ये कैसा लोकतंत्र?

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दुनिया में लोकतंत्र का क्या मतलब होता है ये कम से कम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और पिछड़े इलाको की जनता आजादी के 60 साल बाद भी नहीं जानती| उन्हें ये तो मालूम है कि वे अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो गए मगर वे अब राजतन्त्र में नहीं लोकतंत्र में जी रहे है इसका ठीक से आभास अभी तक नहीं हो पाया|

जिस देश का नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनधि से मिल कर अपनी बात न कह सके, जिस देश के पीड़ित को उसकी आवाज उठाने पर लाठी की मार मिलती हो क्या उसे लोकतंत्र का नागरिक कहना ठीक होगा| उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन जिस गरीब और दलित जनता के आधार पर बैठी उसी गरीब दलित और पीड़ित जनता और मुख्यमंत्री के बीच एक नयी दीवार कड़ी करवा दी| अपने संगठन की दीवार| बिलकुल राजतन्त्र की तरह बिना बसपा संगठन की मर्जी के मुख्यमंत्री से नहीं मिल जनता मुख्यमंत्री मायावती से| मायावती प्रदेश के फर्राटा दौरे पर निकली, अलीगढ में एक इंजीनियर जिसकी हत्या कर दी गयी उसकी बेटी अपनी कुछ व्यथा मायावती से कहना चाहती थी| मगर उसकी मुलाकात सहज करने की जगह बड़ी असहज हो गयी, सरकारी लोगो ने माया के सामने ही पीड़ित महिला धक्का मुक्की कर दी| अलीगढ में जो कुछ देखने को मिला वो किसी लोकतान्त्रिक देश में सबसे बदनुमा दाग से कम नहीं था| कुछ महिलाएं जो मुख्यमंत्री से मिलना चाह रही थी उन्हें सरकारी अमला जिस तरह बदतमीजी से धकिया रहा था बेहद ही शर्मनाक था| और ऊपर से जनता के टैक्स से अपना घर चलाने वाले नौकरशाह प्रदेश के प्रमुख सचिव शशांक शेखर का मीडिया को दिया गया बयान कि ये महिलाएं मायावती से जिस तरह से मिलना चाह रही थी वो ठीक नहीं था इसलिए इन्हें गड़बड़ी फैलाने के आरोप में अभियोग पंजीकृत करा दिया गया|

शशांक बताये या फिर राजाज्ञा जारी करे कि उत्तर प्रदेश का आम आदमी मुख्यमंत्री से कैसे मिल सकता है और कब मिल सकता है| क्या कभी कोई ऐसा आदेश जारी हुआ है| क्या प्रदेश के सूचना विभाग ने ऐसा जनता को बताया है शायद नहीं| जब मुलाकात ईमानदारी से न हो सके तो मिलने के लिए गाडी रोकना लोकतान्त्रिक तरीका है ये शायद लोकतंत्र के नौकरशाहों को ठीक से पता नहीं है|

या फिर यू कहे कि सत्ता और कुर्सी की अंधी दौड़ में सब कुछ करने को तैयार रहते है ये नौकरशाह| कभी झूठा केक खाते है तो कभी चरण वंदना करते दिखाई पड़ते है| समझ में नहीं आता कि ये लोकतंत्र के नौकरशाह है या फिर किसी व्यक्ति विशेष के?

इतिहास की किताबो में पड़ा था कि जब राजतन्त्र था तब भी राजा जनता के सुख दुःख जानने के लिए भेष बदल कर निकला करते थे ताकि वो हकीकत जान सके| मगर लोकतंत्र में जनता की समस्या सुनने के लिए निकलना तो दूर कोई अपनी बात कहने आ जाये तो लाठी मिले बेहद ही शर्मनाक है| लोकतंत्र में ये तरीका बेहद की खतरनाक है, राजनीती और सत्ता दोनों के लिए| इतिहास गवाह है जिस जिस राजा ने चाटुकारों से घिर कर सिर्फ तारीफ सुनना पसंद करने में प्राथमिकता दी उसकी सत्ता बहुत अधिक दिनों तक नहीं चली| चाटुकार सिर्फ और सिर्फ वो बात राजा को बताना पसंद करते है जो राजा सुनना पसंद करता हो| और ऐसे में प्रजा का शोषण उसके चाटुकार चंडाल चौकड़ी करने लगती है नतीजा जनता में आक्रोश भड़क उठता है| ऐसे में लोकतंत्र में पांच साल के लिए मिली गद्दी दुबारा मिलने के लिए दूर की कौड़ी हो सकती है| मायावती को जमीनी हकीकत जानने के लिए जमीन पर उतरना होगा, जनता से मिलना होगा वर्ना ऐसा न हो कि उसे उसका संगठन ही ले डूबे और माया को पता ही न चल पाए कि हुआ क्या था|