फर्रुखाबाद परिक्रमा- हिम्मत हो तो मोदी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाओ, प्रधानमंत्री तो बन ही जायेंगे

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

निश्चय ही गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने शानदार इतिहास रचा है। मोदी लोकप्रियता की उत्ताल तरंगों पर तैर रहे हैं। अच्छी बात है। मौका है, दस्तूर भी है। मीडिया की राजनैतिक विश्लेषकों की अपनी अपनी व्याख्यायें हैं। उन्हें अपने अपने सोंच के हिसाब से गृहण करने वाले हैं। यहां तक सब कुछ ठीक है। देश के किसी भी मुख्यमंत्री ने आज तक इतनी बड़ी उपलब्धि इतने शानदार तरीके से शायद ही पायी हो। परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में मोदी की इस शानदार जीत के जो मतलब निकाले जा रहे हैं। वह सबके सब अति उत्साह के ज्वार भाटे में डूबे हुए हैं। यह जोश के साथ होश की अनिवार्यता को नहीं स्वीकारते। परन्तु यह रातों रात एक सौ बाइस करोड़ की जनसंख्या वाले विविधता पूर्ण देश में स्वीकार्य नहीं बना सकता।

याद कीजिए आपात काल के दिन। मीडिया तब आज की तरह ताकतवर और विवादित नहीं था। अपने निहित स्वार्थों के कारण कहीं कहीं कुछ भयभीत जरूर था। इन्दिरा इज इण्डिया, इण्डिया इज इंदिरा कहने वाले ढोपरशंखी कांग्रेस अध्यक्ष और कुंभ के अवसर पर इंदिरा गांधी को शानदार जीत का आशीर्वाद देने वाले चारों शंकराचार्य भी थे। परन्तु यह सब भी मिलकर बंगला देश के उद्भव के समय पंडित अटल विहारी बाजपेयी द्वारा दुर्गा के रूप में स्वीकार की गई इंदिरागांधी को पतन और शर्मनाक हार से बचा नहीं सके।

याद कीजिए बाबरी विध्वंस के बाद गुजरात से बहुत बड़े प्रदेश और देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और लाखों की भीड़ में रामलला से टेलीफोन पर बात करने वाले कल्याण सिंह। महा नायक से आज महा याचक के रूप में पुर्नवापसी के लिए भाजपा के दरबाजे पर खड़े हैं। हमारा उद्वेश्य नरेन्द्र मोदी की शानदार जीत के महत्व को कम करना नहीं है। परन्तु लोकतंत्र की गरिमा और मर्यादा को कम करने की षडयंत्र पूर्ण कोशिशों को देखना समझना जरूरी है।

लोकसभा चुनाव जब होंगे तब होंगे। देश नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकारेगा तब स्वीकारेगा। यह किसी के हाथ में नहीं है। यह हिन्दुस्तान के पचहत्तर करोड़ से अधिक मतदाताओं के हाथ में है। परन्तु हिमाचल (छोटा प्रदेश) की हार को भूलकर गुजरात (मझोले प्रदेश) की जीत पर बेबजह बेमतलब इतराने वाले भाजपाइयों होश में रहो। जोश छोड़ो या बनाए रखो यह तुम्हारी मर्जी।

फिलहाल आपके यहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की शानदार कुर्सी वर्तमान अध्यक्ष के वावादित क्रिया कलापों की बजह से खाली है। आपने स्वयं ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को आगे खिसका दिया है। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बना सकना बड़े से बड़े भाजपाई के हाथ में नहीं है। परन्तु लोकसभा चुनाव से पूर्व नरेन्द्र मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष सर्व सम्मति से बना देना सभी भाजपाइयों के हाथ में है। भाजपा के बहिन-भाइयों! यदि आप इतनी हिम्मत दिखा सके, तब सच मानो कांग्रेस चाहे या न चाहे, लोकसभा का चुनाव मोदी बनाम राहुलगांधी स्वयं से स्वयं हो जाएगा। क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नरेन्द्र मोदी स्वतः ही प्रधानमंत्री के सशक्त सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार माने जायेंगे। त्याग की मूर्ति कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद को अस्वीकार कर चुकी हैं। नतीजतन लोकसभा चुनाव में मोदी के राहुल बाबा और कांग्रेसियों के प्रिय नेता उत्तर प्रदेश के ऐंग्री यंग मैन और गुजरात के गांधी भक्त राहुल गांधी ही कांग्रेस के तारनहार होंगे।

भाई बहिनों!

भाजपा के लोगों भाई बहनों! इस बिन मांगी सलाह पर विचार करना। वक्त बार बार नहीं आता। नया साल और लोकसभा का चुनाव दोनो दस्तक दे रहे हैं। मोदी नहीं यह आंधी है। गुजरात का ही नहीं देश का नया गांधी है। आप अपनी मर्जी से श्यामा प्रसाद मुकर्जी दीन दयाल उपाध्याय, पंडित अटल बिहारी बाजपेयी या कोई अन्य राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय नाम ले सकते हैं। नरेन्द्र मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर उनके प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त करो। यह कोई जोर जबर्दस्ती नहीं है। आपकी पार्टी आपका नेता आपकी मर्जी। एक बात गुजरात में मोदी की ऐतिहासिक शानदार जीत पर सामने आई। बिना लाग लपेट के आपको अपना समझ कर कह दी। बांकी आप जानें और आपका काम जाने।

इतना और समझ लेना। केवल गुजरात के मुख्य मंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी जी मानेंगे नहीं। वह बात बार बार मनमोहन सिंह, सोनिया और राहुल बाबा सहित राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भों की ही करेंगे। क्योंकि अब गुजरात में उनके लिए कुछ करने को है ही नहीं। छह करोड़ गुजरातियों ने दिशा और दशा बदलने की अपील करने वाली कांग्रेस को बुरी तरह से ठुकरा दिया है। इसलिए भाजपाइयों का यह पावन पवित्र कर्तव्य है। देश की दिशा और दशा को बदलने के लिए पूरी धूमधाम से नरेन्द्र मोदी की पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर राहुल बाबा के मुकाबले उतारें।

दिल्ली में गेंग रेप

इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया है- सब के मन में जबर्दस्त आक्रोष है। हम सभ्य और सुसंस्कृत होने, प्रगतिशील होने का दम भरते हैं। परन्तु इस प्रकार की घटनायें यह साबित करतीं हैं कि हम कबीलाई जंगली और बहशी तौर तरीकों को छोड़ नहीं पाये हैं। बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इससे शायद ही किसी को आपत्ति हो। परन्तु सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर उस देश में यह सब हो क्यों रहा है! जहां नारियों की पूजा होती है। जन्म देने वाली मां और जन्मभूमि को स्वर्ग से श्रेष्ठ माना गया है। इसका कारण कमोवेश सबको मालूम है। परन्तु पिछड़ेपन का संकीर्ण विचारधारा का होने का आरोप चस्पा होने के डर से खुलकर इस पर कुछ कहने से लोग डरते हैं।

अगर ऐसा न होता तब फिर राजा भैया जैसे प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री इस प्रकार का ओछा वयान नहीं देते। अपने सामंती चरित्र के चलते उन्होंने इस प्रकार की घटनाओं को सामान्य और पूरे प्रदेश में रोज होते रहने वाला बताया। साथ ही दिल्ली में हुई स दुस्साहसिक घिनौनी हरकत का विरोध करने वालों की टीवी पर दिखने और सस्ती लोकपिय्रता अर्जित करने की कोशिश बताया। इससे अधिक घृणित और निकृष्ट बात क्या हो सकती है। तब फिर बात सबसे पहले इन लोगों से शुरू करो जो इस प्रकार की निकृष्ट और निंदनीय घटनाओं पर भी आश्चर्य जनक ढंग से बेशर्मी से भरी बातें करते हैं। इस घटना ने हमारे देश में फैलने वाली चिनगारी को शोला बनाकर क्रांति परिवर्तन सुधार की ज्वाला बना दिया है। देश की आधी आबादी को हमने यदि भयभीत असुरक्षित बने रहने दिया। तब फिर हम बातें चाहें जितनी बड़ी करें, न घर के रहेंगे न घाट के।

राष्ट्रपति भवन से लेकर दिल्ली और देश के कोने कोने में फैल गया यह आक्रोश वर्षों से गली कूंचों बाजारों, ट्रेनों, बसों, कार्यस्थलों आदि में हमारी आपकी सबके घरों की महिलाओं लड़कियों के साथ होने वाले उस शोषण दुर्व्यवहार और छींटाकसी बदतमीजियों उद्दडताओं का कुपरिणाम है। जिसे समाप्त करने का विचार किसी के मन में आता ही नहीं। आता भी है तब फिर प्रतिरोध की हिम्मत हममें नहीं है। सब कुछ हमारी नजरों के सामने होता रहता है लेकिन हम प्रतिरोध प्रतिकार की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते।

इस घटना ने देश को झकझोर दिया है। सरकार शासन प्रशासन नेता क्या करते हैं क्या करेंगे। यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन तब तक हमें शांत होकर नहीं बैठना है। हमें अपने आपको एक अच्छे और जिम्मेदार शहरी के रूप में समाज में रहना होगा। अन्याय, अत्याचार, ज्यादती आदि का साहस के साथ प्रतिकार और विरोध की स्वाभाविक आदत डालनी होगी। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से कम जिम्मेदार और दोषी नहीं होता। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-

अनुज वधू भगिनी सुत नारी- सुन सठ यह कन्या समचारी,
इनैहिं कुदृष्टि बिलोकै जोही, ताहि वधे कछु पाप न होई।

और अंत में………. घर में ही लाग लग रही घर के चिराग से!

