फर्रुखाबाद परिक्रमा – दो अक्टूबर से एक नवम्बर – हीरो हो गया जीरो!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

दृश्य नंबर एक
लोहाई रोड पर भारतीय महाविद्यालय। दो अक्टूबर गांधी जयंती,भजन संध्या। अच्छी अच्छी लंबी लंबी बातें। मंत्री पति सपत्नीक विनम्रता शालीनता की साकार प्रतिमा बने लोगों के स्वागत में बिछे जा रहे थे। चमचे, दरबारी, प्रबंधक प्रबंध में कम गांधीवादी भजन प्रेमी शांतिदूत, सत्य के साधक, अंहिसा के पुजारी, मंत्री पति पत्नी की नजरों में अपने नंवर बढ़वाने के लिए अधिक प्रयत्नशील थे। वैष्णवजन तो तेने कहिए पीर पराई जाने रे- हम लाये हैं तूफान से कस्ती निकाल के। इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के। बड़े अनुरोध के बाद कुछ लजाते कुछ शर्माते मंत्री जी कुछ कहने को तैयार हुए- पूज्य राष्ट्रपिता महात्मागांधी के सत्य अहिंसा सादगी और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर हमें अपने आपको अपने समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाना है। बड़े अनुरोध पर मंत्री जी ने स्वयं भी भजन गाया- रघुपति राघव राजा राम, पतीत पावन सीता राम। ईश्वर अल्लाह एकै नाम। सब को शुभ मति दे भगवान। तालियों की जबर्दस्त गड़गड़ाहट। सब का दिल जीत कर बुजुर्गों को सम्मानित कर मंत्री पति पत्नी बहुत बड़ी जंग जीत लेने के अंदाज में मुस्कराते हाथ हिलाते चले गए।

दृश्य नंबर दो
दिल्ली में अपने आवास पर मंत्री पति पत्नी और हर हाल में साथ देने वाले कट्टर समर्थक अनुयायी और मीडिया की जबर्दस्त चकाचौंध। देश और दुनिया के करोड़ों लोगों ने शांतिप्रिय शालीन शिष्ट मंत्री को दूर दर्शन पर दहाड़ते हुए सुना- वह जायें फर्रुखाबाद- वह आये फर्रुखाबाद लेकिन जाने के बाद लौट कर भी आयें फर्रुखाबाद से। फिल्म जगत का बड़े से बड़ा अदाकार भी हंसते मुस्कराते यह चुनौती चेतावनी धमकी भरे डायलाग दूर दर्शन के सामने पूरी दुनिया के सामने वयान करने की बहादुरी और हिमाकत नहीं कर सकता। परन्तु अपने शालीन शिष्ट मंत्री ने अपने समर्थकों की जबर्दस्त तालियों के बीच यह सब कहा। वह यहीं पर नहीं रुके। गुस्से में लाल चेहरा किए बार बार हाथ उठाकर हाथ को घुटनों पर पटक पटक कर मंत्री जी कह रहे थे। हम यह करेंगे। हम यह करेंगे जिससे लोग जान लें समझ लें। यह मुल्क हम सबका नहीं है। हमारा है। हमारा है। अब इस सब पर जोरदार तालियां बजनी ही थीं। खूब बजीं। मंत्री पति पत्नी ने खुद ही अपनी पीठ ठोंकने के अंदाज में बड़ी ही रेशमी नजरों से एक दूसरे को देखा। मानो वो खुश ही नहीं। खूब खुश हुआ।

एक पुराने समर्थक को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। अपने हम उम्र साथी के साथ मंत्री जी के घर से बाहर यह कहता हुआ आ गया- क्रोध कहीं भी मत करो- घर पर तो बिल्कुल ही नहीं। परन्तु उस नक्कार खाने में तूती की आवाज कौन सुनता।

दृश्य नंबर 3
2 अक्टूबर गांधी जयंती के ठीक एक माह बाद। एक नवम्बर 2012। एटा, अलीगंज, कायमगंज, पितौरा, दमदमा, फैजबाग, हथियापुर, गुरगांवदेवी मंदिर, भीकमपुरा, टाउनहाल, किराना बाजार, चौक, नेहरू रोड, घुमना, लाल सराय, लाल दरबाजा, स्वराज्य कुटीर, बढ़पुर हिन्दुस्तान होटल, आवास विकास तिराहा, लोहिया मूर्ति और बाद में लोहिया अस्पताल के पीछे का विशाल मैदान। अनेक राष्ट्रीय, प्रांतीय, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, नेताओं की विशाल जनसभाओं का गवाह। यहा पर आने वाली हर सड़क पर प्रातः काल इक्का दुक्का सामान्य विकलांगों का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ। वह दर्जनों पुतलों को जलाने, धममियों, चेतावनियों और मंत्री जी के लिए जान भी न्यौछावर कर देने के शहीदाना अंदाज के बाद भी इंडिया अगेंस्ट करप्शन (मंत्री जी के अनुसार चीटियों और गटर के कीड़ों) के नेताओं के आने तक रुका नहीं तो नहीं रुका। हर ओर जनसैलाब, हुंकार, जिंदाबाद, चेतावनी, चुनौती। गली गली शोर है मियां बीबी ………………..है।

एक नफासत पसंद ने ऐसे नारों पोस्टरों पर नाक भौं सिकोड़ते हुए अंग्रेजी में कुछ कहा। पास ही में खड़े दूसरे ने उसी अंदाज से जबाव में कहा। इस सबके लिए जिम्मेदार कौन है। जैसा वोओगे वैसा ही तो काटोगे। क्या जरूरत थी वह सब कहने की जो दूरदर्शन पर देश दुनिया के सामने कहा। एक आवाज उठाई। उसे नजरंदाज करते। आत्म चिंतन करते। अगर गलत होते तो स्वयं ही सुधार कर लेते। ध्यान रखो रुतबा मंत्री पद स्थायी नहीं है। अपने जमाने में आपसे कई गुना रुतवा जलवा रखने वाले मंत्रियों प्रधानमंत्रियों का नाम भी लोग नहीं जानते। परन्तु फकीरों साधुओं संतों, ईमानदार सादगी पसंद लोगों को आज भी लोग सर आंखों पर बिठाते हैं। परन्तु आप तो आप हैं। आप समय की दीवार पर लिखे को पहचानते ही नहीं पहिचानने की कोशिश ही नहीं करते। गोस्वामी जी ने सही ही कहा है-

जाहि विधाता दारुन दुख देही,
ताकी मति पहिले हरि लेही।

और यह तो हमने कई बार कहा है। आज फिर दोहराये देते हैं-

किसी को क्या पड़ी थी, तुझे नीचा दिखाने को,
तेरे आमाल ही काफी हैं तेरी हस्ती मिटाने को।

और अब केजरीवाल जी – बाल की खाल निकालने से पहले कुछ जबाव आप भी दीजिए

लगातार बीस वर्षों तक दिल्ली में ही वरिष्ठ अधिकारी आयकर विभाग में रहे अरविंद केजरीवाल की हिम्मत और हौसले की दाद देनी होगी। जब बड़े से बड़े तीस मार खां अपने गली मोहल्ले गांव के सभासद, प्रधान, कोटेदार से लेकर बड़े अधिकारियों नेताओं, जनप्रतिनिधियों के स्पष्ट घोटालों और भ्रष्टाचार के विरुद्व कुछ कहने की हिम्मत नहीं दिखा पाते। इस घुटन, कुंठा और खीज भरे माहौल में अरविंद केजरीवाल ने बड़े बड़े सूरमाओं को पलक झपकते ही आसमान से जमीन पर ला पटका। ऐसा लगता है कि सारा देश भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगा रहा है। इस सबके बीच अरविंद केजरीवाल लोक नायक जयप्रकाश नारायन और राजा नहीं फकीर हैं देश की तकदीर हैं जैसे राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की तर्ज पर नए तारनहार होकर सामने आए हैं।

