नए वर्ष की दस्तक ! आओ कुछ सोचें, कुछ विचारें- गतिज जड़ता को कैसे तोड़े !
जड़ता जहाँ भी है| हेय है, त्याज्य है| गतिज जड़ता का तो कोई मतलब ही नहीं है| परिवर्तन जीवन का नियम है| अपना आदर्श स्वयं चुनो| अपना आदर्श स्वयं बनो| किसी का सुधार उपहास से नहीं उसे उसे नए सिरे से सोचने और बदलने का अवसर देने से ही होता है|
चीजो को देखने परखने की हमारी द्रष्टि क्या है| सब कुछ उसी पर निर्भर करता है| गिलास में पानी है| गिलास आधा भरा है या गिलास आधा खली है, यह हमारी सोच पर निर्भर करता है|
जिस व्यक्ति को हम आप बहुत ही निक्रष्ट और हेय समझते है| उसमे भी कुछ न कुछ ऐसा होता है जो सीखने और सराहने योग्य है| हमें श्रेष्ठ को चुनने और शेष को छोड़ देने की आदत डालनी होगी|
मनुस्मृति अपने समय का संबिधान है, संबिधान आज की मनुस्मृति है| दोनों में परिवर्तन की जरुरत है और रहेगी| पुराना सब कुछ बुरा नहीं है और नया सब कुछ सही नहीं है| विवेक के तराजू पर निष्पक्ष और निर्भीक होकर नए और पुराने को तौलो| त्याज्य को त्याग दो| स्वीकार्य को स्वीकार लो|
हम जो कुछ जानते है, मानते है| उसके अनुसार चलने से हमको आपको कौन रोक सकता है| कोई नहीं| परन्तु जो हम जानते है, मानते है उसे हम अपनाते नहीं| हम दूसरो को गाली देकर उन्हें निक्रष्ट हेय बताकर अपनी श्रेष्ठता के दंभ डूबे रहना चाहते है| यही है गतिज जड़ता| इसे ही हमें स्वयं अपने प्रयासों से तोडना है, नए वर्ष में हम आपको सबको वह बनना है जो हम आप वास्तव में बनना चाहते है—
अजानी मंजिलो का,
राहगीरों को नहीं तुम भेज देते हो
जकड कर कल्पना इनके पारो की मुक्ति को
तुम छीन लेते हो
नहीं मालूम तुम को है कठिन कितना
बनाये पंथ को तजकर
ह्रदय के बीच से उठते हुए स्वर के सहारे
मुक्त चल पड़ना
नए अलोक पथ की खोज में
गिर गम्भरो से झाड़ियो से झंझटो से
कंकडो से पत्थरो से रात दीन लड़ना
नए आलोक पथ की खोज, भटकने के लिए भी
एक साहस चाहिए
जो भी नए पथ आज तक खोजे गए
हुए इन्सान की देन है |
नव वर्ष में आप गतिज जड़ता को तोड़े, आप अलोक पथ को खोजे, उस पूरे उत्साह उमंग के साथ सतत चलते-चलते अपने लक्ष्य को प्राप्त करें / इसी आशा और शुभकामनाओ के साथ आप सबको नव वर्ष की हार्दिक बधाई |
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हर व्यक्ति बहुत उदास है आज !
साल बीतते-बीतते दिल्ली में गैंगरेप की शिकार जीवन और मृत्यु के बीच लम्बे संघर्स में करोडो लोगो की दुआओं के बाद अंततः हार गई| छात्रा के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद जीने की बात हो भी कैसे सकती है| इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया| लम्बे समय से चली आ रही सामाजिक निर्लज्जता उदंडता दबंगई का शिकार होती चली आ रही देश की आधी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा इस इस अमानुषिक बर्बर घटना के बाद स्वतः स्फूर्त ढंग से करो या मरो के अंदाज खड़ा हो गया है| तब जाकर कहीं प्रशासन सरकार को स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा हुआ| आनन् फानन में हरकत में आये सत्ताधारी किंकर्तव्यविमूढ़, गलतिया करते चले गए| महंगाई और भ्रष्टाचार के कष्टप्रद द्वार के बीच आनन फानन में अपने वेतन भत्ते बढा लेने बाली संसद और सांसद समझ ही न पाए की क्या करे| पीडि़ता की मौत के बाद हालात गंभीर हो गए| हर ओर बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है| सबकी अपनी कसौटियां और निर्णय हैं| लेकिन एक बात पूर्णतः सही है, कि हर व्यक्ति इस प्रकरण पर बहुत ही उदास हताश निराश है|
हम सब लोकतंत्र में जीते है| बड़ी बड़ी बातें करते है| परन्तु बारूद के ढेर पर टिका बसा हमारा समाज कितना विकृत है| छात्रा से गैंगरेप की घटना ने सरे देश ही नहीं सारी दुनिया के सामने यह स्पष्ट कर दिया| सुबह से रात तक घर आँगन गली मोहल्ले गावं शहरो में होने वाली अमर्यादित अश्लील निंदनीय गैर-जिमेदाराना घटनाओ की अनदेखी की चरम चरम परिणिति है| दिल्ली गैंगरेप की घटना| हम बातें कितनी भी बड़ी बड़ी करें परन्तु हर और आये दिन होने वाली घटनाओ पर हमारा नजरिया कायरता पूर्ण ही रहता है| विरोध करना ही हमारे संस्कारो में नहीं रहा| कौन दोषी है इसके लिए| वह सब लोग जो अपने को बहुत शिक्षित सभ्य योग्य और संस्कारित समझते हैं|
हमारी सबकी जड़ता और उदासीनता को इस घटना ने झकझोरा है, हजारो शिक्षाओ को उपदेशो को नजर अंदाज कर इस एक घटना ने रातो रात हमारे को जगा दिया| अब हम स्वयं से चिंतन और मंथन की स्थिति में आ गए है| पीड़ित छात्रा ने जीवन मृत्यु से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की कीमत पर देश को झकझोरा है जगाया है| उसका ये बलिदान व्यर्थ न जाये| यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है|
इस घटना ने चरम वलिदान के बाद हमको परिपक्व बना दिया है| अन्यथा सरकार हो या नेता किसी को भी हमें कोई नियम कानून कायदे को बनाने समझाने की जरूरत नहीं है क्यों की इन लोगो में न इस बात की पात्रता है और न विश्वसनीयता|
अब हमें नए साल में प्रवेश से पूर्व स्वतः निर्णय कर अपना फैसला लेना होगा, रास्ता बनाना होगा| हमें स्वयं अपने आस पास के माहौल, फिल्मों, टीवी, समाचार पत्रों में जो बातें कार्यक्रम अच्छे नहीं लगते उनकी सूची स्वयं के विवेक से निष्पक्ष व् निर्भीक होकर बनानी होगी| स्वयं ही उन पर फैसला करो| स्वयं ही उन पर अमल करो| यकीं मानो आज की नम आँखों और पीड़ित मन ने साल दस्तक दे रहे साल में अपने स्वयं के निर्णय पर अमल किया तभी बीत रहे साल का कलुषित विकृत निंदनीय कलंक हमारे माथे से पुछ पायेगा|
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शाहखर्च जनप्रतिनिधि
देश में गरीबी है, गरीबी है, भ्रष्टाचार का बोल बाला है, तमाम समस्यायें है| परन्तु हमारे जनप्रतिनिधि सरकारों के मुखिया नौकरशाह इन सबसे बेपरवाह है| उन्हें अपनी शानौशौकत फिजूलखर्ची को लेकर कोई चिंता नहीं है| आजादी के साथ ही सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस कुर्सी पर आते ही सादगी और उच्च विचारो को छोडती चली गई| फिजूलखर्ची शानशौकत और दिखावे के नित नए कीर्तिमान बनते चले गए| इन्ही के गर्भ से भ्रष्टाचार के नए नए कारनामे उजागर होते चले गए| पुराने कांग्रेसी रहे तब तक कुछ लाज शर्म बची रही| अब तो जितने ठाठ बात से रहे उतना ही बड़ा नेता|
परन्तु कांग्रेस के इस चकाचौंध भरे खेल में अपने आपको पार्टी विद द डिफ़रेंस गाने वाली भाजपाई सत्ता के गलियारे में प्रवेश करते ही बड़ी खिलाडी बन गयी| भ्रष्टाचार के प्रकरणों से कांग्रेस और भाजपा के नेता बुरी तरह घिरे हुए हैं| प्रांतीय क्षेत्रो के खेल भी आये दिन चौकांते है| एक भाजपाई मुख्यमंत्री अपने राज्य स्थापना दिवस समारोह में दस मिनट मिनट के एक नृत्य पर एक करोड़ से अधिक रूपए लुटा देते है| वही सारी दुनिया में सीएम नहीं भाजपा के भावी पीएम बनने की भी सुर्खिया बटोरने बाले एक सादगी पसंद संघ से स्वयं सेवक से मुख्यमंत्री बनने बाले नेता जी पूरे एक सौ पचास करोड़ रूपए खर्च करके अपना नया कार्यालय बनाया है| पंचमूर्ती के नाम से पैंतीस हजार वर्ग फीट बने इस चार मंजिला दफ्तर कौन क्या करेगा| यह समझ पाना आसान नहीं है| निश्चय ही महात्मा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, मोरार जी देसाई,चन्द्रभानु गुप्ता, दीनदयाल उपाध्याय, सरदार पटेल, डा० लोहिया जैसे अनगिनत नेता अपने अपने वर्तमान उत्तराधिकारियो की इस वेहिसाब तरक्की पर खुश हो रहे होंगे| सादगी समर्पण का प्रतिमूर्ति कहे जाने बाले राष्ट्रीय स्वयं संघ के हजारो पूर्णकालिक स्वयं सेवक अपने इस पुराने साथी के क्रांतिकारी परिवर्तन पर आश्चर्य चकित होंगे| सादा जीवन उच्च विचार में रक्खा क्या है| तामझाम झांपा फिजूलखर्ची जिंदाबाद|
अंत में –
भीषण सर्दी है –सभी के सभी बेहाल है कम्बल बंटे कि नहीं, अलाव जले कि नहीं| हर ओर इसी बात की चर्चा है| सर्दी के बचाव में भी गरीबी अमीरी का फर्क साफ़ सामने दिखाई देता है| इण्डिया और हिंदुस्तान भी यहीं है| सर्दी बचाने के हर तरह के सामानों का टीवी समाचार पत्रों में घनघोर विज्ञापन है| इसके चलते उपभोक्ता सामानों की कीमत बेतहासा बढ़ रही है|
परन्तु हमारे गली मोहल्लो में रहने बसने वाली दादियो बुआओ चाचियो के सर्दी बचाओ ही नहीं सर्दी भगाओ नुस्खे कम कीमत पर और बेहतर फायदे के बल पर अब भी अपना महत्व बनाये हुए है| दादी का सोंठ मिला गर्म दूध, महिलाओ को प्रसव के समय दिया जाने वाला हरीरा किसी प्राशकल्प से बेहतर है| कीमत भी बहुत कम| बुआ की मेथी की सब्जी, गुड और बाजरे की रोटी की जबरदस्त धूम है| धनिया लहसुन टमाटर आदि मिलाकर बनाई जाने वाली चटनी तो आस पास के मोहल्ले में ऐसी छा गई कि चाची “चटनी वाली चाची” बन गई|
और चलते चलते ….
प्रधानमंत्री जी! गृहमंत्री जी ! बड़े पदों पर हो| सोंच भी बढ़ाईए| आपकी अपनी तीन बेटियां ही नहीं है| इस देश की सारी बेटियां आपकी ही है| नए वर्ष में हम सब इसी सोच के साथ प्रवेश करे| आज बस इतना ही जय हिन्द !
सतीश दीक्षित
एडवोकेट