फर्रुखाबाद परिक्रमा – बाप-बेटा सम्मेलन और सूना घर ठलुओं का मौज

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

मुंशी हर दिल अजीज और मियां झान झरोखे सब्जी मण्डी, गुड़गांव देवी मंदिर मार्ग के बाप बेटा सम्मेलन में शामिल होकर धीरे धीरे चले आ रहे थे। उनके हाथ में सम्मेलन के स्वागत भाषण की प्रति थी। मुंशी हर दिल अजीज अपनी आदत के मुताबिक कपड़े फाड़ रहे थे। मियां झान झरोखे मंद मंद मुस्करा रहे थे। मियां जितना मुस्कराते, मुंशी उतना ही पैजामे से बाहर हुए जाते। जब नहीं रहा गया। तब टाउन हाल तिराहे तक आते आते मुंशी हर दिल अजीज आकाशीय बिजली की तरहफ फट पड़े।

मुंशी बोले लोहिया के लोगों! होश में आ जाओ। अपने आपको आने वाले समय में हंसी का पात्र मत बनाओ। डाक्टर लोहिया कहते थे अन्याय के सामने झुकना अन्याय को बढ़ाना है। इसलिए अन्याय का मुकाबला करना ही मनुष्य का प्रधान कर्तव्य है। याद रखो कम मतदान ओर वोटों के बंटवारे के बल पर जोड़ तोड़ तीन तिकड़म के बल पर चुनाव जीतने वाले लोग परमात्मा नहीं हो जाते। परिवार को ही पार्टी बना देने वालों का हश्र लोग देख चुके हैं। केन्द्र और प्रांतों से होती हुई यह बीमारी अब जिले में पैर पसार रही है। समय रहते अगर नहीं चेते तब फिर आने वाले दिनों में हाथ मलने के अलावा हाथ में कुछ भी नहीं आएगा।

मियां झान झरोखे से नहीं रहा गया। तनकर खड़े हो गए। बोले पहेलियां क्यों बुझाते हो। हिम्मत हो तो साफ साफ क्यों नहीं कहते। तुम दिल जले हो दिल जले ही रहोगे। गोसांई जी ने सही कहा है – ऊंच निवास नीच करतूती- देखि न सकें पराई विभूती! तुम्हें दिल्ली में राहुल भैया अच्छे नहीं लगते। लखनऊ में अखिलेश भैया की तरक्की देखकर तुम्हारी छाती फटती है। अरे लोहिया के लोगों की दुम उर्फ मुंशी हर दिल अजीज यहां जिले में पहली बार किसी नवजवान ने अपने पिता के बल पर अपने परिवार की विरासत के बल पर अपनी पार्टी अपने जिलाध्यक्ष के बल पर कुछ कर दिखाने का हौसला दिखाया। तब तुम्हारी छाती पर सांप क्यों लोटने लगे।

मियां झान झरोखे यहीं पर नहीं रुके। बोले ठीक है मुंशी हमारी तुम्हारी बहुत पुरानी दोस्ती है। लोग इस दोस्ती की मिशाल देते हैं। परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि हम हर समय तुम्हारी हां हजूरी करें हां में हां मिलायें। तुम्हारी हर सही गलत बात को राजा साहब की तरह स्वीकारते चले जायें। अरे अध्यक्ष की भी कोई गरिमा होती है, मर्यादा होती है। अध्यक्ष न हुआ सर्कस का जोकर हो गया। जादूगर का जमूरा हो गया। आवाज लगी जमूरे! आवाज आई हां उस्ताद। जो कहूंगा करेगा। हां उस्ताद करूंगा बिना ना नुकर के सब करूंगा। देखो मुंशी राहुल बाबा की बात पर हम कुछ कहेंगे। छोटे मुहं बड़ी बात हो जाएगी। रही बात अखिलेश की उन्हें संघर्ष के बल पर किसी की मेहरवानी से नहीं जबर्दस्त जनादेश मिला है। उन्हें कुछ कहोगे लोग खुद ही तुम्हारा मुहं नोच लेंगे।

मुंशी हर दिल अजीज आश्चर्य चकित मुहं बाए खड़े थे। मियां रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बोले होनहार बिरवान के होत चीकने पात। सचिन यादव-लव भैया के लिए अगर तुमने कुछ भी कहा, तब फिर जनता जिले की जनता तुम्हें माफ नहीं करेगी। लव, लव नहीं हैं आंधी है। फर्रुखाबाद का गांधी है। सपा के सारे कार्यक्रमों का जन्मजात प्रभारी है। सभी आंदोलनों का प्रभारी है। अध्यक्ष जी तो अध्यक्ष जी, जिले की पूरी पार्टी पर भारी हैं। जिला पंचायत की सदस्यता का अपनी जिंदगी का पहिला चुनाव हारने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी। एक सचिन लव भैया सब पर भारी हैं। चाहें तुम्हारे रुस्तमें हिन्द सांसद हों, पूर्व सांसद हों या पूर्व सांसद पुत्रगण हों। तुमने लव भैया का स्वागत भाषण नहीं पढ़ा। क्या बात है। वाणी में फूल झड़ते हैं। ग्रामर की एक भी मिस्टेक सारे भाषण में निकालकर दिखा दो। जिन्दगी भर तुम्हारी गुलामी करूंगा। इतना अच्छा स्वागत भाषण तो 1977 में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के बाद टिकट और पद की राजनीति से दूर कार्यकर्ताओं के नवभारत सभाभवन में हुए सम्मेलन में लव भैया के पिता नरेन्द्र सिंह यादव ने भी नहीं दिया था। हमारी न मानो तब फिर भौराजपुर के कल्लू भैया से पूंछ लो।

मुंशी हरदिल अजीज का गुस्सा जाने कहां गायब हो गया। बोले वाह मियां क्या बात कही है। मजा आ गया। सचमुच ऐसा लगता है कि तेरे में लव इज फर्रुखाबाद – फर्रुखाबाद इज लव की तर्ज पर इन्दिरा इज इन्डिया- इन्डिया इस इन्दिरा कहने वाले स्वर्गीय देवकांत बरुआ की आत्मा प्रवेश कर गयी है। तुम्हें गलत फहमी है। हमारी बात तुमने सुनी नहीं, समझी नहीं और दौड़ पड़े राशन पानी लेकर। हम विघ्न संतोषी नहीं है। नही हम हैं छिद्रान्वेषी। हम सच कहते हैं। सच कहने की कोशिश करते हैं। सच के अलावा कुछ नहीं कहते। तुम्हारी और खबरीलाल की तरह ठकुर सुहाती हमें कभी नहीं आई। हम सचिन यादव के हितैषी हैं दुश्मन नहीं। अच्छा बताओ राहुल गांधी और अखिलेश यादव में क्या फर्क है। दोनो के रहन सहन तौर तरीकों भाषा शौली, क्रिया कलापों में जमीन आसमान का फर्क है। इस फर्क को हमने ही नहीं पूरे प्रदेश की जनता ने देखा समझा जाना माना और जांचा परखा है। यही बजह रही कि उत्तर प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनाव में सारे लाव लश्कर तामझाम, लटकों झटकों के बावजूद राहुल गांधी को ठुकरा दिया। वहीं अखिलेश यादव को देश के सबसे बड़े सूबे का सबसे युवा मुख्यमंत्री बना दिया।

बुरा मत मानना मियां झान झरोखे। सचिन भैया युवा हैं, गवरू जवान हैं, होनहार हैं, पढ़े लिखे हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों सहित कई चुनावों के संचालन का उन्हें अच्छा और खट्टामीठा दोनो तरह का अनुभव है। भूड़ नगरिया वाले बाबा स्वर्गीय बाबू राजेन्द्र सिंह यादव और पिता मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव की सियासी विरासत से वह लवालव हैं। भगवान की कृपा से किसी बात की कोई कमी नहीं है। परन्तु सच बात यह है कि हम ही नहीं चंद टपोरी लालों, दरबारियों और हां हजूरियों को छोड़कर जिले की जनता लव भैया को राहुलगांधी जैसा ही समझती है। जिले की जनता अपने लव भैया में अखिलेश यादव की छवि नहीं देखती।

बस करो मियां झान झरोखे चीखने के अंदाज में बोले। मुंशी तुम आग लगाने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते। हम तुम्हारी नस नस जानते हैं। तुम्हारी इन्हीं हरकतों की बजह से खबरीलाल यहां से चले गए। मैं भी साफ साफ कहे देता हूं। अगर तुमने अपने में सुधार न किया तब फिर हमारी तुम्हारी कब तक निभेगी हम नहीं कह सकते। तुम कब किसके लिए क्या कह दो कोई नहीं समझ सकता। प्रेस की आजादी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई सीमा है कि नहीं। कोई स्व आरोपित लक्ष्मण रेखा है कि नहीं। नेताओं के चमचों की तरह कुछ लोगों ने तुम्हारी कलम की लिखने पढ़ने और सोंच की तारीफ क्या कर दी। तुम अपने को अफलातून समझने लगे। आज तुम्हें सचिन यादव में अखिलेश के स्थान पर राहुल की छवि दिखाई पड़ रही है। कल तुम्हें लव भैया के पिता नरेन्द्र सिंह यादव में मुलायम सिंह यादव के स्थान पर राजीव गांधी की छवि दिखाई देने लगेगी। बस करो मुंशी बस करो मेहरवानी करके सुधर जाओ।

मुंशी हर दिल अजीज बोले मियां झानझरोखे हमें समझने की कोशिश करो। हम फिर कहते हैं कि हम तुम्हारे लव भैया के हितैषी हैं दुश्मन नहीं। अच्छा बताओ सपा सुप्रीमो ने अखिलेश को पहिले क्या बनाया। अपने स्थान पर सांसद बनाया। फिर स्वयं विधायक बने मुख्यमंत्री बने। अखिलेश सांसद बने रहे। बाद में पिता पुत्र दोनो सांसद बन गए। मौका आया तब फिर अखिलेश विधायक बाद में बने मुख्यमंत्री पहिले बन गए। बात को समझने की कोशिश करो। लव भैया के पिता कई बार विधायक बने। इस बार मंत्री भी बन गए। अब उन्हें चाहिए कि वह सांसद बनें। अपने बेटे को अपने स्थान पर विधायक बनाकर अखिलेश यादव का हाथ बटायें। आखिर वरिष्ठता कनिष्ठता का कुछ ध्यान रखना चाहिए। कि नहीं। अभी तो विधानसभा में पक्ष विपक्ष में अखिलेश यादव के अंकल ज्यादा हैं। साथी सहयोगी मित्र कम हैं।

मुंशी की यह बातें सुनकर मियां झान झरोखे भी चकरा गए। हंसकर बोले तेरी तो…………..। लगता हमें भी है कि लव भैया के नाम पर पहिले तो जिला में ही एक राय मुश्किल है। जोड़ तोड़ करके हो भी गई। तब फिर मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, डिंपल यादव, धर्मेन्द्र यादव, शिवपाल यादव आदि लव भैया के नाम पर एक राय हो जायें। डा0 लोहिया के 1963 के ऐतिहासिक चुनाव के पूरे पचास वर्ष बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव के पूरे पचास वर्ष बाद होने जा रहे लोक सभा चुनाव में उनकी कर्मभूमि से लव भैया को चुनाव मैदान में उतारने के लिए। हमें यह बात असंभव नही तो, बहुत आसान भी नहीं लगती। मियां बोले नरेन्द्र सिंह यादव के मामले में बात बन जायेगी। जिले में भी और पार्टी हाई कमान में भी यह बात यकीनन कही जा सकती है।

मुंशी हर दिल अजीज बोले हमारा यही मतलब है मियां। लव भैया के सामने अपार संभावनायें हैं। परन्तु जल्दवाजी की जरूरत नहीं है। यह तय है कि अखिलेश यादव को राजनीति में अभी और अनेक शिखर छूने हैं। सचिन उनके हमराही बनकर राहुल गांधी वाली छवि से मुक्त हो सकते हैं। पिता को सांसद बनाने का श्रेय भी ले सकते हैं। पिता के स्थान पर विधायक बनकर बाद में सबसे युवा मंत्री बनने का रिकार्ड भी जिले में बना सकते हैं। सचिन को अभी बहुत कुछ सीखना है। गुस्से की जगह विनम्रता को अपनायें। राहुल गांधी के गुस्से ने उनका खेल बिगाड़ा। अखिलेश यादव की विनम्रता ने उनका लक्ष्य आसान कर दिया। ऐंग्री यंग मैन की छवि फिल्मों में ही चलती है। राजनीति में नहीं। सदी के महानायक अभिताभ बच्चन राजनीति में बहुत जल्दी फेल हो गए। फिल्मों में आज तक बरकरार हैं सफल हैं।

