यूपी में अनिवार्य शिक्षा- न किताबे, न बस्ता, न मिड डे मील

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फर्रुखाबाद: 40 दिन की गर्मियो की छुट्टी ख़त्म होते होते नौनिहालों के भविष्य के लिए केंद्र से लेकर राज्यों तक कई नियम बदल गए| अनिवार्य शिक्षा अधिनियम लागू हो गया, मिड डे मील पर निगाह रखने के लिए कंप्यूटर प्रणाली का प्रयोग कर मोबाइल पर सूचना लेने का तंत्र विकसित हो गया| शिक्षको के वेतनमान में विसंगति भी दूर हो गयी और सरकार ने सत्र शुरू होने से पहले ही जरूरत की सभी चीजे मुहैया कराने के लिए केंद्र से लेकर राज्य तक के सरकारी खजाने खोल दिए गए| हाँ कुछ नहीं बदला तो नौकरशाहों के काम का जज्बा, मास्टर साहब का स्कूल से गायब होना और कागजो में झूठी सूचनाएँ दर्ज करना| तभी तो सत्र के पहले दिन 1 जुलाई को प्रदेश के परिषदीय सरकारी स्कूलों में बच्चे बिना किताब के गए और भूखे लौट आये|

पहले ही दिन धडाम हो गया सर्व शिक्षा अभियान का नारा- सब पढ़े सब बढ़े

जनपद में प्रभारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जगरूप संखवार ने बताया कि उन्होंने सत्र के पहले दिन 8 स्कूलों का दौरा किया जिसमे केवल 1 स्कूल में मिड डे मील बनता मिला| खाने की गुणवत्ता की तारीफ किये बिना नहीं रह सके| बच्चों को मिलने वाली मुफ्त किताबों के बारे में बताया कि अभी किताबो का सत्यापन होना बाकी है 4 जुलाई को होगा|

एक अफसर के मुख्यालय पर न होने से बच्चे इस हफ्ते बिना किताब के पढ़ेंगे

यह भी यूपी सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था का एक नमूना है, छापाखाना से आने वाली किताबो की गुणवत्ता और अन्य बिन्दुओ पर नियंत्रण रखने के लिए जिला स्तर पर एक प्रशासनिक कमेटी किताबो का सत्यापन करती है उसके बाद वो बच्चो को पढ़ने के लिए स्कूल में भेजी जाती है| यहाँ कमेटी के एक अफसर आज मुख्यालय पर नहीं थे लिहाजा सत्यापन नहीं हुआ और 4 जुलाई को नयी तिथि लगा दी गयी है| अगर उस दिन सब कुछ ठीक ठाक रहा तो सत्यापन हो सकता है| वैसे किताबों के प्रभारी बेसिक शिक्षा कार्यालय के बड़े बाबू पालीवाल ने स्पष्ट किया कि अभी तक 25 प्रतिशत से ज्यादा किताबे आ गयी है, मगर सत्यापन आज एसडीएम के न होने की वजह से न हो सका| यानि सत्र शुरू हो गया और किताबे भी अभी केवल नाम मात्र को आ पायी|

यहाँ सत्र के अंत तक किताबे आती है और कबाड़ी की दुकानों में बिकने की परम्परा है

बच्चो के बस्ते में किताबे सत्र के अंत तक पूरी नहीं हो पाती है, कुछ सत्र की आखिरी परीक्षा तक आती है ऐसी स्थिति में उनका वितरण कम कबाड़ी की गोदामों में पहुचना लाजिमी है| पिछले वर्ष कक्षा 3,4,5 के लिए वर्क बुक सत्र की आखिरी परीक्षा के एक सप्ताह पहले आई थी जो बच्चो को नहीं मिल पायी, संभव है इस साल उनका वितरण हो और भौतिक रूप में उन्हें न मंगाना पड़े और कागजो में ही नए सत्र की वर्क बुक का भुगतान हो जाये| वर्ष 2006-07 में एक ब्लाक में कबाड़ी में बिकते हुए लाखो किताबे पकड़ कर मुकदमा भी लिखाने का उदहारण है इस जिले में|

प्रधान के खातो में प्रयाप्त मिड डे मील की कन्वर्जन कास्ट है, केंद्र सरकार ने खाद्यान पहले ही भिजवा दिया है हाँ शर्म और हया प्रधानो और ग्राम सचिवो को साथ में भेज दी होती तो शायद मिड डे डे मील के चूल्हे जल जाते| बच्चे स्कूल गए बिना पढ़े, बिना खाए लौट आये|
सर्व शिक्षा अभियान का नारा यूपी के लिए हो गया- कम पढ़े कम बढ़े

खैर अनिवार्य शिक्षा का पहला दिन यूपी में धडाम हो गया|