फर्रुखाबाद परिक्रमा -चाचा भतीजों के सम्मेलन में जातीय उन्माद का संगम

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

बताओ! कौन सही है और कौन गलत है!

मंदिर मार्ग मंडी स्थल के बाप बेटा सम्मेलन के बाद कायमगंज में चाचा भतीजों का सम्मेलन हुआ। बिना कुछ करे धरे मंच पर दहाड़ने का मौका ढूंढने वालों को छोड़ दिया जाए। तब फिर यह सम्मेलन जातीय उन्माद के माध्यम से सब कुछ प्राप्त कर लेने वालों का संगम था। मियां झान झरोखे ने कायमगंज से लौटकर चौक की पटिया पर बैठकर कुछ इस प्रकार अपने उदगार व्यक्त किये।

मियां बोले वह तो पार्टी पर्यवेक्षक शैलेन्द्र सिंह उर्फ ललई यादव की डांट डपट का खौफ था। नहीं तो इस सम्मेलन में वहीं सब हुआ जो इससे पहिले छः माह से होता आ रहा है। सम्मेलन के माध्यम से यही वयान हुआ कि आपको अब घबड़ाने की परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। तारनहार का अवतार हो गया है। जो उससे टकराएगा चूर चूर हो जाएगा। आप लोगों को कुछ नहीं करना है। केवल तारनहार को वोट देकर लोक सभा में पहुंचा देना है। फिर आप चादर तानकर सोइए। सारी समस्यायें छूमंतर। इन्हीं सब बातों के बीच आयोजकों ने बुलाए बिन बुलाए महारथियों की जो उपेक्षा और अवहेलना की वह काबिले तारीफ है। लोगों ने सामान्य शिष्टाचार का ख्याल तक नहीं रखा। मियां झान झरोखे बोले भइया! ध्यान रखो। जनता ने पांच साल का मौका दिया है। नब्बे साल का पट्टा नहीं किया। परन्तु इसे सुनने समझने की ंिचता किसी को नहीं थी। सभी को चिंता थी कि तारनहार को लोकसभा में कैसे भेजा जाए।

परन्तु स्थानीय विधायक ने सम्मेलन में जो भाषण दिया उसने सब गुड गोबर कर दिया- मियां बोले जरा विधायक जी के दर्द को समझिए। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि पूर्व की बसपा सरकार और सपा सरकार में लेस मात्र का भी अंतर नजर नीं आ रहा है। थाने जाने वाले पीड़ितों को भेड़ बकरी की तरह डपटा जा रहा है। ऐसा ही हाल तहसील व अस्पताल में है। तहसील में आय, जाति, प्रमाणपत्र बनवाने के नाम पर लूटा जा रहा है। अस्पताल में भी मरीजों का शोषण हो रहा है। ऐसा ही हाल अन्य विभागों के कार्योलयों में है। विधायक कठेरिया यहीं पर नहीं रुके। बोले तो बोलते ही चले गए। लोगों की जोरदार तालियों ने उनका उत्साह वर्धन किया। विधायक बोले हमारे कार्यकर्ता को सम्मान नहीं मिल रहा है। दलालों और पैसा देने वालों के काम हो रहे हैं। आज भी कार्यालयों में बसपाई मानसिकता के लोग जमे हुए हैं। विधायक कठेरिया ने और भी बहुत कुछ कहा। बात को बढ़ाने से क्या फायदा। परन्तु उनकी इन बातों से उन लोगों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं जो सरकार सपा मुखिया और प्रदेश के मुख्यमंत्री के गुणगान में आकाश पाताल एक किये दे रहे थे। सत्ताधारी दल का विधायक जब अपनी ही पार्टी के सम्मेलन में इस प्रकार की बात करे। तब आप इसका क्या मतलब निकालेंगे। मियां झान झरोखे हंसते मुस्कराते यह सब बता रहे थे।