जिलाधिकारी जी छुट्टी से लौटते नए साल में सावधान हो जाइए। सामान्यतः जिले में लोग आपको ठीक ठाक और ईमानदार मानते हैं। परन्तु आपके निजी सचिवालय के कुछ गुरुघंटाल लोगों ने आपको कथित रूप से बेईमान सिद्ध करने का अभियान अपने निहित स्वार्थों के लिए छेड़ रखा है। इनमें वह लोग भी शामिल हैं जिनकी सेवा निवृत्ति में अधिक समय नहीं बचा है।

अपने आवंटित कार्य के अतिरिक्त आपके आंख और कान बन गए इन सिद्ध पुरुषों ने पूर्व में कई जिलाधिकारियों और वरिष्ठ अधिकारियों की लुटिया डुबोई है। इनका स्थानांतरण नहीं होता केवल सीट बदलती है। इनमें से कुछ तो इतने गुरु घंटाल हैं कि इन्हें अगर लहरें गिनने तक का काम सौंप दिया जाए। यह उसमें भी अपना खेल खेलने का रास्ता निकाल लेंगे।

अपने निहित स्वार्थों के लिए ही यह लोग जब तब प्रभावी नेताओं और गर्जमंद लोगों के बीच यह अफवाह भी फैलाने से नहीं चूकते कि चुनिंदा मामलों में साहब डायरेक्ट नहीं इन डायरेक्ट खेल बना लेते हैं। कुछ अधिकारी भी अपने को सुरक्षित रख कर यह खेल इन्हीं गुरु घंटालों की मंत्रणा मार्गदर्शन में खेलते हैं। इन दिनों प्रमुख रूप से ऐसे दो बड़े खेलों की चर्चा यही गुरुघंटाल अपने अपने स्टाइल में कह रहे हैं। एक है मन्नीगंज लिंजीगंज मिलावटी तेल का मामला। बताते हैं खेल हो गया। किसी का भी भारी शोर शराबे के बाद भी कुछ नहीं हुआ। सब अपने अपने तरीके से तीरथ कर आए और प्रसाद पा गए।

दूसरा मामला वर्षों पुराना है। पूर्णतः नियम और विधि विरुद्व है। काफी कोशिशों के बाद मामला पट नहीं पाया। अब जिनके ऊपर कार्यवाही होनी चाहिए उनका कुछ नहीं बिगड़ा। परन्तु लगभग चार दर्जन कर्मचारियों पर गाज इस लिए गिर गयी क्योंकि गुरुघंटाल द्वारा कथित रूप से साहब बहादुर का नाम घसीटने पर भी वह कार्य नहीं हो पाया, जिसे श्रीमान जी संपादित करना चाहते हैं। इस प्रकरण में कब कब कितना खेल हुआ है। इसे जानने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। केवल सम्बंधित पत्रावलियों का मूवमेंट ही देख लीजिए। तब फिर सारा खेल दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। बिना कसूर मुअत्तिल कर्मचारियों और उनके परिवारीजनों को फांका कशी पर मजबूर कर देना और वास्तविक दोषियों को छुट्टा छोड़ देना कहां का न्याय है।

चलते चलते

पता नहीं जिला बार एसोसिएशन अपनी फजीहत कराने पर क्यों आमादा है। अनेक बार की घोषणाओं के बाद आप अपने चुनाव तो समय से करा नहीं पाए। परन्तु बाहर जाहां कहीं चुनाव हो वहां बेमतलब अपनी नाक जरूर घुसेड़ देते हैं। विधानसभा, नगर पालिका चुनाव में प्रत्याशियों को समर्थन देकर अपनी और अपने प्रत्याशियों की फजीहत के बाद बढ़पुर ब्लाक के प्रमुख पद के लिए 4 जनवरी को होने जा रहे उप चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी को समर्थन देने की आनन फानन में बिना बैठक बुलाए घोषणा कर दी गई है। नतीजा सब जानते हैं ढाक के तीन पात से अधिक नहीं निकलेगा। परन्तु हम क्या करें हमें कार्य बहिष्कार और चुनाव में मनमाने तरीके से इसे उसे समर्थन देने की घोषणा आनन फानन में कर देने के अलावा कुछ आता ही नहीं। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट