स्वास्थ्य विभाग की फाइलों में ही चल रहा राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम

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childफर्रुखाबाद: एनआरएचएम की ओर से बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए देशभर में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया गया है| इस कार्यक्रम के अंतर्गत जन्म से लेकर 19 वर्ष आयु के बच्चों की स्वास्थ्य जाँच किए जाने के साथ ही उनको आयरन और पेट के कीड़ों की एलविंडाजाल गोली खिलाई जाती है| इसके साथ अन्य किसी तरह की बीमारी पाए जाने पर उसका उचित निदान किया जाता है| जिले का दुर्भाग्य ही है कि पिछले छह महीनों से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम सिर्फ कागजों पर ही चल रहा है| शायद ही कोई ऐसा स्कूल या फिर आंगनबाड़ी केंद्र हो जहाँ कोई मेडिकल मोबाइल टीम गई हो और बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया हो|

यह तथ्य जेएनआई टीम की और से की गई पड़ताल में यह सामने आया है| जबकि स्वास्थ्य विभाग इसको मानने को तैयार नहीं है| टीम ने जिले के सभी ब्लॉक क्षेत्रों के 5-5 स्कूलों में पूंछतांछ की तो एक भी स्कूल ऐसा नहीं मिला जहाँ के शिक्षक और बच्चे यह कहने की जहमत उठाते कि वहां मेडिकल मोबाइल टीम ने जाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया है| किसी भी बच्चे के पास उसका हेल्थ कार्ड भी नहीं था| ज्यादातर स्कूलों के शिक्षकों ने पिछले वर्षों में हुए हेल्थ चेकअप की ही जानकारी दी| इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग के पास उपलब्ध स्कूलों में पंजीकृत बच्चों की संख्या में भी बड़ा हेरफेर नजर आ रहा है|

सीएमओ डॉ राकेश कुमार के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे 3,335 आंगनवाडी केन्द्रों, प्रायमरी जूनियर और माध्यमिक स्कूलों में कुल 2,04,082 बच्चे ही पंजीकृत हैं| जो शून्य से 19 वर्ष की आयु के हैं| अब सबसे पहले तो सीएमओ की ओर से दी जा रही आंगनवाडी केन्द्रों, प्रायमरी जूनियर और माध्यमिक स्कूलों की संख्या ही गलत है| जिला कर्यक्रम अधिकारी के अनुसार जिले में चल रहे कुल आंगनवाडी केन्द्रों की संख्या ही 1752 है| लगभग 2000 के करीब परिषदीय प्रायमरी और जूनियर स्कूल हैं| इसके अतिरिक्त तीन दर्जन के करीब मान्यता प्राप्त प्रायमरी और जूनियर स्कूल हैं| 175 माध्यमिक स्कूल हैं| अगर यह आंकड़ा जोड़ा जाये तो चार हजार के आसपास आता है| अब रही पंजीकृत बच्चों की संख्या तो जितनी संख्या सीएमओ बता रहे हैं, उतनी संख्या तो परिषदीय स्कूलों के बच्चों की है| यदि आंगनवाडी केन्द्रों और माध्यमिक स्कूलों में पंजीकृत बच्चों की संख्या को शामिल किया जाए तो यह आंकड़ा दो गुने से भी अधिक होगा| जबकि प्रोग्राम के लिए निर्धारित आयु वर्ग में आने वाले बहुत से छात्र और छात्राएं महाविद्यालयों में भी अध्ययनरत होंगे|

सीएमओ कर रहे खोखले दावे
सीएमओ का एक और भी दावा है कि मेडिकल मोबाइल टीमों के भ्रमण का मासिक कार्यक्रम तैयार होता है, जिसको प्रत्येक ब्लॉक के खंड शिक्षा अधिकारी और सीडीपीओ को दिया जाता है| जब इस सम्बन्ध में पड़ताल की तो सबसे पहले शहर क्षेत्र से सटे ब्लॉक बढपुर के खंड शिक्षा अधिकारी महेश शर्मा टकरा गए| शर्मा जी से जब मेडिकल मोबाइल टीम के भ्रमण का माह अक्टूबर का कार्यक्रम माँगा तो वह चौक गए| उन्होंने कहा की पिछले वर्ष तो मिला था लेकिन इस वर्ष कुछ नहीं मिला है| फिर भी उन्होंने इत्मीनान करने के लिए अपने ऑफिस के बाबू से पूछा तो उसने साफ़ इनकार कर दिया| बीईओ के पास बैठे कन्या प्राथमिक विद्यालय, बुढनामऊ के प्रधानाध्यापक नानक चन्द्र ने बताया ही उनके स्कूल में तो विगत दो वर्षों से बच्चों का हेल्थ चेकअप नहीं हुआ है और कोई मेडिकल मोबाइल टीम भी नहीं आई है|

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी योगराज सिंह से जब इस सम्बन्ध में पूछा तो वह पश्चिम के होने की बजह से खड़ी भाषा में बोले सीएमओ कुछ बताता ही नहीं है उसी से पूछो| मुझे कोई जानकारी नहीं है| हाँ इतना जरूर पता है की स्कूलों में अभी कोई हेल्थ चेकअप नहीं हो रहा है| जबकि सीएमओ के दावे के अनुसार 78,322 बच्चों का अभी तक हेल्थ चेकअप हो चुका है| इन विरोधाभासी तथ्यों को देखने के बाद यह लगता है, ‘कहीं एक और एनआरएचएम घोटाले की शुरुआत तो नहीं

एनआरएचएम की और संचालित होता है कार्यक्रम
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत संचालित राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में जन्म से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है| उत्तर प्रदेश में बच्चों की स्वास्थ्य जांच और उनमे पाए जाने वाले रोगों के लक्षणों के निदान के लिए वर्ष 2012-13 में आशीर्वाद बाल स्वास्थ्य गारंटी योजना के नाम से शुरू की गई थी| योजना के अंतर्गत ब्लॉक स्तर पर गठित मेडिकल मोबाइल टीमें स्कूलों में जाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करती थीं और बच्चों का हेल्थ कार्ड भी बनाती थीं| लेकिन अब यह हेल्थ प्रोग्राम राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की और से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नाम से संचालित हो रहा है| कार्यक्रम के अंतर्गत जन्म से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य की जांच होती है| कार्यक्रम चार ‘डी’ पर आधारित है, बर्थ डिफेक्ट, डिजीज, डेजीसियेन्सी और डिसएबिलिटी’| स्कीम में ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों के अतिरिक्त आंगनवाडी केन्द्रों को भी शामिल कर लिया गया है| इसके साथ ही बच्चों के बर्थ डिफेक्ट की जांच के लिए टीमें घर-घर जाएंगी|