स्थानीय स्तर पर अपनी उदारता, दानवीरता के लिए सभी द्वारा सराहे जाने वाले कल्लू यादव ने अजीत कठेरिया की बात को काटते हुए कहा हमारे नेता दलाली नहीं करते जनता का काम सेवा भाव से करते हैं। अब विधायक जी और कल्लू यादव जी की बात में कितनी सच्चाई है इसका फैसला हम आप पर छोड़ते हैं। एक दिल जला मियां झान झरोखे से बोला औरों की हम जानते नहीं। परन्तु जहां तक अपने कल्लू भैया का सवाल है। उन्हें दलाली और दलालों से चिढ है।

जिसकी बात का भरोसा नहीं उसके ……………!

लखनऊ से खबरीलाल की भेजी रिपोर्ट कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर गहरी रोशनी डालती है। युवा मुख्यमंत्री की सरकार को बने छह माह से ज्यादा समय होने जा रहा है। 100 दिन पूरे होने पर नेता जी ने अपने  बेटे के नेतृत्व वाली सरकार को सौ में सौ नंबर दिए थे। इस बार छह माह पूरा होने पर हालात यह हैं कि अन्ना हजारे को भगोड़ा तथा मायावती को मुलायम सिंह यादव से सौ गुना बेहतर बताने वाले केन्द्रीय स्पात मंत्री प्रदेश सरकार को सौ में सौ नंबर तो दे ही दे रहे हैं। साथ ही साथ सपा मुखिया को अपना बड़ा भाई मार्गदर्शक बता रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश सदैव उनके पुत्र जैसे रहे हैं। ऐसा कहते  उन्हें जरा भी संकोच नहींहो रहा है। 

खबरीलाल कहते हैं, इसे आप क्या कहेंगे। समय की बलिहारी या ह्रदय परिवर्तन। वास्तव में यह कुछ नहीं है। दुनिया में इतना लचीला स्पात कहीं नहीं मिलेगा। जितने लचीले अपने स्पात मंत्री हैं। खबर उनके केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से हटाए जाने तक की है। ऐसे में संभावनाओं की खोज में पुराने घर की याद आने में कोई बुराई नहीं है। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले इन नेताओं ने लूट के माल से अपना भविष्य भले ही सुरक्षित मान लिया हो। परन्तु जनता की नजरों में इनकी क्या हैसियत और औकात है। इसे जानना है तब फिर बसों ट्रेनों, होटलों, ढावों आदि में मूक श्रोता बन कर आप स्वतः जान जायेंगे। बात बात में बात बदलना कोई राजनीति के इन महारथियों से सीखे। पुराने लोगों का कहना है जिसकी बात का भरोसा नहीं उसके………………का भरोसा नहीं। अब ऐसी स्थिति में सुबह शाम अपनी बात बदलने वाले इन महानुभावों माननीयों को आप क्या कहेंगे।

खबरीलाल की रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि सरकार पर जन सामान्य का भरोसा भले ही अभी कायम हो। परन्तु वास्तविकता यही है कि सूबे की राजधानी के राजनैतिक गलियारों में अधिकांश माननीयों की साख पर छः माह में ही बट्टा लग गया है। सत्ताधारी माननीयों में बहुतेरों की हालत दिन पर दिन पतली होती जा रही है। कुछ मंत्रियों की शिकायतें लगातार ऊपर तक पहुंच रहीं हैं या पहुंचाईं जा रहीं हैं। मुख्यमंत्री की दो दो बार की चेतावनी के बाद भी बहुतेरे मंत्रियों ने अपनी सम्पत्ति की घोषणा अभी तक नहीं की है। कुछ तो सम्पत्ति बढ़ाने में दिन रात लगे हुए हैं। कोई स्वयं ठीक नहीं चलना चाहता। किसी से कुछ कहा जाएगा। तब फिर वह गल्ती मानने के स्थान पर दूसरे के क्रिया कलापों पर टीका टिप्पणी करने लगेगा। सभी को यही लगता है। केवल वही ठीक है। बाकी सब गडबड़ हैए गलत हैं। बेईमान हैं भ्रष्ट हैं। हर एक की एक उंगली दूसरे पर और तीन उंगलियां अपनी ओर हैं। खबरीलाल का कहना है। चंद अपवादों को छोड़कर सभी धान वाइस पसेरी ही हैं।

