घूस की रकम एकत्र करता था उसे भी उसका इनाम पूरी ईमानदारी से मिलता था। नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों से खुलासा हुआ है जिसके मुताबिक एसएमएस के जरिए भी टेंडर दिये जाते थे।
मायावती की 2003 में सत्ता से विदाई हुई तो मुलायम सिंह सत्ता में आ गए लेकिन यादव सिंह की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने समाजवादी पार्टी से भी रिश्ते बना लिए और लखनऊ की सत्ता के गलियारों में उनकी पहुंच बनी रही। आरोप ये भी लगा कि नोएडा से लेकर आगरा तक अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में यादव सिंह का दखल बढ़ गया था।