जेएनआई एक्सक्लूसिव: देखें 300 वर्ष पहले कैसे बसा था फर्रुखाबाद

Uncategorized

FARRUKHABAD : दीपक शुक्ला -फर्रुखाबाद शहर जिसे छोटी काशी के रूप में जाना जाता है। हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल आज भी है। इसे बसाने वाला व्यक्ति मुसलमान था लेकिन इसके बावजूद भी इसे छोटी काशी का दर्जा दिया गया। इसका कारण यह है कि यहां पर शिवालयों की संख्या बहुत अधिक थी। 300 वर्ष पूर्व फर्रुखाबाद शहर की व्यवस्था बड़े ही कारीगरी से की गयी थी। हर वर्ग के लोगों को उनके स्थान पर उचित तरीके से बसाया गया था और उनके व्यापार के हिसाब से ही मोहल्ले का भी नाम रखा गया था। जिससे समाज में सामंजस्य बना रहता था। फर्रुखाबाद शहर की स्थापना के 300 वर्ष पूर्ण होने पर जेएनआई की खास पेशकश देखें और यह भी देखें कि शहर का कौन सा मोहल्ला क्यों और कैसे बसाया गया।FARRUKHABAD INCEANT MARKET copy

पहले बताते चलें कि फर्रुखाबाद शहर की बुनियाद 27 दिसम्बर 1713 ई0 में नबाव मोहम्मद खां बंगश द्वारा रखी गयी थी। शहर में 12 दरबाजे व चार खिड़कियां थीं। जिन्हें व्यवस्थित रूप से स्थापित किया गया था। नबाव मोहम्मद खां बंगश एक बीर सेनानी थे। जिनका जन्म मौजा रसीदाबाद के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने जो भी प्राप्त किया अपनी लगन और मेहनत से। उनके पास कोई पैतृक जमीन नहीं थी।

प्रारंभ में फर्रुखाबाद शहर में अफगान के पठानों के अलावा दूसरे धर्म और विरादरियों के लोगों को बसाने और उनकी सुरक्षा व सम्मान को बरकरार रखने का पूरा ध्यान रखा गया। शहर में मुस्लिम समाज के लिए जितनी मस्जिदें बनायी गयीं थीं उससे कई अधिक हिन्दुओं के मंदिर बनाये गयेbangas ka makbara थे। नबाव अमीउद्दौला द्वारा निर्मित कराया गया मोहल्ला बाग कूंचा का भव्य मंदिर फिलहाल अभी इसकी मिशाल है। शहर में शिवालय इत्यादि एक बड़ी संख्या में निर्मित किये गये थे। जिस बजह से लोग फर्रुखाबाद शहर को छोटी काशी के नाम से बुलाते हैं।]

[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”11″]

फर्रुखाबाद के घाट अव्यवस्था के कारण नष्ट हो रहे हैं और कुछ तो हो भी गये, जो किसी दिन बनारस के घाटों से ज्यादा अलौकिक और सुंदर दिखायी देते थे। शहर में हिन्दू और मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव नहीं था। शहर में कुछ मोहल्ले पठानों की पहचान के लिए बसाये गये तो हिन्दुओं की पहचान के लिए हिन्दुओं के नाम से मोहल्ले बसे। जिनके नाम सरकारी रिकार्ड में आज भी दर्ज हैं। नबाव मोहम्मद खां बंगश फर्रुखाबाद की रियासत के मालिक होने के अलावा दिल्ली की सरकार के 52 हजारी सेनापति भी थे।

मगर उनकी सादगी यह थी कि वह महल जिसको किले के नाम से जाना जाता है वह कच्चा था। जिसमें वह स्वयं रहा करते थे। उन्होंने अपनी हुकूमत में फरमान जारी किया था कि उनका अधिकारी चाहे वह किसी भी पद पर हो अपना मकान गढ़िया पक्की नहीं बनवा सकता। सिर्फ महमानों के ठहरने के लिए पक्के दीवानखाने बनाये जाने की इजाजत थी।

आदेश का उल्लंघन करने वालों को जमीन जायदाद से बेदखल कर दिया जाता था। नबाव मोहम्मद खां बंगश अपने कर्मचारियों पर पैनी नजर रखते थे और उनके युग में फर्रुखाबाद मंदिरों, मस्जिदों, बाग बगीचों का हरा भरा शहर था। उसके आस पास सैकड़ों बाग बगीचे थे। शहर में सर्राफा, कसरट्टा, कपड़े व सूत की दुकानें, आढ़तें स्थापित की गयी थीं। मुसलमानों, खासतौर से ब्राह्मणों, ठाकुरों, बनियों, पठानों व कुर्मियों के पास जमीदारी के बाग बगीचे थे।

जानिये कैसे बसे फर्रुखाबाद के मुख्य मोहल्ले
फर्रुखाबाद की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में थी। जमीदारियों के अलावा बाग बगीचा मुसलमानों के हाथ में थे लेकिन इसके अलावा आढ़तें, व्यापार, महाजनी, सर्राफा, कसरट्टा, कपड़े का व्यापार साहूकारी हिन्दुओं के हाथ में थी। महाजनों ने जब कभी भी नबाबों को इमारतें आदि बनाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती तो महाजन बड़ी दिलचस्पी से उसमें धन जुटाया करते थे। एक तरह का पेशा करने वाले लोगों के मोहल्ले की बुनियाद भी उनके व्यापार के हिसाब से रखी गयी और नाम भी।

नमक का व्यापार करने वाले लोगों को मोहल्ला नुनहाई, खड़सारी कार्य करने वालों के लिए खड़ियाई, खत्री बनियों के लिए खतराना, महाजनी का पेशा करने वालों के लिए मोहल्ला रस्तोगी, अग्रवाल बनियों के लिए मोहल्ला अढ़तियान, छपाई का पेशा करने वालों के लिए मोहल्ला सधवाड़ा, कई मोहल्ले ब्राह्मणों के लिए भी बसाये गये थे।

छोटे छोटे बाजारों को बजरिया नाम दिया गया
फारसी तथा अरबी के अतिरिक्त संस्कृत पाठशालायें भी बनायी गयी थीं। आमतौर पर चौथे दिन बाजारों को पेठ कहा जाता था और दैनिक लगने वालों को नितगंजा कहते थे। इसके अलावा छोटे छोटे बाजार भी लगते थे। उन्हीं में बजरिया मशहूर है। बजरिया सालिगराम, बजरिया जयसुखलाल, बजरिया हरलाल, बजरिया शेख इनायत अली, बजरिया जफर खां आदि।

सुनारों को भी शहर में बसाने की अलग व्यवस्था थी। इन्हें शहर के बीचो बीच सुरक्षित स्थान पर बसाया गया। इसी प्रकार पीतल के बर्तन बनाने वालों को ठठेरा कहा जाता है। उनकी आबादी व्यवस्था के आधार पर अलग अलग स्थानों पर की गयी। सब्जियां पैदा करने वालों के मोहल्ले कछियाना, कादरी, कछियाना टूकी इसके अलावा काछियों को बीबीगंज, भीकमपुरा आदि स्थानों पर बसाया गया।

बुनकरों को बनारस और बाराबंकी से लाकर बसाया गया
बुनकरों को बनारस के अलावा बाराबंकी से बुलाकर अलग अलग मोहल्लों में बसाया गया। जिसमें भीकमपुरा, इस्माइलगंज सानी, मनिहारी खटकपुरा जहां आज भी कारचोब का काम बड़े पैमाने पर होता है।

व्यापारियों की सुरक्षा के लिए शहर में मिली जमीनों पर पठानों के फौजी परिवारों के लोग निवास करते थे। उत्तरी क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए मोहल्ला बंगशपुरा, सलावत खां, सूफी खां, पश्चिम में भीकमपुरा, गढ़ी मुरीद खां, दक्षिण में घेर शामू खां, तलैया फजल इमाम, गढ़ी अशरफ अली, पूर्व में खटकपुरा, छावनी, गजीउद्दीन खां आदि बसाये गये थे।

आने वाले 27 दिसम्बर 2013 को फर्रुखाबाद शहर को बसाने के 300 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। जेएनआई आपको इतिहास के झरोखे से कुछ खास जानकारी प्रति दिन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करेगा।