महंगे चुनाव ने माननीयों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। बकाया भुगतान की चिंता एक तरफ सता रही है। दूसरी तरफ अगले और अधिक महंगे चुनाव का डर भी अभी से सता रहा है। ऐसे में हरिश्चन्द्र बनकर रहना संभव नहीं है। लिहाजा मुखिया और मुख्यमंत्री की चेतावनी के बाद भी मुन्ना भाई की तर्ज पर लगे हुए हैं। राम नाम जपना और सभी का माल अपना!

भाजपा और कांग्रेस अपने विधानसभा के चुनावी घावों के चलते अभी तक चलने लायक नहीं हो पाये हैं। सब कुछ प्रवक्ताओं और उनके धमाकेदार वयानों पर ही टिका हुआ है। कांग्रेस ने आधा दर्जन से अधिक क्षेत्रीय अध्यक्ष बना कर मान लिया है कि उसके पास प्रदेश में कोई ऐसा नेता नहीं है जो पूरे प्रदेश के सही दिशा और गति दे सके। किसी जमाने में युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे नव नियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष आए दिन जूतियों में बंटने वाली दाल और जूतम पैजार को शांत कर सकेंगे। इस पर बड़े आशावादियों को भी भरोसा नहीं हो रहा है। वर्षों से राजनीति के वियावान में पड़े निर्मल खत्री अपने नाम के अनरूप निर्मल मन से मेहनत खूब करेंगे। काम खूब करेंगे। परन्तु कांग्रेस में विघ्न संतोषियों की लंबी जमात क्या करेगी। आने वाले दिनों में यह देखने लायक होगा।

बसपा और बहिन जी का मौन तूफान से पहिले की शांति का नजारा पेश कर रहा है। नौ अक्टूबर की रैली की जोरदार तैयारियां शांत भाव से चल रही हैं। रैली के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि बसपा चाहें सत्ता में हो या सत्ता से बाहर उसका कैडर अटूट और सतत रूप से सक्रिय रहने वाला है। रैली की तैयारी के लिए जिलों जिलों में पार्टी नेताओं को भेजा जा रहा है। साधनों की जुगाड़ पार्टी प्रत्याशिता के इच्छुक लोगों तथा सत्ता के दौरान उपकृत लोगों के माध्यम से की जा रही है। इस रैली के वहाने बसपा यह साबित करने का पूरा प्रयास करेगी कि चुनाव समय पर हो या समय से पहले। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह अप्रासंगिक है। असली लड़ाई सत्ताधारी दल सपा और मुख्य विपक्षी दल बसपा के बीच ही पूरे प्रदेश में होगी।

खबरीलाल ने अपनी रिपोर्ट के अंत में यह भी जोड़ा है कि अपने जिले के वर्तमान और पूर्व माननीयों दिग्गजों मठाधीशों के कथित काले सफेद कारनामे नियमित रूप से वहीं पहुंच रहे हैं। जहां उन्हें पहुंचना चाहिए। अपने और अपने युवराजों को प्रायोजित कार्यक्रमों के जरिए मुलायम और अखिलेश के समकक्ष प्रचारित करने वालों के कारनामे अब छुपाए नहीं छुप रहे हैं। ठेकों का बंदरबांट, बालू खनन में साझीदारी, थानों विभागों में चौथ वसूली, ट्रांसफर पोस्टिंग के लंबे खेला आदि का कोरा चिट्ठा एक दूसरे से होता हुआ ऊपर तक पहुंच गया है। आने वाले दिनों में बहुत कुछ देखने, सुनने और झकझोरने लायक होगा। सरकार की सरकार पर छोड़िए। परन्तु यहां के अभी तक के जो जो कारनामे सरकार और संगठन के मुखिया के पास पहुंचे हैं। वह दिल दहलाने वाले हैं। इन पर जितनी जल्दी प्रभावी अंकुश लगे उतना सबके हित में है। लोहिया के अनुयाइयों, मुलायम के सैदाइयों और अखिलेश के दीवानों में सत्ता की हनक के साथ पैसा प्रभाव और वर्चस्व के लिए इतना लोभ लालच शायद ही पहिले कभी देखा गया हो। यह गुण कथित रूप से हाथी वालों में ही पाया जाता है। सायकिल वालों में इससे पहले इतने बड़े रूप में यह सब कभी नहीं दिखा।

खबरीलाल ने अपनी रिपोर्ट के अंत में लिखा है। बात बात में अधिकारियों की कथित बसपाई मानसिकता को ढोल बचाने वाले सपाइयों को पहिले अपनी दिन पर दिन बसपाई हो रही मानसिकता पर अंकुश लगाने का प्रयास अपने स्तर से स्वयं ही करना चाहिए। अन्यथा ‘‘अब पछताये होत क्या जब चिड़ियां चुंग गईं खेत’’।

अरे यार कुछ तो शर्म करो-

मुंशी हर दिल अजीज प्रवचन की मुद्रा में अपने आस पास खड़े लोगों से कहर रहे थे। चुनाव आ रहा है। जैसे जैसे समय आगे बढ़ेगा। अपने आपको राजनीति का चतुर खिलाड़ी मानने और समझने वाले जरा जरा सी बात पर चाय के प्याले में तूफान खड़ा करने का कोई भी प्रयास हाथ से जाने नहीं देंगे। मोहम्मदाबाद में दो व्यापारियों के बीच विवाद दबंगई झगड़ा हुआ। वर्चस्व के खेल में वह कुछ ज्यादा तूल पकड़ गया। पुलिस ने अपने स्तर से कार्यवाही की। वरिष्ठ अधिकारी भी स्थिति को शांत करने के लिए मौके पर पहुंचे।

परन्तु दुखद संयोग यह रहा कि दोनो पक्ष एक समुदाय के नहीं थे। नतीजतन राजनीति के अधीर और कुशल खिलाड़ी मौके पर पहुंच गए। स्कूल से लेकर परिवार तक में कथित रूप से अनुशासनहीनता और उदंडता के पर्याय बन गये एक युवा में उनके नजदीकी परिवारीजनों और समर्थकों में नरेन्द्र मोदी की छवि दिखाई पड़ती है। बाबा राम देव से लेकर कलराज मिश्र तक की कृपा है उन पर। विज्ञापनों की गंदी कोख ने उन्हें समय समय पर कोई विशेषणों से अलंकृत किया है। हमें इससे कुछ भी लेना देना नहीं। सबकी है अलग कसौटी और अलग निर्णय। प्रत्याशी न बन पाने के गम में और प्रत्याशी बनने की उमंग में मोहम्मदाबाद पहुंचे। मामले को शांत करने के स्थान पर भड़काने की समाज सेवा में कोई कमी नहीं रखी।

एक साहब दल बदलने के रिकार्ड के साथ पिछले विधानसभा चुनाव तक बहुत भाग्यशाली माने जाते रहे। मुंशी कुछ याद करने के अंदाज में बोले अपनी स्वयं की तारीफ स्वयं करने की उनकी शैली लोगों को लाजबाब कर देती है। गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास। अधीर होकर मोहम्मदाबाद पहुंच गए। न सोंचा और न समझा तड़ से बिजली की कौंध बाला बयान दे दिया। अब उन्हें कौन समझाये कि जनता की याददाश्त उतनी कमजोर नहीं होती जितनी वह समझते हैं।

मुंशी बोले अब सत्य के बोझ से सदैव दबे रहने वाले उनके पड़ोसी मट्ठे के उपकार के चलते उन्हें चाहें जो कुछ कहें और महिमा मंडित करें। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस क्षेत्रीय पार्टी ने उन्हें दो बार सांसद बनाया। जिसमें रहते वह गोल टोपी और अंगोछा कंधे पर डाले होली की तर्ज पर ही रोजा अफ्तार और ईद मिलन किया करते थे। आज उनके लिए वह अराजकता का पर्याय बन गई। दूसरी ओर जिस राष्ट्रीय पार्टी ने उनको प्रिय युवराज की सरेआम जमानत तक जप्त करा दी। वह केवल लोक सभा चुनाव में प्रत्याशिता की प्रत्याशा में सबसे अच्छी पार्टी हो गई। मुंशी यहीं पर नहीं रुके। बोले आजादी की लड़ाई में उनके परिवार के योगदान और दलबदल के उनके लंबे इतिहास को जिले में कौन नहीं जानता। ऐसी स्थिति में मृदुभाषी हो योग्य हो कर्मठ हो, कम से कम अपने सजातीय गाडफादरों, चाहें वह राष्ट्रीय हों यह क्षेत्रीय, से ही थोड़ी शिक्षा लो। इतनी छिछोरी और हल्की बातें मत किया करो। आपकी इन रंग बदलने वाली कोशिशों से उन तमाम लोगों को कष्ट होता है। जो कभी आपके साथ रहे हैं। मुंशी अपनी बात को विराम देने के अंदाज में बोले- यह बाते हमारे सहित सभी पर बराबर से लागू होती हैं-

हृदय स्थल पर हाथ धरो पहिले फिर बोलो,
और बोलने से पहिले शब्दों को तौलो।
बोलो कितने बार फटेतन लटे हंस का मान किया है।
कितनी बार झुकाया मस्तक ज्ञानी के सूखे चरणों में।

लेकिन यह नहीं सुधरेंगे। इनकी देखादेखी जिले का सभी प्रमुख भाजपा नेता सब समस्याओं को भूलकर केवल और केवल मोहम्मदाबाद में लगी आग को शांत करने के स्थान पर और बढ़ाना चाहते हैं। वोट हथियाने, वोट बैंक बढ़ाने का यही खेल भाजपा को अच्छा और आसान लगता है।

पैसे के खेल में थम गई गाड़ी!

प्रदेश सरकार का गठन होते ही प्रदेश में अविश्वास प्रस्ताव लाने की आंधी चली थी। अगुआई कन्नौज ने की थी। जिले के दो विकासखण्डों में परिवर्तन की हवा चली। लेकिन उसके बाद सब कुछ जहां का तहां थम गया। अब जिला पंचायत और शेष विकासखण्डों के साथ ही दुग्ध संघ का नाम भी जुड़ गया है। इन सब पर बसपाइयों का कब्जा है। परन्तु सपाई अपने अपने कारणों से शांत हैं। जिले में छः माह के कार्यकाल में बसपाइयों को सर पर बिठाए रखने की इस उपलब्धि के लिए सपा कार्यकर्ता अपने दिग्गज नेताओं को धन्यवाद दे रहे हैं। उनकी जय जय कार कर रहे हैं। नेता मठाधीश पुराने माल भी डकार रहे हैं  और नए माल की सौदेबाजी कर रहे हैं। ऐसा सपा के ही जानकार लोगों का कहना है। लोग कहते नहीं हैं। परन्तु यह मत समझो कि जो कुछ जिले में हो रहा है। उसे लोग जानते नहीं।