मुंशी हर दिल अजीज बोले जा रहे थे। मियां झान झरोखे अनुशासित छात्र की तरह सुन भी रहे थे और गुन भी रहे थे। मुंशी बोले मियां झान झरोखे अपने लव भैया को यह भी बताओ कि देश की राजनीति तेजी से करवट बदल रही है। आने वाले दिनों में मतदान का प्रतिशत तेजी से बढ़ेगा। तब फिर केवल जातीय वोट बैंक के बल पर चुनाव लड़ना और जीतना आसान नहीं होगा। रहन सहन ठाट वाट से ही तरक्की पसंद प्रगतिशील बनना काफी नहीं है। सोंच और समझ से भी प्रगतिशील बनना जरूरी है।

मुंशी बोले इसी सिलसिले में एक पुरानी बात याद आ गई। बाबू रामेश्वर सहाय सक्सेना अविभाजित जिले में दीवानी के नामी वकीलों में रहे। उन्होंने 1977 के नव भारत सभा भवन में सम्पन्न सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कहा था। यह कहने में बहुत अच्छा लगता है नौजवान दोस्तों- जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। परन्तु जवानी चलेगी कैसे और किस ओर। उन्होंने नव जवानों को सलाह देते हुए कहा था कि अगर कुछ सीखना है तब फिर अपने से अधिक अनुभवी और योग्य लोगों का साथ करो। अगर अपनी तारीफ सुननी है तब फिर अपने से ज्यादा मूर्खो का संग साध करो। दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश नेता अपनी तारीफ सुनते रहने के लिए यही करते हैं। खैर हमें क्या। अब तुम जानो तुम्हारे लव भैया जाने नरेन्द्र सिंह यादव जाने और तुम्हारा काम जाने। माने तो माने नहीं तो वक्त मनवा देगा। क्योंकि वक्त से बलवान कोई नहीं है। अच्छा मियां झान झरोखे – खुदा हाफिज जय राम जी की।

और अंत में –

मियां झान झरोखे बोले मुंशी तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि आज राजनीति कुछ ज्यादा लंबी हो गई। मुंशी बोले लंबी तो हो ही गई। पर करें क्या। यह राजनीति ससुरी है ही ऐसी। न जीने देती है, न मरने देती है। ज्यों केला के पात में पात, पात में पात – त्यों नेता की बात में बात, बात में बात। लेकिन हर बात में सुधार की गुंजाइश है। हमारे बड़े साहब जिले के मालिक साहब की जब अखबारों में एक एक दिन में तीन तीन चार चार फोटो छपने लगी। तब बेचारे किसी से कुछ कह तो सकते नहीं थे। मना भी नहीं कर सकते थे। नतीजतन इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए लंबी छुट्टी पर चले गये। हम दोनो ने भी आज राजनीति की अठखेलियां कुछ ज्यादा ही कहीं। जिसमें कई जरूरी मसले छूट गए। मूल सुधार जरूरी है। नतीजतन राजनीतिक किस्सागोई से फिलहाल इस महिने छुट्टी। मुंशी बोले अब तो खुश हो मियां झान झरोखे। मियां बोले अगर खबरीलाल की लखनऊ दिल्ली से कोई रिपोर्ट आ गई। तब क्या होगा। मुंशी बोले तब की तब देखी जायेगी।

चलते चलते …………….

अधिकारियों कर्मचारियों से लेकर नेता कार्यकर्ता सबके सब आज कल बम-बम हैं। सूना घर ठलुओं का राज। बड़का साहब जिले के मालिक साहब लंबी छुट्टी पर हैं। कार्य वाहक बड़ा साहब इजी गोइंग हैं। जल्द ही आइएएस हो जायेंगे। इसलिए किसी झमेले में पड़ना नहीं चाहते। सपाई कहते हैं अब गए तो गए। आयेंगे भी तो बोरिया बिस्तर बांधने के लिए। नही तो उसे भी नई तैनाती की जगह ट्रक से भिजवा देंगे। वहीं कुछ अधिक जानकार होने का दावा करने वालों का कहना है कि आयेंगे जरूर आयेंगे। पुरानी से ज्यादा ठसक और अकड़ से आयेंगे जिससे सही और गलत काम में फर्क न रखने वाले ’नेती लोगों’ की हेकड़ी हवाहवाई हो जाएगी। बस आज इतना ही- जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट