सोमवाती अमास्या को गंगा तट पर हजारों श्रद्धालु उमड़ने की उम्मीद, प्रशासन बेखबर

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फर्रुखाबाद : सोमवार को आश्विन मास कृष्ण पक्ष समाप्त हो रहा है। इसके साथ ही अमावस्या की तैयारियां घटियाघाट गंगा तट पर जोरों से चल रहीं हैं। हर वर्ष की तरह घटियाघाट तट पर भारी भीड़ होने की उम्मीद के चलते अभी से ही ठिलिया दुकानदारों ने अपनी दुकानें लगानी शुरू कर दी है। लेकिन प्रशासन की तरफ से इसके लिए कोई भी व्यवस्था नहीं की गयी है। जबकि पिछले माह हुई अमावस्या स्नान पर भारी जाम की स्थिति से प्रशासन को जूझना पड़ा था। जिसको सीओ ने भारी मसक्कत के बाद खुलवा पाया था। लेकिन सोमवार को दोबारा गंगा तट घटियाघाट पर भारी भीड़ होने जा रही है लेकिन प्रशासन अभी बेखबर है।प्रशासन द्वारा न ही अतिरिक्त पुलिस बल लगाया गया है व न ही डिवाइडर आदि की व्यवस्था की गयी है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन अमावस्या महीने का तीसवां दिन होता है। इस दिन यदि सोमवार, गुरुवार या मंगलवार होता है तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। जिसको देखते हुए हिन्दू श्रद्धालु गंगा तट पर भारी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं।

  • जिस तिथि में चन्द्रमा और सूर्य साथ रहते हैं, वही अमावास्या तिथि है। इसे अमावसी / अमावस्या भी कहा जाता है।
  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • अमावास्या को ‘सिनीवाली’ या ‘दर्श’ भी कहा जाता है।
  • अमावास्या तीसवीं तिथि होती है।
  • कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को कृष्ण पक्ष प्रारम्भ होता है तथा अमावास्या को समाप्त होता है।
  • अमावास्या पर सूर्य और चन्द्रमा का अन्तर शून्य हो जाता है।
  • अमावास्या के स्वामी ‘पितर’ होते हैं।
  • अमावास्या में चन्द्रमा की सोलहवीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है।
  • चन्द्रमा का वास अमावास्या के दिन औषधियों में रहता है, अतः जल और औषधियों में प्रविष्ट उस अमृत का ग्रहण गाय-बैल-भैंस आदि पशु चारे एवं पानी के द्वारा करते हैं, जिससे वहीं अमृत हमें दूध, घी आदि के रूप में प्राप्त होता है और उसी घृत की आहुति ऋषिगण यज्ञ के माध्यम से पुनः चन्द्रादि देवताओ तक पहुँचाते हैं। वही अमृत फिर बढ़कर पूर्णिमा को चरम सीमा पर पहुँचता है; जैसा कि कथन है –

कला षोडशिका या तु अपः प्रविशते सदा।
अमायां तु सदा सोमः औषधिः प्रतिपद्यते।।
तमोषधिगतं गावः पिबन्त्यम्बुगतं च यत्।
तत्क्षीरममृतं भुत्वा मन्त्रपूतं द्विजातिभिः।
हुतमग्निषु यज्ञेशु पुनराप्यायते शशी।।
दिने दिने कला वृद्धिः पौर्णमास्यां तु पूर्यते।।

  • अमावास्या में वनस्पतियों में सोम का वास होने से उस दिन बैलों को हल में जोतने का पूर्णतः निषेध ‘स्मृतियों’ में किया गया है। उस दिन बैलों को पूरे दिन चरने के लिये छोड़ देना चाहिये, जिससे चारे के द्वारा अमृत कला का पान कर वे अपने शरीर को पुष्ट कर कृषि कार्य में अधिक सहयोग कर सकें।
  • अमावास्या को क्रय-विक्रय तथा समस्त शुभ कर्मों का निषेध है।
  • अमावास्या की दिशा ईशान है।
  • अमावास्या को शिववास गौरी के सान्निधय में होने से उस दिन शिवपूजन किया जा सकता है।
  • विशेष – अमावास्या तिथि केतु ग्रह की जन्म तिथि है।
  • अमावास्या के नामकरण हेतु मत्स्य पुराण के 14 वें अध्याय में एक रूपक कथा आती है, जिसके अनुसार प्राचीन काल में पितरों ने ‘आच्छोद’ नामक एक सरोवर का निर्माण किया था। इन देव पितरों की एक मानसी कन्या थी, जिसका नाम था- अच्छोदा। अच्छोदा ने एक बार एक सहस्त्र दिव्य वर्षों तक कठिन तप किया। अतः उसे वर देने के लिये पितरगण पधारे। उनमें से एक अतिशय सुन्दर ‘अमावसु’ नामक पितर को देखकर ‘अच्छोदा’ उन पर अनुरक्त हो गई और अमावसु से प्रणय याचना करने लगी। किन्तु अमावसु इसके लिये तैयार नहीं हुये। अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों को अतिशय प्रिय हुई। उस दिन कृष्ण पक्ष की पंचदशी तिथि थी, जो कि तभी से ‘अमावसु’ के नाम पर ‘अमावस्या’ कहलाने लगी।

तिथामवसुर्यस्यामिच्छां चक्रे न तां प्रति।
धैर्येण तस्य सा लोकैः अमावस्येति विश्रुता।
पितृणां वल्लभा मस्मात्तस्यामक्षयकारकम्।।

  • इस तिथि में पितरों के उद्देश्य से किया गया दानादि अक्षय फलदायक होता है।
  • अमावास्या पंचांग के अनुसार माह की 30वीं तिथि है।
  • अमावास्या कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है।
  • इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता।
  • इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्त्व हैं।
  • हर माह की अमावास्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता हैं।
  • वर्षक्रियाकौमुदी (9-10) में महाभारत एवं पुराणों से उद्धरण हैं[1]
  • सोमवार, मंगलवार या बृहस्पतिवार के दिन तथा अनुराधा, विशाखा एवं स्वाति नक्षत्रों में पड़ने वाली अमावास्या विशेष रूप से पवित्र मानी जाती है।[2]