जिले के सपाई जिला पंचायत सदस्य अपने प्रभारी मंत्री की जिले में पहली बैठक में ही बिना किसी कारण के बहिष्कार कर सकते हैं। परन्तु बसपाई जिला पंचायत अध्यक्ष की पालकी ढोने में उन्हें रंचमात्र भी संकोच नहीं है। इसे कहते हैं मुफ्त का चंदन घिस मेरे लल्लू! अब इसी के साथ आने वाले दिनों में दूध दिखिये और दूध की धार देखिए। मलाई यहां भी कम नहीं है। न मालूम हो तो जानकार लोगों से पूंछ लो। संकटों से घिरे पड़ोसी जिले के विभागीय पूर्व बसपाई मंत्री अबधपाल सिंह यादव पुत्र स्वर्गीय श्री लटूरी सिंह से पूंछ लो।

और अंत में……………………..

बिजली की किल्लत से छुटकारा मिलने के आसार नजर नहीं आते। अब गैस सिलेंडरों की आने वाले दिनों में होने वाली किल्लत से बिजली की चोरी भी बढ़ेगी। परेशानी भी बढ़ेगी। यह दूर की कौड़ी नहीं है। हकीकत यह है कि जब गैस आपूर्ति में किल्लत होती है। उपभोक्ता बिजली का उपयोग बढ़ाता है। वह चाहें नियमित उपयोग से हो या चोरी से। अब तो गैस का संकट भस्मासुर की तरह बढ़ रहा है। नतीजतन विकल्प के रूप में बिजली की चोरी और नियमित उपयोग अपने आप बेतहाशा बढ़ेगा। बिजली विभाग इसे रोक भी नहीं पायेगा। क्योंकि वह अपने ही अर्न्तविरोधों से जूझ रहा है। गैस किल्लत के साथ बिजली की बढ़ने वाली किल्लत के लिए तैयार हो जाइए!

चलते चलते ……………….
बड़का साहब की छुट्टी के बाद धमाकेदार आमद से उनकी स्थायी छुट्टी का ढोल पीटने वालों के मुहं लटक गए। भला हो चुनाव आयोग का। मतदाता सूचियों के संशोधन परिवर्धन के पहली अक्टूबर से प्रारंभ होने वाले कार्य के चलते इस प्रकरण पर चार माह के लिए विराम लग गया है। तब तक क्या करोगे मुन्ना भाई!

सपा के विधानसभा सम्मेलनों में चले पोस्टर और होर्डिंग अभियान से विधानसभा चुनावों के होर्डिंग और पोस्टर युद्ध की याद आ गई। होर्डिंग युद्ध के बड़े खिलाड़ियों में से अधिकांश का हाल विधानसभा चुनाव में देखने लायक रहा। इस खेल का भी अपना गणित है। मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन। सड़क पर निकले तब चाहें चार भले लोग नमस्कार दुआ सलाम भ न करें। परन्तु खंबों पर खीसें निपोरे हाथ जोड़े ऐसे टंगे हैं, जैसे अब हम क्या कहें आप स्वयं ही सोंच विचार लीजिए। हम कुछ कह देंगे तब फिर कहा जाएगा खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे। एक दिलजले से चुप नहीं रहा गया। बोला मजबूरी है साहब। प्रचार युग है। विज्ञापन का युग है। अब दुकान नहीं चल रही है। तब फिर फेरी लगानी ही पड़ेगी। अब फिर चंदे का धंधा राजनीति का सबसे पुराना खेल है। जब तक सड़क पर झांपा न हो। तब तक कौन पूंछेगा। जिन्हें बुरा लगता है लगे। हम न सधरेंगे न किसी को सुधरने देंगे। ठीक है भैया न सुधरो जैसी तुम्हारी मर्जी। परन्तु आपके सम्मेलन में मुख्य अतिथि प्रभारी मंत्री शिव कुमार बेरिया ने जो कुछ कहा उसी का अनुसरण करो। आप की बड़ी कृपा होगी। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट