प्रदेश सरकार के कार्यकाल के छह माह पूरे हो गए। उपलब्धियों पर चर्चा होनी ही थी। भव्य स्वर्णिम युग का नवोदय देखने और दिखाने फल मण्डी में लग गया दरबार। कारिंदे साजिंदे अवसरवादी दल बदलू ठेकेदार वरिष्ठ नेताओं की सक्रियता की बानगी देखने लायक थी। उनकी सारी कोशिश यही जताने बताने की थी कि वही सब कुछ हैं। उनके बिना पार्टी में सरकार में तिनका तक नहीं हिलता। किसी को इस बात की चिन्ता या शर्मिन्दगी नहीं थी कि सरकार बने पूरे छह माह हो गए। परन्तु पार्टी ने नेताओं ने जनप्रतिनिधियों ने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की कलंक कथा को मिटाने का प्रयास करना दूर चर्चा तक नहीं की। इस मजमें में कई वह मतदाता भी थे, जिन्होंने वोटों की आढ़त पर कथित रूप से अपने स्वयं के वोट तक का सौदा कर लिया था। उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। पार्टी की प्रतिष्ठा वाले चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को स्वयं तक का वोट न मिले। एक भी वोट न मिले। इससे बुरी दूसरी कौन सी बात हो सकती है। वह तो प्रदेश सरकार की युवा मुख्यमंत्री की सपा सुप्रीमो की तारीफों के पुल बांध रहे थे। 2014 के लक्ष्य और सारथी का गुणगान कर रहे थे। बुरा भी नहीं है ऐसा करना। मौका भी था दस्तूर भी था। इस लिए पूरी तन्मयता से लोग सुन भी रहे थे तालियां भी बजा रहे थे।
परन्तु इस सबके बीच मतदान केन्द्रों पर साइकिल के लिए जी जान लगा देने वाले खून पसीना बहा देने वाले पार्टी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं का दर्द नेताओं की ललकार, जय जय कार और तालियों की गड़गड़ाहट में भी छुप नहीं पा रहा था। वह इस मजमें में अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। उसने सोचा था कि प्रदेश भर में चुनावी वादों को पूरा करने का काम युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व और सपा सुप्रीमो के निर्देशन में होगा। जिले में सबसे पहले पड़ोसी जनपद कन्नौज की तर्ज पर जिला पंचायत पर सपा का परचम लहरायेगा। परन्तु यह सब तब हो जब लोगों को अपने किए पर पश्चाताप हो। मन में गलती को सुधारने का संकल्प हो। एक ही समारोह स्थल पर दो खेमे साफ दिखाई दे रहे थे।
मायूस लोग कह रहे थे। यही सब तो सात आठ माह पहिले हाथी वाले कहते थे। स्वयं ही अपनी पीठ ठोंकते थे। जान ही नहीं पाए कि कब पैरों से जमीन नीचे खिसक गयी। आज भी यही हो रहा है। किसी ने सच ही कहा है कि नेता जब कुर्सी पर होता है तब उसे चारों ओर हरा हरा ही दिखता है।