अरविंद केजरीवाल ने डरे सहमे लोगों को प्रश्न पूंछने की आजादी और हिम्मत दी है। आवास विकास की जबर्दस्त रैली में जब उन्होंने प्रश्न पूंछने वाले कांग्रेसियों को मंच पर आकर प्रश्न पूछने का न्यौता दिया। तब किसी ने हिम्मत नहीं दिखाई। अपने आका को खुश करने के लिए जान तक देने और केजरीवाल का मुहं काला करने की बात करने वाले तक खामोश रहे। अंग्रेजों के विरुद्व सत्य और अहिंसा के बल पर संघर्ष करने वाली कांग्रेस के स्थानीय ध्वजाधारियों की यह कायरता आश्चर्यजनक है। बांकियों की बात ही छोड़िए। वह अपने गुनाहों के बोझ तले दबे अपराध बोध से ग्रस्त केवल जाति धर्म संप्रदाय के बल पर अपने वोट बैंक को बचाए रखने को ही अपना कर्तव्य मानते हैं। केजरीवाल सही कहते हैं। राजनीति के मैदान में सभी भ्रष्ट और हमाम में सभी नंगे हैं।

हम बात को पूरी ईमानदारी से आगे बढ़ाने की कोशिश करें। इससे पहले हम बता दें। हमने कभी यह दावा नहीं किया कि हम दूध के धुले हैं। नहीं हम मुहं में सोना डाले हैं। हम सब इंसान हैं। कमजोरियों और कमियों के पुतले हैं। हमसे गलतियां भी होती हैं। हम तब तक गलत नहीं हैं जब तक हम गलतियों, कमजोरियों और कमियों के सच्चे मन से दूर करने का प्रयास करें। साथ ही साथ अपने प्रयासों पर आकलन का कार्य स्वयं न लेकर जनता पर छोड़ दें।

महात्मा गांधी ने कहा था चोरी और घोटालों का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं वल्कि दीन हीन बनता है। हम क्या हैं। यह हमसे बेहतर कोई नहीं जानता। क्या कभी हमने अपने आप से कुछ भी पूछने की हिम्मत दिखाई है।

महात्मागांधी ने यह भी कहा था कि कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं होता। हर व्यक्ति में एक या एक से अधिक बुराइयां होती हैं। क्रोध, अहंकार, लालच, झूठ, फरेब, चरित्रहीनता, बड़ों के प्रति आदरभाव होना आदि ऐसी बुराइयां हैं जो हमारे अंदर के रावण की तरह हैं। हमें प्रयास करना चाहिए कि हम स्वयं अपनी कमियों को पहचानें। उन्हें दूर करने की पुरजोर कोशिश करें। तभी वास्तव में सत्य की असत्य पर जीत होगी।

केजरीवाल हमें भ्रष्टाचार से रूबरू करा रहे हैं। क्या एक अरब बाईस करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में कोई भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। जिस आम आदमी की टोपी लगाकर केजरीवाल मीडिया की तरंगों पर हिलोरें ले रहे हैं। वह आम आदमी भी भ्रष्ट है। क्या अन्ना हजारे भ्रष्ट हैं। निष्चय ही नहीं। फिर आपने उनका साथ क्यों छोड़ा। क्या संतोष हेगड़े भ्रष्ट हैं। क्या अपसे बड़ी अधिकारी रहीं किरणवेदी भ्रष्ट हैं। क्या जिस आयकर विभाग में आपने बीस वर्षों तक काम किया। उसमें कोई ईमानदार नहीं है। यदि है तब फिर आप उन ईमानदार आयकर कर्मियों का नाम उजागर क्यों नहीं करते। कम से कम अपनी आयकर अधिकारी पत्नी का नाम तो आपको लेना ही चाहिए। यदि कांग्रेस भाजपा, सपा, बसपा सहित सभी राष्ट्रीय क्षेत्रीय पार्टियों में सभी भ्रष्ट हैं। तब फिर आपके पास समाधान क्या है। विकल्प क्या है आपके पास। यह सारी राजनैतिक पार्टियां देश के कुल मतदाताओं के लगभग पचास प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें स्वयं अपना वोट भी न डालने वाले सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी से लेकर घंटों धूप में खड़े होकर वोट डालने वाले लोग भी हैं। यह भी आम आदमी हैं।

इस देश में खास आदमी वह हैं जो वोट नहीं डालते। इनकी संख्या भी कुल मतदाताओं की पचास प्रतिशत के लगभग है। जब तक अपने को खास आदमी समझने वाला आम आदमी बनकर निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान के लिए नहीं निकलेगा। तब तक सर से लेकर पैर तक जोर लगा लें। आम आदमी को नहीं जिता पायेंगे। आप भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं। बहुत अच्छी बात है। हर पार्टी हर जाति वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय क्षेत्र में अच्छी बात है। हर पार्टी हर जाति वर्ग धर्म सम्प्रदाय में अच्छे लोगों के साथ ही अच्छे ईमानदार लोगों के नाम उजागर क्यों नहीं करते। अब आप सरकारी सेवा में नहीं। सबसे पहले अपनी सेवा पुस्तिका सार्वजनिक करके शुरूआत करिए। हमें आप पर भरोसा है। अविश्वास रंचमात्र भी नहीं है। हर क्षेत्र के अच्छे और आदर्श लोगों के नाम भी हमें बताइए। जिससे देश का आम आदमी भ्रष्टाचार में डूबे लोगों का बहिष्कार करे। आप जैसे लोगों द्वारा बताए गए आदर्श लोगों का अनुशरण करें।

परन्तु आप हैं, आपकी टीम है। वह तो ऐसा लगता है कि न अच्छा देखती है न सुनती है और न कहती है। उच्च न्यायालय तक द्वारा दिए निर्णयों पर पुर्नविचार याचिकायें दायर होती हैं। आपके अपने आयकर विभाग तक में बाद निस्तारण की एक लम्बी प्रक्रिया है। प्रदेश सरकार द्वारा केन्द्र को भेजी गयी जांच रिपोर्ट के बाद यदि उसमें दुबारा जांच के आदेश दे दिए गए। तब फिर उसमें इतना अधीर होने की क्या आवश्यकता है। रिपोर्ट आ जाने दीजिए। एक ही प्रकरण में दो दो रिपोर्टें आने पर फजीहत किसकी होगी। प्रदेश सरकार की होगी। तब आपको मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव पर आरोप लगाने से कौन रोकता है। परन्तु आप में धैर्य नहीं है। आप जरूरत से ज्यादा अधीर हैं। सब कुछ जल्दी बहुत जल्दी अपनी शर्तों पर पा लेना चाहते हैं।

अरविंद जी! सत्ता के लिए स्वार्थ के साथ जुड़ोगे। तब फिर छोड़ेगा कोई आपको भी नहीं। इससे बचने का पक्का प्रयास करो। आपको केवल लोकतंत्र ने यह अधिकार दिया है कि आप लोगों के निष्पक्ष और निर्भीक होकर शत प्रतिशत मतदान के लिए प्रेरित करें। किसके विरुद्व कौन लड़ेगा। यह आम आदमी को ही यत करने हो। आपकी पहली भव्य विशाल रैली के बाद उसके स्थानीय आयोजक ही आप और आपके साथियों की नियत पर सवाल उठा रहे हैं। अब इन लोगों के लिए आपको क्या कहना है। इनके लिए आपके पास क्या संदेश है। हमारी बात का बुरा मत मानना। विचार करना और हमें यह बताने में जरा भी संकोच मत करना कि हममें और आपमें कौन कितना सही और कितना गलत है।

और अंत में …….
रसोई गैस का संकट- बढ़ेगी बिजली चोरी

बाजार में आओ- सब्सिडी की डुगडुगी बजाओ- सीधे सादे लोगों को बहलाओ फुसलाओ। लोगों को तरह तरह के सपने दिखा कर रसोई गैस का आदी बनाओ। जब लोग आदी हो जायें तब फिर सब्सिडी घटाने, हटाने का डर दिखाओ धमकाओ और फिर पूरी तरह से हटा दो। गैस कंपनियों अंबानियों का ठाठ बाट वैभव देख लो। कहीं से नहीं लगेगा कि यह काम घाटे में चल रहा है। कथित सुधारों की यह बानगी मात्र है। इसको लेकर इस समय पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। घर का बजट रसोई का बजट बिगड़ रहा है। महंगाई डायन मारे डाल रही है। मर जाओ दफन हो जाओ। बाजार बाजार वाले सब्सिडी वाले सुधार वाले रातों रात आम आदमी के अफसर मालिक नीति निर्धारक भाग्य विधाता हो गए। सामान्य व्यक्ति इन सबकी कठपुतली बन कर रह गया।

गैस सिलेंडर, गैस पर सब्सिडी, सब्सिडी पर गैस, छोटे सिलेण्डर, बड़े सिलेण्डर, गैस एजेंसियों के चतुर सुजान मालिक संचालक मैनेजर, दबंग, सेल्समैन, हाकर, और न जाने क्या-क्या। इन सबके बीच में घिरा खड़ा जागो ग्राहक जागो नाम का उपभोक्ता- क्या करे कैसे करे। एक सिलेंडर की जुगाड़ हो जाए। घर में इज्जत बची रहे। घर वाली पड़ोसियों को अपनी हेकड़ी जताने बताने के लिए कह सके। हमारे वो हैं ना अरे पप्पू के पापा। उनकी गैस की एजेंसी पर बहुत धाक है। हाकर की हथेली पर रखा गांधी जी, रिजर्व बैंक का परवाना नया खरा करारा नोट। शाम तक गैस सिलेण्डर घर पर। कौन करे झिक झिक। घंटों लगे लाइन में। पड़ोसन चुपचाप सुनती है। अपने श्रीमान जी के निकम्मेपन पर जार जार रोती हैं।

श्रीमान जी लौटे घर देर शाम। आते ही बोले काहे गैस गैस चिल्लाती हो। अक्ल से काम लो। गैस वाले सारे काम कटिया डालकर बिजली से करो। जमकर चोरी करो किसी का कोई डर नहीं है। तुम डाल डाल हम पात पात।

चलते चलते –

गुलामी की बीमार मानसिकता और सीडी का सच

हम बहुत बड़े राष्ट्रवादी हैं। सभ्यता संस्कृति तक अहंकार में डूबे हुए हैं। हमारे अपने देश प्रदेश में हमारे लिए कोई कुछ कहेगा। हम उसे हंसी में उड़ा देंगे। आरोपों की झड़ी लगा देंगे। परन्तु इंगलैंड अमेरिका का कोई सरकारी अधिकारी हमसे आकर मिल लेगा। तब हम बाग बाग हो जायेंगे। उस अधिकारी के प्रायोजित प्रशंसा के दो शब्द हम गले में हार की तरह पहन कर पूरी दुनिया में हर चैन लहर अखबार में घूम घूम कर दिखायेंगे। अगर चुनाव सर पर हो तब तो कहना ही क्या। मोदी उवाच ओम हाईकमिश्नराय नमः।

विचित्र संयोग है। जिस समय विदेश मंत्री के संसदीय क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम सलमान खुर्शीद की फजीहत करने पर तुली हुई थी। ठीक नये विदेश मंत्री के स्वागत में बिछे जा रहे थे। अमेरिका सारे विरोधाभासों के बाद भी सुपर पावर क्यों बना हुआ है। उसे हर जगह हर क्षेत्र में हर देश में सदैव मुलायम चारे की तलाश रहती है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के सम्बंध में उसकी कारगुजारियों को कौन नहीं जानता। विश्वास करना चाहिए कि हमारे नए विदेशमंत्री राष्ट्रहित को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।

केजरीवाल की यहां हुई रैली से पहिले लक्ष्मण सिंह और लुईस खुर्शीद के बीच हुए वार्तालाप की प्रसारित सीडी के विषय में हमें कुछ नहीं कहना। इसके सही या गलत होने के विषय में भी हमको कुछ नहीं कहना। परन्तु नेता अपनी आपसी बातचीत में भी किस सीमा तक गिर सकते हैं। यह देख कर आश्चर्य होता है। आज बस इतना ही ।     जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट