अ से ज्ञ तक सिखाने को 40 हजार

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फर्रुखाबाद: फर्रुखाबाद वैसे तो माध्यम श्रेणी के जिले में आता है मगर चिकित्सा और शिक्षा की बात करे तो ये जनपद प्रदेश के महानगरो को भी मात देता है| अभिभावक अपने बच्चों के करियर को लेकर सजग हैं। यहां निजी विद्यालयों में दाखिले को लेकर मारामारी होती है। इसका फायदा नगर के कुछ प्ले ग्रुप स्कूल उठाते हैं। वे प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने एवं खेल-खेल में शिक्षा प्रदान करने के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम वसूलते हैं। इन विद्यालयों में प्ले ग्रुप, नर्सरी व प्रेप कक्षा तक की पढ़ाई होती है। तीन वर्ष में बच्चों को एक से सौ तक की गिनती, अ से ज्ञ और ए से जेड तक सिखाया जाता है। कुछ हिन्दी व अंग्रेजी कविता का ज्ञान दिया जाता है। इन तीन वर्षो में अभिभावकों को कम से कम 40 हजार रुपए खर्च करना पड़ता है।

कमाई का बेहतर जरिया

फर्रुखाबाद फतेहगढ़ युग्म नगर में दर्जनों प्ले ग्रुप स्कूल हैं। कुछ विद्यालयों की कक्षा को आकर्षक ढंग से सजा दिया जाता है। यहां कुछ खिलौने की भी व्यवस्था रहती है। प्ले ग्रुप में दाखिले के लिए अभिभावकों से 3500 से 6000 रुपए लिए जाते हैं। उनसे मासिक शुल्क के रूप में 500 से 800 रुपए वसूल किए जाते हैं। प्ले ग्रुप कमाई का अच्छा जरिया बन गया है। इसके लिए न तो किसी बोर्ड से मान्यता लेने की आवश्यकता होती है और न ही बेहतर भवन की। इसमें प्रशिक्षित शिक्षकों व शिक्षिकाओं की भी कोई खास आवश्यकता नहीं होती है। कम मेहनताना पर शिक्षक-शिक्षिकाओं को रख लिया जाता है। एक कमरे में 50 से 60 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। कुछ हाई स्कूल और इंटर लेवल के स्कूल भी इस धंधे में उतर गए है जहाँ प्ले ग्रुप के बच्चो से भी हाई स्कूल के बच्चो जैसा कदा बर्ताव किया जा रहा है|

दाखिला कराने से पहले स्कूल जरुर परखे

अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने नौनिहालों को स्कूल भेजने से पहले स्कूल का मोयना कर लें| उनके क्लास रूम देखें, उनकी देख रेख करने वाले अध्यापको से मिले और बच्चो को क्लास में पढ़ते देखें| ये सब बच्चे और उनके अभिभावक के मौलिक अधिकार है| आखिर शिक्षा के मंदिर जो अब दुकानों में तब्दील हो चुके है से अभिभावकों को भी दुकानदार का माल देख परख खरीदने का अधिकार है| जिस ग्रुप (प्ले ग्रुप या नर्सरी) में बच्चो को दाखिला दिलाना चाहते है उस ग्रुप में पढ़ चुके बच्चो के अभिभावकों से मिले और स्कूल सम्बन्धित हर जानकारी कर ले| स्कूल में अध्यापको का व्यवहार, पढ़ाई का तरीका और स्तर और उनके परिणाम के बारे में विस्तृत जानकारी जरुर कर ले| चका चौंध के चक्कर में बिलकुल न फसे| कुछ अभिभावक केवल चकाचौन्द के चक्कर में बच्चो को स्कूल में दाखिल करा बैठते है और साल भर बाद पता चलता है कि बच्चो को शिक्षा के नाम पर ढगा गया| प्ले ग्रुप और नर्सरी में औसतन 10 बच्चो पर एक शिक्षक उन्हें पढ़ाने और देख रेख के लिए है या नहीं| बच्चो के लिए लगी आया का व्यवहार कैसा है| बच्चो को उन्हें दी गयी किताबे समय से पढ़ाई गयी है नहीं| आम तौर पर प्ले ग्रुप और नर्सरी में होम वर्क नहीं देने का प्रावधान है मगर कुछ स्कूल बच्चो के अनुपात में कम शिक्षक रखते है जिसके कारण अध्यापको को बच्चो को होम वर्क देना पड़ता है|

तीन वर्ष में ककहरा भी नहीं सीखते

कुछ विद्यालयों में प्ले ग्रुप, नर्सरी व प्रेप तक की पढ़ाई होती है। इन तीन वर्षो में बच्चे ककहरा तक नहीं सीख पाते हैं। अभिभावक को प्रत्येक वर्ष शिक्षण शुल्क के रूप में कम से कम दस हजार एवं टेम्पो या रिक्शा वाले को चार हजार रुपए देने पड़ते हैं। इसके अलावा समय समय पर स्कूल वाले पिकनिक, परीक्षा, वार्षिक कार्यक्रम के नाम पर धन उगाही बच्चो के माँ बाप से ही कर रहे हैं|

सर्वागीण विकास संभव नहीं

रिटायर मास्टर चन्द्र प्रकाश के अनुसार प्ले ग्रुप में बच्चों का सर्वागीण विकास संभव नहीं हैं। कुछ विद्यालय प्रबंधन सिर्फ रुपया कमाने पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं। वे अपने विद्यालय में अधिक से अधिक बच्चों को पढ़ाने की फिराक में लगे रहते हैं।

अभिभावकों का आर्थिक दोहन

शिक्षक विजय प्रसाद कहते है कि कुछ प्ले ग्रुप स्कूल अभिभावकों का आर्थिक दोहन कर रहे हैं। यहां हर वर्ष शिक्षण शुल्क बढ़ाया जाता है। लेकिन बच्चों की सुविधाओं में किसी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं की जाती है। जेट को इस दिशा में आवश्यक निर्देश देना चाहिए।