नई दिल्ली। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया। एक ऐसा नाम जिसका खौफ ना सिर्फ कुंडा बल्कि उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक हल्के में भी नजर आता है। जनता के प्रतिनिधि भी इस बाहुबली नेता के चरणों में झुककर खुद को धन्य समझते हैं।
ऐसे में कई सवाल जन्म ले रहे हैं। आखिर क्या हुआ जो कुंडा के डीएसपी जियाउल हक और राजा भैया में ठन गई। वो कौन सी वजह थी जिसके चलते जियाउल हक को लगने लगा कि राजा भैया और उनके लोग उन्हें निशाना बना सकते हैं। डीएसपी की हत्या के बाद उनकी पत्नी परवीन आखिर बार-बार राजा भैया का नाम ही क्यों ले रही हैं।
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इन सारे सवालों के जवाब में हम आपको बताने जा रहे हैं सरकारी दस्तावेज में दर्ज एक ऐसा दस्तखत, जिसके चलते जियाउल हक और राजा भैया के समर्थक आमने-सामने आ खड़े हुए। करीब 6 महीना पहले 5 सितंबर 2012 को खुद जियाउल हक ने एक दस्तावेज पर दस्तखत किए थे। ये दस्तखत इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि बाहुबली राजा भैया के आपराधिक कारनामों का इतिहास कितना लंबा रहा है।
दरअसल जियाउल हक ने सरकार को भेजी गई एक बेहद गोपनीय रिपोर्ट में राजा भैया और उनके भाई अक्षय प्रताप की हिस्ट्रीशीट भी लगाई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजा भैया और जियाउल हक के बीच इस दस्तावेज और रिपोर्ट के चलते ही अनबन की शुरुआत हुई।
राजा भैया के खिलाफ जिस गोपनीय रिपोर्ट की बात अब सामने आ रही है…उसे बनाने की जरूरत क्यों पड़ी। वो भी तब जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार बन चुकी थी। राजा भैया को कैबिनेट मंत्री का ओहदा मिल चुका था। दरअसल 23 जून को प्रतापगढ़ के स्थानगांव में बलात्कार की वारदात से गुस्साए लोगों ने अल्पसंख्यकों के कई घर फूंक डाले।
आरोप लगा राजा भैया और उनके समर्थकों पर। जांच के दौरान एक कैबिनेट मंत्री ने भी राजा भैया की भूमिका पर सवाल उठाए। ये इलाका कुंडा सीओ का था। लिहाजा अगस्त महीने में सरकार ने तत्कालीन सीओ को हटाते हुए उनकी जगह डीएसपी जिआउल हक को तैनात कर दिया। जिलायल हक ने जाते ही इस मामले की जांच तेज कर दी। राजा भैया के कई समर्थकों के इर्द-गिर्द कानूनी शिकंजा कसने लगा।
पुलिस महकमे की मानें तो बतौर सीओ कुंडा ये डीएसपी जियाउल का दुस्साहस था, तब जबकि राजा भैय्या सूबे के ताकतवर मंत्रियों में से एक थे। ऐसे में सीओ ने राजा भैय्या की हिस्ट्रीशीट जारी कर आफत मोल ले ली।लेकिन कहानी यहीं से शुरू नहीं हुई।
सूत्रों की मानें तो सरकार को भेजी रिपोर्ट के अलावा भी डीएसपी जियाउल हक ने राजा भैया और उनके समर्थकों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। राजा भैया के समर्थकों को मिले लाइसेंसी हथियारों के रिकॉर्ड की जांच भी शुरू कर दी। अवैध खनन में लगे राजा भैया समर्थकों के खिलाफ भी अभियान छेड़ दिया। यही नहीं अल्पसंख्यकों के घर जलाने के मामले में राजा भैया के 140 समर्थकों का नाम भी जोड़ दिया।
डीएसपी की इस हिम्मत ने राजा भैया के समर्थकों को और भड़का दिया। डीएसपी के परिवार की मानें तो राजा भैया और उनके करीबियों ने उन पर काफी दबाव बनाया। लेकिन जिया उल हक राजा भैया के खौफ को नजरअंदाज करते रहे।
जिया उल हख के चचेरे भाई सोहराब ने कहा कि उनसे हम लोगों ने बैठकर बात की थी तो वो बोले की वहां गुंडागर्दी बहुत है। राजा भैया ने हमको कई बार चाय पर बुलाया। एक दिन हम गए भी थे तो बोल दिया कि हमारा व्रत है। बोलते थे स्टेटमेंट बदलने के लिए। जो 40-50 घरों में आगजनी हुई थी, उसमें यही चश्मदीद था।
डीएसपी की हत्या के लिये सिर्फ एक गोपनीय रिपोर्ट जिम्मेदार है ऐसा नहीं कहा जा सकता। लेकिन ये दस्तखत और हिस्ट्रीशीट इस बात का सबूत है कि डीएसपी जियाउल हक कुंडा में रहकर भी राजा की मर्जी से नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से काम कर रहे थे। ऐसे में एक अहम सवाल और उठता है कि आखिर आठ लोगों के साथ गांव पहुंचे जियाउल हक ही अकेले भीड़ का शिकार क्यों बने। गांव में चारों तरफ से घिरने के बाद भी इंस्पेक्टर, थाना प्रभारी और डीएसपी का गनर कैसे बच गया।
तमाम सियासत के बीच सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। जल्द ही राजा भैया से पूछताछ भी हो सकती है। गोपनीय रिपोर्ट और उसका DSP की हत्या से कनेक्शन इस जांच की अहम कड़ी साबित हो सकती है।
( IBN7 पर शलभ मणि त्रिपाठी की रिपोर्ट से साभार)