इंदौर: सीमेंट कांक्रीट के बेतहाशा निर्माण से इंदौर हीट आईलैंड यानी गर्म शहर बनता जा रहा है। ऐसे में नगर निगम और आईडीए ने घरों को ठंडा रखने के लिए नए प्रयोग किए हैं। इनके शुरुआती परिणाम भी अच्छे मिले हैं। मालवा के मौसम की खासियत रही है कि यहां दिन भले ही तपन भरे हों लेकिन शामें ठंडी होती हैं। बढ़ते शहरीकरण के कारण इंदौर में अब शब-ए-मालवा का एहसास खत्म हो चुका है। सीमेंट क्रांक्रीट के पक्के घर रात में भी गर्म भट्टी जैसे तपते हैं।
पंखों की हवा भी पक्की छत वाले घरों में ठंडक नहीं घोल पा रही है। यह शहर के हिट आईलैंड में त?दील होने के संकेत हैं। मगर अच्छी खबर ये है कि इसे रोकने के लिए नगर निगम व आईडीए स्तर पर काम शुरू हुआ है। सूरत के बाद इंदौर देश का ऐसा दूसरा शहर है जहां सरकारी आवासीय योजनाओं में 13 तकनीकों का इस्तेमाल कर घर के भीतर का तापमान 3 से 4 डिग्री कम किया गया है। इस कवायद से कम से कम घर के भीतर तो शब-ए-मालवा का एहसास जिंदा रहेगा।
सर्वे में सामने आई हकीकत
शहर के तापमान में हो रहे इजाफे को कम करने के लिए नगर निगम ने क्लाइमेंट चैंज सेल गठित की है। क्लाइमेंट चैंज प्रोग्राम के तहत निगम ने तरु संस्था को इसके सर्वे की जिम्मेदारी दी थी। सर्वे में पाया गया कि बीते 15 वर्षों में शहर के तापमान में लगातार इजाफा हुआ है। शहरीकरण के कारण पैदा हो रही ऊष्मा से घरों के भीतर देर तक गरमाहट कायम रहती है। इससे निपटने के लिए संस्था ने शहर के पांच इलाकों में तापमान मापने के उपकरण लगाए। निरंजनपुर, नैनोद में आईडीए व नगर निगम द्वारा बनाए गए सस्ते आवासों के अलावा खजराना, गोयल विहार सहित 13 जगहों पर घरों के तापमान में कमी लाने के लिए प्रयोग किए।इसके अच्छे परिणाम आए। डाटा कहता है कि तापमान में 3 से 4 डिग्री की कमी आई है। अब इसकी रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी जाएगी, ताकि भविष्य में दूसरे आवासीय प्रोजेक्टों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सके। आमतौर पर देखा जाता है कि सूरज ढलने के बाद बाहरी वातावरण में तपन कम हो जाती है लेकिन घरों के भीतर ऐसा नहीं होता। बाहर की तुलना में भीतर का तापमान ज्यादा रहता है। ऐसा हीट आईलैंड इफेक्ट के कारण ही होता है। दिनभर तपने के बाद घर की छत और दीवारें देर रात तक ऊष्मा का उत्सर्जन घर के भीतर ही करती हैं।
पुरानी बसाहट में ज्यादा प्रभाव
हीट आईलैंड इफेक्ट का प्रभाव शहर के पुराने हिस्से में ज्यादा है। यहां बसाहट घनी है और पेड़ों की संख्या भी कम है। खुली आबो-हवा नहीं होने और सीमेंटेड सड़कों की अधिकता के कारण शहर के सीमावर्ती इलाकों की तुलना में यहां तापमान ज्यादा रहता है। यातायात के कारण होने वाला वायू प्रदूषण इसे और बढ़ा देता है।
ऐसे हुआ तापमान कम
निरंजनपुर में बने ईड?लूएस मकानों की छत पर थर्माकोल बॉल के साथ सीमेंट की कोटिंग की गई। बॉल के कारण दिनभर छत तपने के बावजूद ऊष्मा का असर घर के भीतर नहीं पड़ता।
नैनोद में निगम ने गरीबों के लिए बनाए गए फ्लैट्स में होलो क्ले टाइल्स का इस्तेमाल किया गया। टाइल्स के बीच 2 से 3 इंच के छेद होने के कारण हवा का प्रवाह बना रहता है। इससे छत व दीवारों में बाहरी तापमान का असर कम होता है। टाइल्स की ऊपरी सतह पर सीमेंट की कोटिंग की गई, ताकि बारिश में छत में सीलन न आए।
बेम्बू स्क्रीन शेडिंग डिजाइन मूसाखेड़ी बस्ती के एक कच्चे मकान में अपनाई गई। टीन शेड के ऊपर बांस के टुकड़ों को जोड़कर रखा गया। बांस की ऊपरी सतह पर सफेद पेंट किया गया। इस प्रयोग के बाद घर के भीतर पहले की तुलना में तीन इंच तापमान कम पाया गया। यह अपेक्षाकृृत सस्ता उपाय है और टीन शेड के घरों के लिए लाभकारी है। बस्तियों में रहने वाले परिवारों की आय कम रहती है। ऐसे में वे गर्मी से बचने के लिए पंखों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उन्हें ज्यादा बिजली बिल देना पड़ता है।
ये है हीट आईलैंड इफेक्ट
गर्मी के दिनों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सीमेंट की गर्म छत ऊष्मा नीचे की तरफ छोड़ती है। यही कारण है कि सिलिंग पंखे भी गर्म हवा फेंकते हैं। प्रोजेक्ट पर काम कर रही तरु संस्था की मेघा बरवे ने बताया ‘सर्वे में हमने बहुमंजिला भवनों के ग्राउंड फ्लोर और ऊपरी मंजिल के मकानों का तापमान मापा। इनमें चार डिग्री तक का अंतर मिला। सीमेंट की छतों के कारण सबसे अधिक हीट आईलैंड इफेक्ट पनपा है। ठंडक के लिए लोग पंखा, कूलर, एसी का उपयोग करने लगे हैं। इससे बिजली खपत भी बढ़ गई है।
कृृष्णमुरारी मोघे, महापौर…….
तापमान बढ़ने से शहर में भी बदलाव आए हैं। इसके लिए सर्वे हुए भी हुआ है। इसकी रिपोर्ट को हम अमल में लाएंगे। वैसे बजट में हमने क्लाइमेंट चैंज सेल के गठन को भी मंजूरी दी है, जो शहर में पर्यावरण गतिविधियों पर काम करेगी।